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कल तक मैं आपसे जो बात कर रहा था वो
अष्टांग हिृदयम का एक हिस्सा था जिसमे आवोहवाऋ रहने वाला स्थान, उसका महत्व, वहाँ की मिटटी उसका महत्व वगैरा वगैरा
।
अब मैं सीध्े आपके शरीर पर आ रहा हँूँ
। बागवटजी मनुष्य शरीर के बारे में यह कहते है, की यह मनुष्य का शरीर,
सबसे महत्वपूर्ण है,
और बहोत प्रयासों के बाद मिलता है यह आपने कई बार सुना होगा. आपके
पूर्व जनम के बहोत सत्कर्म हो तो आपको मनुष्य शरीर मिलता है, और बागवट जी ने एक जगह कहा की आप ही है
जो मोक्ष धरण कर सकते है । ऐसा कहा जाता है इस देश में की, जानवरों में पशु पक्षियों में और कीड़े
मकोडो में मोक्ष की स्थिति नहीं आती. मनुष्य योनी ही है जिसमे आप मोक्ष को प्राप्त
कर सकते है । तो उनकी मोक्ष की परिभाषा बहोत सुंदर है, मोक्ष क्या है ?
हम सब लोगो ने कई बार अलग अलग समय, अलग अलग लोगो से सुना होगा की, मोक्ष ऐसा है, मोक्ष ये है, बागवटजी की परिभाषा बिल्कुल सापफ और
सरल सीध्ी है, वो
यह कहते है की जो व्यक्ति मनुष्य स्त्राी हो या पुरुष कोई भी, अपने दुखों को दूर कर ले और दुसरो के
दुखांे को दूर करने का काम करे,
वो ही मोक्ष का अध्किारी है । जो व्यक्ति मनुष्य अपने दुखों को दूर
करे और दुसरों के दुखों को दूर करने का सतत प्रयास करे उसमे सपफलता मिले न मिले, सपफलता की बात पर वो यह कहते है की
प्रयास करे ईमानदारी से प्रयास करे तो उसको मोक्ष होता है । इस परिभाषा को आप थोडा
व्यापक करे, दुखों
से मतलब क्या ?, तो
बागवट जी कहते है की तीन तरह के दुःख सारी दुनिया में है. मनुष्य को भी है, हर एक को है.
एक तो दैहिक दुःख ! शरीर का दुःख, दैहिक दुःख । दूसरा है भगवान का दिया
हुआ कोई दुःख जो आपके शरीर से अलग है, भगवान ने आपको कोई दुःख दे दिया, अचानक से आप गरीब हो गए, या अचानक से आप के घर में कोई दुर्घटना हो गयी है, आग लग गयी ध्रती कंप आ गया, भूकंप आ गया आप का घर टूट गया सबकुछ
तहस महस हो गया, त्सुनामी
आ गया ये है दैविक दुःऽ । और तीसरा,
आऽरी दुःऽ है भौतिक दुःऽ । भौतिक दुःऽ में सबसे ज्यादा यही हैऋ गरीबी, बेरोजगारी, भूऽमरी । तो वो बागवट जी कहते है की
दैहिक,दैविक और भौतिक
ये तीनो दुःऽों से जो व्यत्तिफ मुत्तफ हो और दूसरों को मुत्तफ करने का रात-दिन
प्रयास करे वही मोक्ष का अध्किारी है । आगे के सूत्रा में वो ये कहते है की, अगर आपने अपने जीवन के तीनो दुःऽ दूर
कर लिए और आप दूसरों के दुऽों को दूर करने के लिए कुछ नहीं करते, तो मापफ कीजिये आप कभी भी मोक्ष के
अध्किारी नही हो सकते । हमारे यहाँ बहुत सारे साध्ू संत हैऋ जो हिमालय में जाकर
तपस्या करते है । तो उनकी जो तपस्या है हिमालय की वो अपने दुःऽो को दूर करने तक
सिमित है, अगर
वो वापस हिमालय से लौटकर समाज के दुऽो को दूर नहीं करेंगे, तो किसी को भी मोक्ष नहीं होगा ।
बागवटजी कहते है की कोई सदगृहस्थ व्यत्तफी है, वो स्वामी नहीं है,
महात्मा नहीं है, तपस्वी
नहीं है, लेकिन अगर वो
अपने दुःऽो को दूर करते हुए दूसरो के दुऽो को दूर करने के काम में लगा हुआ है, तो वो कहते है की वो तपस्या करनेवाले
से ज्यादा बेहतर है । भलेही वो सदगृहस्थ है, और वो कहते है की ज्यादा समय बागवटजी मानते है की ज्यादा समय
सदगृहस्थ ही है की जो दुसरे के दुऽो को दूर करने में ज्यादा मदत कर सकते है क्यों
की उन्हें इन दुऽों का अनुभव है । भलेही वो सदगृहस्थ है, और वो ये कहते है की, ज्यादा समय सदगृहस्थ ही है, जो दूसरों के दुःऽों को दूर करने में
ज्यादा मदद कर सकते हैऋ क्योंकि उन दुःऽों का अनुभव उन्हे है, जिसका दुःऽ दूर करने की वो कोशिश
करेंगे । ईसका मतलब ये है की, बागवटजी
की परिभाषा में गृहस्थी होना, माने
सदगृहस्थ होना, ज्यादा
बडी बात है । वो साध्ू, संतों
के बारे मे कहते है की, ये
सिपर्फ अपने दुःऽों को दूर करने की चक्कर मे लगे हुए है । भगवान से जो ईनकी
वार्तालाप है या संवाद है, वो
अपने तक सीमित है । समाज के लिए सिपर्फ प्रार्थना करके बंद कर देते है, आगे नहीं बढते । इसलिए वो कहते है की, आप अपने दुःऽों को दूर करे और दूसरों
के दुःऽ दूर करने के काम मे सतत लगे, भले आपका प्रयास सपफल हो न हो । सपफलता की बात वो नही कहते । सपफलता, असपफलता सब ईश्वर के हाथ में है, आप के हाथों में नही है । आप अगर
प्रयास कर रहे है तो आप पक्का मानिये की आपकी मोक्ष में जाने की तैयारी है । ये है
उनका सू×ा, यहाँ
से उनकी दूसरी या×ाा शुरु होती है । और इस या×ाा मे वो कहते है की, सबसे बडा दुःऽ है, दैहिक दुःऽ । शरीर का दुःऽ । दुसरा है
दैविक दुःऽऋ भगवान का और तीसरा है भौतिक भौतिक दुःऽ । तो आपसे भौतिक दुःऽ की बात
करना में समझता हँूँ की कोई जरुरी नहीं है क्योंकि आप जिस वर्ग से आते है, आपको भौतिक दुःऽ नहीं है । तो उसपर समय
ऽराब करने से ज्यादा पफायदा नहीं । आपसे जो सबसे ज्यादा बात मे करुँगा आपका शरीर !
शरीर का दुःऽ दूर कैसे करे ? तो
बागवटजी का सू×ा है, वो
ये कहते है की, शरीर
का दुःऽ दूर करने मे सबसे महत्त्वपूर्ण है आपका पेट । ये जो पेट है, शरीर का मध्यभाग । वो ये कहते है की, ईसका दुःऽ दूर करने मे सबसे बडी भूमिका
पेट की है ।
तो आज से जो शुरू हो रहा है वो
पफंक्शनल पार्ट है । इस पफंक्शनल पार्ट में सबसे पहला सूत्रा बागवट जी का, बागवटजी
के लिए उनके 7000
सूत्रा सभी महत्व के है । । उन 7000
में से मैंने कुछ चुनकर निकाले है जो मुझे लगता हैऋ 2007 के हिसाब से बहुत महत्व के है । हो
सकता है की, 3500
साल पहले कोई सूत्रा बहुत महत्व के हो, अब 2007
में हमारी जीवनशैली के हिसाब से कुछ महत्व के ना हो, क्योंकि बागवटजी ने जिस
जीवनशैली में रहते हुए ये सूत्रा लिऽतेे है वो ट्टषि-मुनियोंकी जीवनशैली है । आप
की जीवनशैली और ट्टषी-मुनियों की जीवनशैली में थोडा अंतर है । तो आपकी जीवनशैली के
हिसाब से मैंने जो सूत्रा निकाले और जिनको महत्व का क्रम देता हँूँ उसमे से पहला
सूत्रा । संस्कृत में वो कहते है,
पेट जिंदगीभर आप का अच्छा रहे, दुरुस्त रहे । इसका मतलब ये है की, आप जो कुछ भी ऽा रहें है, उसका ठीक से आप पाचन करते रहे । वो कई बार अपने सूत्रों में ये लिऽते
है की, ऽाना महत्व का
नहीं है, ऽाने को पचन
महत्व का है । आपने ऽाने को ऽाया ये महत्व का नहीं है । जिसको आपने ऽाया उसे पचाया, ये ज्यादा महत्व का है क्योंकि अन्न
पचेगा तो रस बनेगा, उसी
रस में से मांस, मज्जा, मल, मूत्रा, वीर्य
और अस्थियाँ बनेगी और वही आपके शरीर में आगे जीवन में काम आयेंगे । तो ऽाया वो
महत्व का, उससे
भी ज्यादा महत्व को जो ऽाया हुआ पचाया । वो कहते है की पेट हमेशा आपका दुरुस्त रहे
तो उसका मतलब है की पाचन क्रिया आपकी हमेशा अच्छेसे चलती रहे इसके लिए पहला सूत्रा
उन्होंने लिऽा फ्भोजनांते विषमवारीःय् ये पहला सूत्रा है उनके हिसाब से नहीं मेरे
हिसाब से । इसका सीध सा अर्थ है की भोजन के अंत में पानी पीना विष पीने के बराबर
है, सूत्रा ये है
भोजन अंतेऋ भोजनांते, आप
जानते है संस्कृत में मिलाकर कहने की परंपरा है । भोजन अंते विषमवारीऋ विष आप
समझते है जहर जैसा क्या है? पानी
। भोजन के अंत में पानी जहर के जैसा है, विष के जैसा है । अब इसको थोडा व्याख्यायित करता हँूँ, ताकि समझ में आये । सूत्रा इतना ही है, समझने के लिए मै आपको बहुत उदाहरण
दूँगा ताकि आप जल्दी पता कर पाए । बागवटजी ने एक सूत्रा में कहा है की हमारा ये जो
शरीर है इसका मुख्Õस्थान
पेट होता है, इसका
एक स्थान होता है, पेट
के अन्दर लेफ्रट साइड में, नाभि
से तदा ऊपर जहाँ मेरा हाथ रऽा हुआ है, इस स्थान को कहते है जठर, संस्कृत में कहते है जठर, हिंदी में कहते है आमाशय, अंग्रेजी में चाहे तो एपिगेस्ट्रियम । तो ये जो जठर स्थान हैऋ
बागवटजी कहते है की इसमें अग्नी प्रदीप्त होती है, उसी को कहते है, जठराग्नी
। और भोजन जो आप करते है, वो
पहले जठर में ही जाता है । आमाशय में इकठ्ठा होता है, वहां अग्नी प्रदीप्त होती है । वो
अग्नी भोजन का पाचन करती है । ये है महत्व की बात । अब आपने भोजन किया, अग्नि प्रदीप्त हुई । बागवटजी ने इसके
लिए एक सुंदर श्लोक लिऽतेा है, लम्बा
है लेकिन में हिंदी में बताता हँूँ,
वो कहते है की, ऽाते
ही अग्नी प्रदीप्त होता है, ऐसेही
जैसे बिजली के स्वीच को ऑन करते ही लाइट जलती है । ये ऑटोमेटिक है, अपने आप होती है । आपने रोटी का पहला
टुकड़ा मुँह में डाला, जैसे
ही टुकड़े को चबाना शुरू किया, लार
बनाना शुरु हुआ तुरंत अग्नी प्रदीप्त हो जाता है, पहले ही टुकड़े में । अब आप जो भोजन कर रहे है ये इस अग्नी के प्रभाव
में पचेगा । तो भोजन के पचने की थ्क्रया में पहले भोजन रस में बदलेगा । पहले पेस्ट
बनेगा, जैसे टूथपेस्ट
की कंडीशन होती है वैसा बनेगा, लोध्ी
जैसा । पिफर उसमे से रस बनेगा, पिफर
उसमे से सब कुछ बनेगा । वो कहते है की आप ने जैसे ही भोजन शुरू किया तो अग्नी
प्रदीप्त हुई, ये
अग्नी भोजन को पचा रही है । आपने भोजन पूरा करते ही पानी पी लिया गटगटगट.. तो क्या
हुआ ? अग्नी शांत हो
जाएगी । आपके रसोई गैस में चूल्हा जल रहा
है, और जलते हुए
चूल्हे पर पानी पफेकिये, तो
बुझ जायेगा । अग्नी का पानी से मेल नहीं है, दुश्मनी है । तो आपके पेट में ऽाना ऽाते ही अग्नी जल रही है, अब
आपने पीछे से गिलास, 2
गिलास पानी पी लिया कोई कोई लोग तो लोटा भर के पी लेते है । कई कई लोग तो भोजन से
ज्यादा पानी पी लेते है । तो ये जो पानी पेट में गया उसने अग्नी को शांत कर दिया ।
अब अग्नी शांत हो गया तो पिफर बागवटजी कहते है, भोजन पचेगा नही वो सड़ेगा । अब उन्होंने बीसियों सूत्रा दिए है, भोजन पचेगा तो क्या होगा और भोजन सड़ेगा
तो क्या होगा, मै
सड्नेवाले हिस्से की बात कर लेता हँूँ । वो कहते है की, भोजन अगर सड़ना शुरू हुआ तो सबसे पहले
गैस बनेगी, वायु
बनेगा और ये वायु आपकी जिंदगी हराम कर देगा और ये वायु की तीव्रता जब बढ़ेगी तो गले
में, छाती में, पेट में जलन होगी पिफर अगर और ज्यादा
तीव्र हो गयी तो वो शरीर में जाएगी,
घूमेगी क्योंकि वायु को पकड़ना मुश्किल है क्योंकि जहाँ जगह मिलती है वही जाती है तो ये शरीर में घूमेगी तो
आपका सर घूमेगाऋ चक्कर आयेंगेऋ सर में दर्द होगाऋ पीठ और ”दयस्थान में भी दर्द हो सकता है, कई बार तो इतना दर्द होता है की आपको
लगेगा की हार्ट अॅटॅक आ गया, लेकिन
वो वायू का दर्द है, हार्ट
अटैक का नही । और ये जो वायु बनी,
भोजन के सड़ने से, इसी
वायु में से बागवटजीने सूची बनाई हैऋ 103 रोग पैदा होंगे । सबसे पहला रोग है उसमे
अॅसिडिटी, हाइपर
अॅसिडिटी ! ज्यादा दिन अगर आपने ये चक्कर चलाया पानी पीने का तो अल्सर, सेप्टिक अल्सर । और ज्यादा दिन चक्कर
चलाया तो बवासीद, मुलव्याध्, भगन्दर ये सब रोगों की सूची है और अंत
का रोग है कैंसर, कक्ररोगऋ
103 वे नंबर पर कक्ररोग
लिऽते है । माने अॅसिडिटी से शुरू हो कर आप कैंसर तक की यात्रा कर सकते है । तो वो
ये कह रहे है की जिस काम से वायू पैदा हो, वो वायू आपके सड़े हुए भोजन से निकले... बाद में बागवटजी कहते है वो
अभी बता देता हँूँ । वो दूर का सूत्रा है लेकिन यहीं ले आता हँूँ उसको की आपका जो
भोजन सड़ेगा, सब
ध्यान दे के सुनियेगा, बागवटजी
के शब्द दुसरे हैं, में
हिंदी शब्द इस्तेमाल कर रहाँ हँूँ,
तभी कॉलेस्टेरॉल बढेगा । सादे हुए भोजन का ही बाय-प्रोडक्ट है
कोलेस्ट्रोल । अगर भोजन का पाचन हुआ तो कॉलेस्टेरॉल शून्य रहता है । वो कोलेस्ट्रोल
जो आपको हानी पहुँचाता है । आप जानते है, शरीर मे 2
तरह का कॉलेस्टेरॉल है एक गुड और एक बॅड! अच्छा कॉलेस्टेरॉल माने भ्क्स् हाई
डेंन्सिटी लिफोप्रोटीन खराब कॉलेस्टेरॉल
माने स्क्स् लो डेंन्सिटी लिफोप्रोटीन और उसका भाई टस्क्स् व्हेरी लो डेंन्सिटी
लिफोप्रोटीन । तो बागवटजी कहते है की, ये जो खराब कॉलेस्टेरॉल है वो रक्त मे तभी आता है, जब भोजन पेट मे सडता है इसका माने
जिनका कॉलेस्टेरॉल रहा है वो ध्यान दे उनको भोजन पच नहीं रहा, सड रहा है तो कॉलेस्टेरॉल बढेगा तो
हार्ट अॅटॅक आयेगा, घुटने
भी जड हो जायंेगे, सारी
संध्यिा आपकी एकदम कडक हो जाएगी । आपका चलना फिरना मुश्किल हो जाएगा तो वों ये
कहते है की, 103
बीमारिंया 1
छोटी गलती से आती हो तो वो गलती कभी करना नहीं माने, भोजन के बाद कभी पानी पिना नहीं ये है सूत्रा । अब जैसेही ये सूत्रा
पूर्ण हुआ, तुरंत
आपके मन मे प्रश्न आया होगा की,
पाणी कब पिना? तो
बागवटजी खुद ही आगे के सूत्रांे मे उसका उत्तर दे रहे है कि शायद उन्हे मालूम है
कि मनुष्य की जिज्ञासा होनेवाली है तो पहले सूत्रा मे लिख दिया भोजनांते विषमवारी
की भोजन के अंत मे पानी मत पियो अगले ही सूत्रा मे वो कहते है कम से कम 1.30 घंटे के बाद पानी पियो अब ये जो 1.30 घंटे तक अग्नी के प्रभाव मे रहता है ।
और जानवर जो कुछ भी खाते है, उनके
पेटं मे भी जठराग्नी है, वहॉ
चार घंटो तक अग्नी का प्रभाव रहता है । मनुष्य शरीर में 1 से 1.30 घंटे का समय उन्होंने बताया है, और वो अलग अलग क्षेत्रा के हिसाब से
जैसे आप दक्षिण भारत में है कोई उत्तर भारत मे है, कोई पूर्वीय भारत में है । अब मान लीजीये उत्तरंाचल का कोई आदमी इसी
सूत्रा को पढेगा तो उसको तो अग्नी का असर 2से 2.30
घंटे पेट मे अग्नी का प्रभाव है,
जब तक अग्नी का प्रभाव है, पानी मत पीयो क्योंकि पाणी पीतेही अग्नी बुझेगी । अग्नी का काम है
भोजन पचाना, भोजन
पचेगा नहीं, तो
सडेंगा, तो 103 रोग पैदा करेगा । तो सीध सा दूसरा
सूत्रा है की, भोजन
के डेढ घंटे बाद पानी पीना । ठीक है?, अब तुरंत आपके मन मे सवाल आएगा भोजन के पहले
पीना की नही पिना ? बागवटजीने
इसका उत्तर अगले सूत्रांे में दिया है वो ये कहते है की, भोजन के पहले पानी पीना तो कमसे कम 40 मिनट और अध्कि से अध्कि 1 घंटा आपको सीध सा हिसाब बताता हँू 10 बजे अगर आप खाना खाना चाहते है तो 9 बजे से 9.20 मिनट तक आप चाहे उतना पानी पी सकते है
। और बीच में पिना की नही ? तो
इसके लिए बागवटजी कहते है, ये
बहुत सायंटिक बात उन्हांेने कही है वो कहते है की अगर आप के भोजन में 2 अन्न है माने 1 रोटी खा रहे है,आप वो गेहँू और दुसरा चावल खा रहा है, और सामान्य रूप में आपके भोजन में दो
अन्न होते है इसलिए मे ये सूत्रा कह रहा हँू । ये एक अन्न वालांे के लिए नहीं हैं
जो दो अन्न खाते है भोजन में उनको एक अन्न की पूर्ती पूरी हुई, और दुसरे की शुरू होनेवाली है तोे बीच
का जो जंक्शन पांॅईट है, इसपे
पानी पीना । मतलब इसका सीध है, रोटी
पूरी हुई अब आप चावल खाने की तैयारी कर रहे है तो रोटी खाने के बाद, चावल खाते से पहले आप जरूर पानी पीना ।
लेकिन मात्रा कितनी? तो
कहते है 2या 3 घूॅंट इतनाही उसके बाद जब आपने दुसरा
अन्न शुरू कर दिया फिर नही फिर तो पूरा आप भोजन करके ही उठिये अब भोजन कर लिया तो
गला साफ करने के लिए थोडा 1-2घॅूट
और पी लेना । पानी पीने के लिए नहीं है वो गला साफ करने के लिए है । अब आपके मन मे
तुरंत प्रश्न आएॅंगा की भोजन के अंत मे क्या पीना ? डेढ घंटे तक पानी तो नही पीना, तो कुछ पी सकते है ?
तो बागवटजीने तीन चीजे बताई है, उसके लिए पूरा सूत्रा लिखा है, की, भोजन
के अंत मे सबसे अच्छी चीज है वो है छाच मठ्ठा । दही का तक्रम तक्रम माने यही है
लगभग छाच मठठे जैसा वैसे तक्रम की उन्होंने परिभाषा दियी है की, दही को खूब अच्छे से मखने के बाद ,उस का मख्खन रह गया तो मख्खन निकालकर
जो बचा वो तक्रम । मख्खन रह गया तो वो लस्सी, लस्सी पीने के लिए नहीं कह रहे तक्रम की बात । तो भोजन के बाद सबसे
अच्छी चीज आप पी सकते है वो हे छाच मठठा्, मठठा् शब्द एकदम अच्छा है हिंदी का शब्द है शायद आप सब समझते है, गुजराती है तो छाच अच्छे से समजते है ।
दुसरी अच्छी चीज उन्हांेने बताई है,
वो है दूध्, और
तीसरी अच्छी चीज उन्होने बताई है फल का रस । कोई भी फल का रस लेकिन वो कह रहे है
मौसमी फल का रस । जिस मौसम मे जो फल आता है उस फल का रस, माने मौसम के विरूदध् के फल नहीं । आज
का मौसम आम का नही है तो आम का रस अभी पीये तो नहीं चलेगा । आज का मौसम गन्ने के
रस का है तो गन्ने का रस ही पीये । थोडे दिन के बाद संत्रो का मौसम आयेगा तो
संत्रो का रस पीये । बागवटजी कहते है की, जो चीज प्रकृतिने जिस समय मे प्रचुर मात्रा मे उपलब्ध् करायी है, उसका रस तो आप ये कहते है की, कोल्ड स्टोरेज से लाया हुआ संत्रा, मोसंबी का रस निकाला ये सर्वनाश करेगा
सत्यानाश नही, सर्वनाश
करेगा । वो ये कहते है भगवानने और प्रकृतीने आपके शरीर के हिसाब से सारी चीजो को
सेट किया है, और
वो कहते है की,भगवानने
इस ध्रती को बनाया तो बहुत ही सोच समझकर बनाया एक एक मायक्रो कॅल्क्युलेशन्स किए, तब आप को ये प्रकृती साथ उसने रखा है ।
तो प्रकृती मे जब जो चीज बहुत मात्रा मे हो उसी का रस जैसे की, अभी टमाटर का सिझन है तो आप भोजन के
बाद टमाटर का रस पी सकते है भरपेट । अभी थोडे दिन मे अॅंगूर का सिझन आएॅंगा तो
भोजन के बाद आप अॅंगूर का रस पी सकते है । जब जब जो सीझन आएॅं वो ध्यान रखना है ।
अब इसमे आगे एक सूत्रा है वो बहुत महत्व का है बागवटजी कहते है, मठठ्ा या छाच कब पीना ? दूध् कब पीना ? रस कब पीना ? तो उसके लिए उन्होने बहुत स्पष्ट और
जोर देकर कहा है की, मठठ्ा
हमेशा दोपहर के भोजन के बाद ही पीना । सामान्य लोगो के लिए असामान्य लोगो के लिए
मै बात बताउॅंगा । तो सामान्य लोग है, आप मेरे जैसे । तो मठठ्ा हमेशा दोपहर के भोजन के बाद ही पीना और दूध्
हमेशा रात के भोजन के बाद ही पीना । रात माने शाम के भोजन 6-7 बजे के बाद ही पीना । ज्यूस हमेशा
सुबह के भोजन माने नाश्ता, बागवटजीने
नाश्ता शब्द कहीं इस्तेमाल नहीं किया सुबह का भोजन आप उसको नाश्ता कहते है । तो
सुबह के भोजन के बाद ज्यूस दोपहर के भोजन के बाद मठठ्ा और रात के भोजन के बाद दूध्
। और वो कहते है, आगे
के सूत्रा मे की, इनका
क्रम उल्टा-सीध मत करना कभी माने सुबह के भोजन के बाद दूध् पी लीया, रात के भोजन मे ज्यूस पी लिया या मठठ्ा
पी लिया, तो ऐसा मत करना
क्यो नहीं करना ? तो
वो आगे वो एक्स्प्लेनेशन देते है । वो यह कहते है बहुत महत्व का की, हमारे शरीर को मठठ्े का पाचन होने के
लिए जो रस की जरूरत होती है एंझाईम्स, जो रस और एंझाईम्स दोपहर की ही होते है पेट मे । इसी तरह हमारे शरीर मे दूध् का पाचन होने के
लिए जो रस की जरूरत पडती है वो सूर्यास्त के बाद ही होते है या सूर्यास्त शुरू
होते ही उनकी उत्पत्ती सुरू होती है और एंझाईम्स ज्यूस पचाने के लिए है, वो सुबह ही होते है । इसलिए ब्रेकफास्ट
मे ज्यूस लंच मे मठठ्ा और डिनर मे दूध् । बच्चो को बडांे को भी यही नियम है । दूध्
पीकर जाते हैं तो बदल दो । ज्यूस पिलाकर भेजो और आप कहेंगे जी, पियेगे नहीं आप जैसी आदत डालेगंे बच्चे
वैसेही होने वाले है क्यांेकी बच्चे अपने से कुछ नहीं सीखते वो आपका सिखाया है ।
सारा कुछ तो अब तक आपने बच्चों को दूध् पीने की आदत डाली है । तो उन्हे कहों, माफ करो हमे गलती हो गई हमसे अब हम
आपको चाहते है की, आप
ज्यूस पीकर जाओ क्यूँ जाओ तो ये बात उन्हें समझाओ शायद समझ जाएॅं वो भी समझ
जाएॅंगे तो उनकी भी जिंदगी पर्मनंट हो जाएगी । सुबह के भोजन के बाद ज्यूस, दोपहर के भोजन के बाद मठ्ठा, रात के भोजन के बाद दूध् ये सूत्रा है
। बागवटजी कहते है की, आप
ऽाने के डेढ़ घंटे बाद पानी पिए पिए क्योंकि जठर के अग्नी के प्रभाव में ऽाना डेढ़
घंटे रहता है । पानी कैसे पिए ?
तो हमारे यहाँ पानी पीने के बहुत तरीके हैं । लोटा होठोंसे लगाया, गटगटगट उतार दिया, क्या ये तरीका ? तो बागवटजी कहते है नहीं । ये तरीका
बिल्कुल गलत है पानी पीने का । वो कहते है की, पानी को चुस्कियां ले-लेकर पीयो । । घूँट-घूँट भर के पानी पिए । सीप
सीप ले-लेकर पानी पिए, ऐसे
पानी पीने को बोला है । जैसे आप गरम दूध् पीते है न ? बागवटजी बिल्कुल उसे समक्ष रऽते है ।
गरम दूध् आप जैसे सीप-सीप लेकर,
घूँट-घूँट भर के पीते है, वैसे ही पानी पिए । अब ये क्यों ? ये समझ लेते है । आप एकसाथ इतना पानी उतार रहे है गले के नीचे और
एक-एक घूँट पानी उतारे गले के नीचे तो दोनों में जमीन आस्मान का अंतर है । क्या
अंतर है ? मई
आपको एक महत्व की बात समझाना चाहता हूँ वो जन्मभर याद रहे तो अच्छा । हमारे पेट
में भोजन को पचाने के लिए अग्नी होती है । और इस अग्नी को तीव्र करने के लिए आम्ल
होता है, अॅसिड । आप
जानते है, पेट
में आम्ल बनता है और भगवान्ने ऐसी व्यवस्था की है, पेट में आम्ल दिया है और मुँह में राल बनता है, जिसको लार कहते है, लार..लाळ, सलायव्हा, लालारस अलग-अलग नामों से आप उसे जानते
है । मुँह में बनती है लार..। ये है क्षार । और पेट में बनता है आम्ल । आप थोडा भी
अगर विज्ञान जानते है तो आप जानते है की क्षार और आम्ल को मिलाओ तो हो जाता है
न्यूट्रल । माने सामान्य एक लवण होता है नमक वो अलग है । ये केमिस्ट्री के लवण की
बात कर रहा हू । तो आम्ल और क्षार अन्या समे मिलते रहे, तो न्यूट्रल होते है । आम्ल का मतलब है
जिसका च्भ्7 से
कम है और क्षार का मतलब है जिसका 7 से
आगे है । और न्यूट्रल का मतलब है जिसका 7 है ये जो पाणी है ना पाणी ये ना आम्ल है, ना क्षार है, न्यूट्रल है तो बागवटजी कहते है कि पेट
आपका अक्सर पाणी के जैसा रहे तो अच्छा ।
और जिनका पेट पानी के जैसा माने पेंट की अम्लता ना बढे, जिनका क्षारपण भी ना बढे च्भ् 7 से आसपास रहे तो बागवटजी कहते है ऐसे
व्यक्ती को 100 से
ज्यादा वर्ष जीने की पूरी गॅरंटी है, बिना एक भी दवा खाये और बिना चिकित्सक के पास जाये । अब आपके पेट मे
आम्ल बन रहा है, मुँह
मे लार बन रही है अगर पाणी आप घॅंूट-घॅंूट भर पी रहे है तो पाणी के साथ ये लार
मिलके अंदर जाती है । और पाणी एकसाथ गटगटगट पीते है तो कम लार पाणी के साथ लार
मिलकर अंदर जाती है । ये लार बन रही है अंदर जाने के लिए बाहर निकलने के लिए नही ।
क्योंकि अंदर पेट के आम्ल को रात रखना है इसके लिए क्षार है । तो ये घॅंूट-घॅंूट
सीप सीप लेकर आपने पाणी पिया तो ज्यादा लार अंदर जाएगी तो आम्ल को शांत करने मे
मदत आएगी । इसलिए आपका पेट न्यूट्रल रहेगा और आपकी जिंदगी बिना किसी दवा और रोग के
आराम से 100-150
साल हो जाएॅंगी । इसलिए पाणी घॅंूट भर भर के पीये । और एकसाथ गटगट पाणी पीयेंगे तो
लार पानी के साथ मिल नहीं पाएॅंगी तो अंतिम रूप मे वो पानी पहॅुंचेगा तो खाली पानी
होगा और वो उतना न्यूट्रलाईज नहीं कर पायेगा, पेट को सामान्य अवस्था मे नहीं ला पाएॅंगा । हालात की,पात्राी भी आम्ल को कम करता है
क्यांेकि आम्ल मेे पानी मिले तो आम्ल की ताकद कम होती जाती है । पानी तो कम करेगा
वो बिल्कुल अद्भूत होगा बागवटजी आगे कहते है वो ये कहते है की, ज्यो व्यक्ती सीप सीप लेकर पानी पीये
वो देखे जानवर कैसे पीते है चिडिया कैसे पानी पीती है ? एक ड्रॉप उठाती है फिर उसको केसे ऐसे
मुॅंह मे चलाएगे फिर पीयेगी फिर दूसरी ड्रॉप उठाएॅंगी फिर ऐसे ऐसे चलाएगी फिर
पायेगी । ऐसेही कुत्ता है, पानी
को चाट चाट के पीयेगा, शेर
पानी को चाटचाट के पीयेगा, ज्यादातर
जानवर ऐसेही पीते है वो जानवर हमसे ज्यादा स्वस्थ होते है । किसी को डायबिटीस नही
है । कोई ओव्हरवेट नहीं है । हॉं किसी को पेन/दर्द नहीं । कुछ नहीं । क्योंकि वो
पानी को पीने का नियम जानते है । बागवट के पक्के चेले हेै ये सब जानवर । बिना बोले
और बिना सुने वो आप भी हो जाईए । बागवटजी कहते है पानी थोडा लिजिए जैसा चिडिया
पीती है उसको चिडिया मुॅंह में ऐसे ऐसे घुमाती है ना तो पानी को थोडा घुमाईये फिर
पीजीए । थोडा पानी लिजीए मुॅंह में घुमाईये पानी फिर पीजीए बाद मे इध्र उध्र को सब
लार अंदर जाएॅं । अब वो ये कहते है की कोई रोग आने की समावना नही । माने आपके सारे
रोगो की एक दवा । तो मैंने ये किया है मैने पडा था 6 साल पहिले बागवटजी को मै 6 साल पहले पढना सुरू किया । 3 साल पढने में लग गया और 3 साल समझने मे लग गया । तो 6 साल पहले मैंने ये सूत्रा पढा था तो मैंने कहा यार कुछ लोक बहुत
बिमार है उन्हे कहा मैंने कर के देख लो बागवट कह रहे है । गलत तो रिझल्ट आनेवाला
नहीं । तो आप को सुनकर हैरानी होगी हमारे जो दोस्त सहयोगी है जिनका वजन ज्यादा था
उन्होंने पानी सीप सीप लेकर पिना शुरू कर दिया । और भोजन के डेढ घंटे बाद पानी
पिना शुरू किया । ये दोही सुत्रों का परिणाम है सबके वजन पहले से आध्े हो गये एक
तो मेरा दोस्त है जिसको मै कभी आप के सामने खडा कर सकता हूॅं । 140 किलो का था वो । और एक सव्वा साल हो
गया लगभग अभी 70
किलो का है बिना कोई दवा खायें बिना भोजन में कोई बदलाव कियंे । सिर्फ पानी पीने
का तरीका बदला फिर मैंने डॉक्टरोसे बात की, ये चक्कर क्या है?
तो उन्होने कहॉं की बात सिध्ीसी है जो लार है ना, ये दुनियांकी सबसे अच्छी औषध्ी है ।
इसकी मेडिशनल प्रॉपर्टी सबसे जादा है । आप ने जनावरो को देखा होगा उन्हे कभी कोई
चोट लगी तो वो आपने लार से ये ही ठिक कर
लेते है चाँट चाँट के । क्योकि उसमे मेडिसीन है । वो मनुष्य की लार मे भी है । अब
वो ये कहते है की, भारत
के वो मनुष्य स्त्रिाया और पुरूष बहुतही दुर्भाग्य शाली है तो इस लार को अंदर ले
नही जा पाते जैसे तंबाखू खानेवाले लोक थुंकते ही रहते है । गुटखा, मावा खानेवाले लोक थुंकते ही रहते है ।
तो डॉक्टर कहते है । की, वो
जिंन्दगी के सबसे महत्वपूर्ण चीज को थूँक रहे है जिसको बनाने के लिए भगवान ने एक
लाख गं्रथीयॉं आपके मुहँँ मे दी है । आप जानते है ये लार तैयार होने में एक लाख
गं्रथीयो का काम होता है । ये गं्रथीयॉं दिन रात लार बनाती है और आप उसको थूँकते
ही रहते है । थूँकते ही रहते है तो आप सडक तो खराब करते ही है । आपने को उससे
ज्यादा खराब करते है तो मेरी हात जोड करके विनंती है की, आप मेसे कोई लार थूँकने वाला हो, थूँकनेवाला आदमी ये.. तो बागवटजी के
डिक्शनरी मे नहीं है । वो कहते है की, एक ही कंडीशन मे आप थूक सकते है जब कफ बहुत बडा हुआ हो । उसके अलावा
दुसरी कोई कंडीशन नहीं की आप थूँके । तो यहा तो बिना कफ बडे तंबाखू गुटखा थूँकते
रहते है ये थूँकने नुकसानदायक है ही तंबाखू गुटखा भी नुकसानदायक है उससे बी ज्यादा
थूँकना, तो मत थूँकीये ।
फिर आप कहेगे जी पान खाये तो । पान खाने का भी नियम बताया है बहुत मायक्रो लेव्हल
पर कॅल्क्युलेशन है बागवटजी का ! वो कहते है की पान खाओ तो कथ्था मत लगाओ बीना
कथ्थे का पान खाओ थूॅंकनेकी गरजही नहीं । क्यांेकी जो भी खाओगे वो चुना है, क्लॅशिअम है अंदर जायेगा । और वो
क्लॅशिअम क्या क्या अद्भूत काम करनेवाला है वो कल बताउँगा मैं माने हमारे पुराने
बुजुर्गो जो तंबाखू का कथ्थे का नही सिर्फ चुना लगाके पान खाते है वो बागवट के चेले है शिष्य है सबके सब । तो पान
भी खाएँ तो थूँकना नहीं लार के साथ पान अंदर जाना चाहिए क्यांेकी एक है वातनाशक और
दुसरा है पित्तनाशक । और कफ का नाश पान करता है और चुना वात का नाश कर देता है तो
वात पित्त कफ तीनों ही संतुलित है । तो पान खाकर जिंदगीभर निरोगी रह सखते है ये है
। तो आपको पानी पीना है घॅंूट-घॅंूट भरके लार अंदर ले जाने के लिए उसे बच्चों की
तरह मुहँ मे घुमाईये । जैसे बच्चे कहते है ना वो बहुत अच्छी क्रिया है । ठिक है ?अब आगे चलता हूँ । तो आगे का सूत्रा का
है बागवटजी का पानी कभी पिये । तो थंडा ना पिये पेट को दुरूस्त रखने के लिए ये
सारे सूत्रा है कैसा पानी पिये जी तो वो कहते है की आपके शरीर का तापमान देखे उसके
अनुसार ही पानी पिये माने शरीर के तापमान के बराबर का पानी पिये माने गुनगुना पानी
पिये एक शब्द है कोमट गुजराती है?
नहीं मराठी है शायद । गुनगुना पानी पिये । नौसे का पानी कहते है
राजस्थानमे नौसे.. तलका.. गरम.. गुनगुना पानी पिये । कभीही पानी की गर्मी शरीर के
तापमान के उपर ना हो ऐसा पानी पीये तो आपको शरीर का तापमान 370बजो आप 370ब पानी को उपर रहता है बॉडी टेम्परेचर से कम
रहता है तो ऐसा पानी पिये गुनगुना पानी पिये क्यांेकी अब ये मन में प्रश्न आएगा ।
हम तो जी ठंडा पानी पीते है । फ्रिज का पानी पिते है बर्फ डाला हुआ पानी पिते है, तो बागवटजी इसको बहुत अच्छेचे समजाते है और आध्ुनिक विज्ञान की बातें
इसमें जोड कर मै आपको समजाता हूॅं । आप अगर ठंडा पानी पी रहे है कल्पना करीए । तो
पानी क्या करेगा सीध पेट में जाएगा । और पेट को ठंडा बनाएगा जीसका जैसा गुण है
वैसा ही करेगा ना? बर्फ
का गुण है ठंडा करनेका तो बर्फ डालकर पानीमे आप पी रहे है तो बर्फ का गुण पानी मे
आ गया । अब पानी आप को पेट को ठंडा करेगा । अगर पानीने पेटको ठंडा कर दिया तो
शरीर ठंडा हो जाएगा क्यांेकी शरीर के सारे
ऑर्गन पेट से ही जुडे है, चाहे
वो आपका हार्ट, लिव्हर, किडनी हो । तो पानीने पेट को ठंडा कर
दिया तो पेट ठंडा हो गया तो आप मर जाऐंगे । तो कभी कभी ठंडा पानी ना पिये ये एक
विश्लेषण दुसरा विश्लेषण है की । पानी अगर ठंडा आपने पीया और आपका पेट जीवित है
फंक्शनल है काम अच्छे से कर रहा है । तो तुरंत पेट उस पानी को गरम करने लगेगा ।
आपका जो जठर स्थान है वो तुरंत उस पानी को गरम करेगा तो पानीको गरम करने लगेगा ।
तो पानीको गरम करने के लिए उसे अतिरिक्त उर्जा की जरूरत पडेगी । तो पानीको गरम
करने तो पानीको गरम करने और अतिरिक्त उर्जा उसको रक्त मे आएगी । तो शरीर के सब हिस्सो का रक्त पेट तरफ ही जाएगा
थोडी देर के लिए शरीर के सारे हिस्सो का रक्त पेट की तर गया है उसने बाकी हिस्सो
में रक्त की कमी कर दी । मान लिजिए हदय का रक्त, ब्रेन का रक्त पेट मे आ गया, क्यांेकी ब्रेन का सबसे पहले आता है क्योंकी ग्रॅव्हीटी का फ्रोर्स
काम करता है, ब्रेन
के बाद हदय का आता है दूसरे अंगो का रक्त पेट की तरफ गया, तो बाकी अंगो मे रक्त की कमी आ गयी ।
और ये रक्त की कमी ऐसीही आती रहे आप एैसेही ठंडा पानी पिते रहे, कमी आती रहे तो एक दिन वो अंग की रक्त
की कम सप्लाई की वजह से काम बंद करेंगे, और वो अंगो मे काम करना बंद किया तो ब्रेन हॅम्लेज पॅट्रालिसिस या
हार्ट अॅटॅक हो गया तो ये सारे बीमारीयो
को क्यो बुलाते है ठंडा पानी पी के तो ठंडा पानी ना पीये दुनिया में कुछ लोक है जो
कदम एकदम चील्ड वॉटर पीते है पानी को फीज मे रखते है और वो रखा रहता है चार पाच
दिन । खूब ठंडा हो जाता है । फिर उपर से बर्फ डालकर पीते है इतना ठंडा पानी परिणाम
कब देखा है मैंने मैंने उन लोंगो को देखा है । जो चिल्ड वॉटर पीते है वो सबेरे
सबेरे संडास घर मे गये टॉयलेट मे तो एक बार घंटा बाहर नही आते बैठेही रहते है अंदर
। उनको पूछो क्या कर रहेथे । अंदर तो कहते है जी न्यूज पेपर मॅगझीन पढ रहे थे क्यो
पढ रहे थे टॉयलेट रूम तो न्यूजपेपर के लिए, मॅक्झीन पढने के लिए बनाया नही है, तो कहते है टॉयलेट आती नही स्टूल पास होता नहीं उतरती नही तो क्या
करे ये है समस्या । जो लोक बहुत है पानी पीयेंगे उनको एक बिमारी होती है वो है कॉन्स्टीपेशन
कोष्टबद्ध्ता, कॉन्स्टीपेशन
मतबल आपकी जो इंटरस्टाईन लार्ज इंटरस्टाईन वो एकदम संकुिचत हो जाती है ये थंडे
पानी का असर है । तो अगर आप लार्ज इंटरस्टाईन संकुचित हो गयी तो आपको जिंदगी भी
संकुचित हो जाएगी । इसलिए कभी ठंडा पानी ना पीये । अब परसो मैंने एक बात कही की थी
Úिज का रखा हुआ
कुछ ना खाये तो ये पानीही उसीका हिस्सा है । आईस्क्रिम कभीभी ना खायें, क्योंकी वो भी ठंडी है, और एक बात विनम्रता पूर्वक कहता हूॅं
बागवटजी कहते है की,दो
विरूध्द चीजे एकसाथ ना खाये कभीभी । तो गरम भोजन और ठंडी आईस्क््रीम कभी ना खाये
अक्सर मे शादीयों में बारातोंमे जाता हॅंूु तो मैंने देखा है की भोजन गरमागरम
करायेगे भोजन के अंत मे आईस्क्रीम जरूर खिलाएगे । सर्वनाश ! बुला बुला के
इंव्हिटेशन देकर आपका सत्यानाश कराऐंगे ना मरो तो जल्दी मर जाओ, एैसा आजकल आतिथ्य इस देश मे चल रहा है
। पहले कहते ते अतिथी देवो भव अब कहते है अतिथी दुश्मन भव । तो आपके जीवन मे ये
सुत्रा पालन करे की पानी कभी ना पिये, पानी हमेशा घूॅंट घूॅंट कर पिये और ठंडा पानी कभी ना पिये अभी चौथा
आज का आखरी सूत्रा । बागवटजी कहते है की दिन का आपका जब शुरू होता है, दिन की शुरूवात मे सबसे की पहले पानी
ही पिये । माने सुबह उठतेही पहले,
मॅुह का कुल्ला कीये बीना । आर्युवेद के भिन्न चिकित्सकोंनेे और कहा
है की उषापान करे । मतलब दात धेये बिना पानी पिना । अगर आप सुबह बिना मुह धेये
पानी नही पी सकते तो रात्रा को कुल्ला कर सोईये दात साफ कर के सोईये उठतेही पानी
पीजिए क्यांेकी कारण पूछीये.. कारण उसका
ये है तो जब आप सोते है तो शरीर की सारी क्रियाए शिथिल हो जाती है । लेकिन
ये लार बनने की क्रिया ज्यादा श्थििल नही होती ये चालू रहती है । तो उन्होंने एक
से सव्वा लीटर का जो कैलकुलेशन बताया है वयस्कों के लिए, माने 18 से 60
साल के बीच में । और 18 से
नीचेवाले जो लोग है और 60 के
ऊपर वाले लोगों के लिए पौन लीटर माने 750 ग्राम । 750 ग्राम माने कम-से-कम 2 गिलास बुर्जुंगो और बच्चों के लिए और 3 गिलास आपके उम्र के लोगों के लिए
कम-से-कम इतना पानी पीये । पीने का तरीका मैंने बता दिया, घूँट-घूँट, सीप-सीप लेकर, मुँह में घुमा-घुमा के पानी पीना है ।
बागवटजीने कहा है ना सुबह की लार बहुत कीमती होती है । मैंने इसपर कुछ
एक्सपेरिमेंट्स एक्सपेरिमेंट्स किये । बहुत पेशंट्स ऐसे है मेरे पास जिनको
डायबिटीस है । और डायबिटीस की कंडीशन में आप जानते है की अगर कोई घांव हो तो जल्दी
भरता नहीं । तो मेरे पास ऐसे कुछ 8-10
पेशंट्स है जिनको ऐसी कंडीशन है । डायबिटीस होने के कारण शरीर में सुंथी हो गयी, पफोड़ा हो गया, तो घांव बढ़ गया अब वो भरता नहीं ।
मैंने उनकी दवाएं बंद कर दी होमिओपॅथी की । पिफर मैंने उनसे कहा की देऽो भैÕया बागवटजी कहते है की सुबह की लार
बहुत कीमती होती है तो तुम ऐसा करो सुबह उठाते ही, सुबह की जो लार है न उसको लगा दो तुम्हारे घांव पर । और आप देऽेंगे
चमत्कारऋ 15-20
दिन में घांव भरना शुरू, तीन
महीने में बिल्कुल बराबर, एक
तो मेरे पास गंगरीन का पेशंट है । डॉक्टर कहता था पैर काटना ही पड़ेगा इसका, कुछ होता नही अभी । उसने बिचारे ने
सालभर लार लगा-लगाकरही अपनेको ठीक कर दिया । तब मेरे समझ में आ गया की जानवर हमसे
ज्यादा होशियार होते है । चोट लगते ही वो चाटना शुरू कर देते है । पिफर मैंने एक
और एक्सपेरिमेंट किया । मेरे पास कुछ छोटे बच्चे है जिनको चष्मे है आँऽोंपर अब
उनके माँ-बाप बहुत परेशान है की,
ये चष्मा कैसे उतरेगा । तो मैंने उन बच्चों को भी सीऽा दिया की, देऽो सवेरे सो कर उठते हो तो मुँह का
थूंक आँऽों में लगाओ, काजल
की तरह । तो बच्चो ने चालू कर दिया । बच्चे बहुत भोले होते है, कोई भी बात समझ में आये तो कर देते है
। अब आपको हैरानी होगी की चष्मे उतर गए, सिपर्फ ये लार लगाकर । आप भी करके देऽ लीजिये, जिनको चष्मा है, बस अंतर इतना है की, बच्चोंको जल्दी उतरेंगे आपको थोड़े देर
में उतरेंगे लेकिन उतर जाएँगे । उम्र ज्यादा बढ़ गयी तो थोड़े ज्यादा दिन करना पड़ेगा, कम उम्र में तो बहुत जल्दी उतर जाते है
। आँऽोंकी रोशनी बढ़नी है तो मुँह की लार आँऽों में लगाइए, काजल की तरह । और एक बताता हूँ, एक बीमारी आती है, जिसको कहते है, कंजक्टिव्हायटीस, आँऽों की बीमारी है, अक्सर उसमे आँऽे लाल हो जाती है ।
आँऽों में बहुत जलन होती है, जैसे
ऽून उतर आया है आँऽों में, वो
कंडीशन हो जाती है । कोई भी आयुर्वेद की दवा आप खायेंगे तो तीन से चार दिन में ही
ये बीमारी ठीक हो जाती है लेकिन अगली बार ये बीमारी आये तो आप ये करना, सुबह उठते-उठते ही मुँह की लार लगानाऋ 24 घंटे के बाद आपको पता ही नही चलेगा
बीमारी कहाँ गयी । अगर बच्चों में बचपन से आँऽो का कोई रोग है, जैसे मेरे पास एक छोटा बच्चा है, आँठ साल का है, उसका में ट्रीटमेंट कर रहाँ हूँ । उसकी
आँऽे टेढ़ी हैं, वो
देऽता कही है और उसे दीऽता कही और है । अब उसके माता-पिता गरीब है और उसका ओपरेशन
का ऽर्च उठा नहीं सकते । उस बच्चेपर में यहीं एक्सपेरिमेंट कर रहाँ हूँ, लगभग चार-साडेचार महिना हो गया है, और उसके आँऽों का टेढ़ापन, जिसको हिंदी में कहते है, भेंगापन, लगातार कम हो रहा है और आँऽोंकी पुतलियाँ बिल्कुल बीच में सेट हो
रहीं है । तब मुझे जिज्ञासा हुई की और मैंने एक बहुत बड़े वैज्ञानिक को पूँछा
दिल्ली में की ये लार में क्या है ?
एक्चुअली, इसका
अॅक्टिव्ह इन्ग्रेडीयन्ट क्या है ?
तो उन्हों कहाँ की भैÕया
जितने इन्ग्रेडीयन्ट मिटटी में है वो सब लार में है । तो मैंने आपको बताया की
मिट्टðी में 18 अॅक्टिव्ह इन्ग्रेडीयन्टस है, लार में वो सब के सब है । इसलिए लार
शरीर के लिए बहुत कीमती है इसको कभी नष्ट नहीं करना, इसकी मदद से आप बहुत सारे रोग ठीक कर सकते है । और दो-चार बातें में
आपको बता दूँऋ क्या-क्या रोग आप ठीक कर सकते है । आप के शरीर में कोई दाग,ध्ब्बा जैसे जलने का दाग अगर है, तो उसपर नियमित रूप से 6-8 महीने सवेरे के लार की थोड़ी मालीश
करते रहिये, 6-8
महीने में ध्ब्बा बिल्कुल सापफ हो जायेगा । शरीर में और कुछ ऐसे अंग में सपफेद या
काला दाग हो गया, पफलाना
हो गया, एक्झिमा हो गया
मान लोह् खराब बीमारी की बात करू,
एक्झिमा पर रोज सुबह की लार लगाते रहिये, 6-8 महीने के बाद देऽिये एकदम सापफ । और
एक्झिमा से भी ज्यादा खराब बीमारी है, सोरायसिसऋ वो भी ठीक होती है, इसी लार से, बस
इतना है कीऋ सालभर करना पड़ेगाऋ मोपफत का इलाज है । बागवटजी ने जितने इलाज बताये है, सब पफोंकट,मोपफत केऋ बहार जाने की जरुरतही नहीं
है । तो आप स्कीन डिसीज, आँऽों
की बीमारियाँ, घांव
हो जाए शरीरपर कहीं तो उसपर, पफोड़े
पिफन्सिंयोपर इसका एक्सपेरिमेंट्स करिए । मैंने ये चारों एक्सपेरिमेंट्स किये, बहुत अच्छे रिझल्ट्स हैं, आप भी एक्सपेरिमेंट करिए, आपको भी रिझल्ट्स मिलेंगे, बस इतनाही है की आप दूसरों को भी बताते
जाइये । अब आपने ऽुद का दुःऽ दूर कर लिया अब दूसरों का कम कराइए न, तभी तो आप मोक्ष जाएँगे, तो मैंने आज आपको 4 सूत्रा बताएँ, उनको पिफरसे रिपीट करता हूँ । सुत्रों
के बाद प्रश्न । पहला सूत्रा मैंने बताया था, ‘भोजनांते विषमवारी’ । भोजन के बाद पानी ना पीये, लगभग डेढ़ घंटे बाद पानी पीये । दूसरा
सूत्रा मैंने बताया था, ‘पानी
हमेशा, घूंट-घूंट भर के
पीजीये, सीप-सीप लेकर
पीजीये’ । तीसरा सूत्रा
बताया था की, ‘ठंडा
पानी कभीभी न पीये, हमेशा
गुनगुना पानी पीये’, और
चौथा सूत्रा बताया था की ‘आप
सबेरे उठतेही सबसे पहले पानी पीये’,
ये चारों सूत्रा बागवट जी ने बताया है, पेट को दुरुस्त रऽने के लिए लिए आवश्यक है , आमने जिंदगीभर आपका पेट,आपकी जठराग्नि काम करती रहे, इसके लिए सबसे आवश्यक है, ठीक है ? अब आपके प्रश्नों के लिए समय ।
प्रश्न » राजीव भाई आपने कहा की, उषापान करना चाहिए । उषापान भी गुनगुना पानी होना चाहिए ? और दूसरी बात, पान जो आपने कहा खाने के लिए, तो पान के साथ क्या-क्या लेना चाहिए ?
उत्तर » मै दुसरे प्रश्न का पहले उत्तर देता हूँ की, पान के साथ क्या-क्या खाना चाहिए ?
बागवटजी ने बताया है की, एक जो पान खाये, तो वो ऐसा पान हो जिसका स्वाद कसैला
हो.. कसैला । कसैला स्वाद माने देशी पान, सीध्ी सी बात है । विलायती पान मत खाइए, देशी पान खाइए । तो स्वाद जितना कसैला
होगा, पान उतना अच्छा
होगा । और बागवटजी ने एक और गहरी बात बताई है, जिसको 2-3
दिन बाद एक्सप्लेन करनेवाला हूँ की,
जो चीज का रंग जितना ज्यादा गहरा हो, जो प्रकृती की पैदा की हुई वस्तू का रंग जितना ज्यादा गहरा होऋ वो
उतनीही बड़ी औषध्ी है । जैसे देशी पान, ज्यादा गहरे हरे रंग का होता है और विलायती पान हलके हरे रंग का होता
है । तो बागवटजी कहते है की हलके रंग की चीजे मत खाइए, गहरे रंगवाली चीजे खाइए तो गहरे
रंगवाला पान खाइए । गहरे रंग की जितनी चीजे है वो भरपेट खाइए, जैसे बैंगन,जामून, टमाटर गहरे रंग का हैऋ ये सब अँटी-कैंसरस, अँटी-डायबीटिक है, अँटी-अस्थेमॅटिक है । इनकी क्वालिटीज
आज के विज्ञानने भी प्रूव्ह किया किया है । आज का विज्ञान ये कहता है की, जो भी रंग है, किसी भी वस्तू में वो, भगवान् का दिया हुआ, प्रकृती का दिया हुआ कोई भी रस और
एंजाइम है जो आपको गंभीर बीमारियों से बचाता है । पान में क्या मिलाये ? उसमे सबसे ज्यादा चुना ! तो कितना चुना
मिलाये तो कहते है की, एक
पान में एक ग्राम से ज्यादा चुना नहीं मिलाये कभीभी । एक ग्राम, आप समझते है, चने का दाना होता है न ? आध तोड़ो और उसका आध कर लो उतना एक
ग्राम होता है । चने का दाना आध तोड़ो तो दो हिस्से हिस्से हुए, ये दो हिस्से के चार कर दो और वो एक हिस्सा जो है वो एक ग्राम होता
है । तो उतना आप चुना लगाइए उसपर । पिफर चुने के साथ क्या खाये ? आप उसमे सौंपफ खाये, सौंपफ ! दूसरा कहते है की, इसमें थोड़ी अजवाइन डालेऋ 2-4 दानेऋ ज्यादा नहीं और वो कहते है की
लवंग डाले, लवंगऋ
लौंग और कहते है की बड़ी इलायची और वो कहते है की, गुलाब के पफूल का रस,
मतलब गुलकंद जिसको आप कहते है । ये चीजे नियमित रूप में पान में खाने
के लिए बताया है । अब इसमें उन्होंने जो बोली नहीं है वो बाते ध्यान में
रखिये » सुपारी, कत्था, कहीं नहीं कहा, तो माने सुपारी और कत्था छोड़कर ही पान
खाये । ठीक है ? दूसरा
आपने पूँछा की सुबह का जो उषापान का पानी है, वो भी गुनगुना होना चाहिए । बागवटजी कहते है, जरुर गुनगुना होना चाहिए । वो एक ही
कंडीशन में कहते है की, अगर
आप ताम्बे में रखे हुए बर्तन का पानी सुबह पी रहे है तो, उसको गुनगुना करने की जरुरत नहीं है, बाकी सभी पानी को गुनगुना करके ही पीना
चाहिए । क्यों ? ये
तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी है उसमे वहीँ क्वालिटी है जो गुनगुने पानी में है
। इसलिए ताम्र पात्रा के पानी को गरम करने की जरुरत नहीं, रात में आपने भर के रखा, सुबह उठ के पी लिया बाकी कोई भी पानीऋ
स्टील के बटन का है तो गुनगुना करिये, मिट्टी के घड़े का पानी है तो गुनगुना करिये । और आपके पास क्या होता
है ? पानी भरने के
लिए ? अॅल्युमिनीयम, प्लास्टिक में तो पानी कभी मत रखिये ।
आप बोलेंगे जी, की
ताम्रपात्रा का पानी क्या रोज दिनभर पी सकते है ? तो जरुर पी सकते है तीन महीनेऋ इसके आगे नहीं ये आप सोचिये जरा ध्यान
से । वो ये कहते है की, तीन
महीने पी सकते है आप लगातार, ताम्रपत्रा
का पानीऋ पिफर बीच में 15-20
दिन का ब्रेक दे दीजिये, पिफर
3 महीने.. । ये
ब्रेक दे देकर पी सकते है, लगातार
पीयेंगे तो तांबे के अध्किता से होनेवाली बीमारियाँ है वो हो जाएँगी । सुबह तो
लगातार पी सकते है, ये
तो पुरे दिन की बात हुई । कोई लोग ऐसे है की जो पुरे दिन तांबे के बर्तन का पानी
है तो बागवटजी कहते है की, 3
महीने लगातार पीने के बाद 15
-20 दिन का गैप दीजिये पिफर 3 महीने पीजिये ।
प्रश्न » विस्तारित रूप, ये
सवाल इस तरह का है की ये मठ्ठा है नऋ उसमे पानीही है, आप जानते है । शायद उसमे 90 प्रतिशत पानी है दही तो सिपर्फ 10 प्रतिशत होता है, और ज्यूस पी रहे है उसमे भी पानीही है
और दूध् पी रहे है उसमे भी पानी है । अब बागवटजी एक तरपफ कह रहे है की खाने के बाद
पानी मत पीयो और दूसरी तरपफ कह रहे है की, मठ्ठा,दूध्,पफल का रस जरुर पीयो । तो इसमें तो
पानीही है, तो
क्या वो पानी क्या जठराग्नि को शांत नहीं करेगा ? प्रश्न ये है, वो
पूरा पूँछ पाए, मैंने
पूरा कर दिया । तो क्या वो पानी जठराग्नि को शांत नहीं करेगा ? इस सवाल का जवाब, इसका बहुत सुंदर एक्सप्लेनेशन बागवटजी
ने बताया है । वो ये कहते है की पानी का जो गुन है वो अपना कुछ नहीं, पानी को जिस पात्रा में रखा है या पिफर
जिसमे मिलाया है उसी का गुणर्ध्म वो
प्राप्त करेगा । आपने पुराना गाना सुना है ? पानी रे पानी तेरा रंग कैसा ? पिफर है, जिसमे
मिला दो उस जैसा ! तो पानी का रंग,
गुन और र्ध्म अपना कुछ नहींऋ तीन्हो ही वही होते है वो जहाँ मिल गया
। तो आपने पानी को मिलाया दहीं में तो अब वो पानी का गुण नहीं है अब वो दही का गुण
धरण करेगा । पानी को आपने मिलाया ज्यूस में माने पफल में, तो पफल के जो गुण है वो पानी में आ
जाएँगे और पानी है दूध् में तो दूध् के सारे गुण वो धरण कर लेगा । तो पानी आप सीध
पी रहे है, इंडीपेंडंटऋ
तो उसके अपने गुण होते है यकीन मिलाया हुआ पानी जब भी किसी वस्तू के साथ आप
पीयेंगे तो उस वस्तू का गुण पानी में आयेंगा । इसलिए मठ्ठा,दूध्, ज्यूस पीने को खुली छुट हैऋ पेट भर के पीयो, साध पानी मत पीजिये । अब दही का गुण
क्या है ? जठराग्नि
को प्रदीप्त करने का गुण है दही में । क्योंकि जो वस्तू में चिकनाई आती है, चिकनाई समझते है आप?, दही में भरपूर चिकनाई है, दूध् से ज्यादा चिकनाई दही में है, दही से ज्यादा चिकनाई मख्खन में है और
सबसे ज्यादा चिकनाई घी में हैं । तो बागवटजी कहते है की, जिस वस्तू में भी चिकनाई है वो अग्नी
को और भड़कायेगी । आप जो है न, घी
डालते है यज्ञ में.. तो अग्नी भड़कती है की नहीं ? ऐसे ही पेट में, घी, दही खायेंगे, दूध् पीयेंगे तो अग्नी और प्रदीप्त
होती है, माने खाने को और
जल्दी से पचायेगी । खाली पानी अग्नी को शांत कर देता है लेकिन पानी मिलाया हुआ
किसी में, अग्नी
को प्रदीप्त कर देता हैऋ क्योंकि उसके गुण वस्तू के हिसाब से बदलते है ।
प्रश्न » राजीव भाई आइसक्रीम खाने के बाद हम कॉपफी पी सकते हैं क्या ?
उत्तर » सवासत्यानाश । देखिये,
कभीभी कोई भी गरम चीज आप जैसेही खाते हैं, तो पेट ज्यादा गरम वस्तू को शरीर के
तापमान पर लाता है, आपके
पेट का तापमान वहीं है जो मुँह का है । और बगल का तापमान, मुँह के तापमान में अंतर रहता है । तो
पेट का तापमान लगभग 39-40
डिग्री के आसपास होता है । अब अगर आपने 40 डिग्री के उपर की कोई वस्तू खाई, तो अगर आपने चाय,कॉपफी
पी जिसका तापमान 55-60
डिग्री है, तो
पेट उसको पहले 40
डिग्री पर लायेगा और उसके लिए अँटी-रिअॅक्शन होता है । पानी को वो गरम से ठंडा
करेगा और पिफरसे ठन्डे को गरम करेगा । तो जैसे ये काम चल रहा है और आप ने गरम
कॉपफी के बाद ठंडी आइसक्रीम खा ली,
अब कन्फ्रयूजन वहाँ पर ये होता है की, क्या करे ? वो
पहले गरम कॉपफी को ठंडा करेऋ या ये जो ठंडी आइसक्रीम आ गयी उसको गरम करे ? तो पिफरतो बहुत कन्फ्रयूजन होता है, ऐसा कन्फ्रयूजन होता है, जैसे आप गाड़ी चला रहे हो । इसको में
समझाने के लिए कह रहाँ हूँ । और हर 1 ही मिनीट में आपको 2-3
गिअर चेंज करने पड़े, टॉप
गिअर से आपको पफर्स्ट गिअर में आना पड़े, पफर्स्ट गिअर से टॉप में जाना पड़े तो कैसे चलेगी गाड़ी ? ध्क्का देगी, तकलीपफ देगीऋ ऐसेही पेट में है की पेट
का एक गिअर पड़ा हुआ है, वो
गरम कॉपफी को ठंडा करने में लगा है,
तब तक आपने आइसक्रीम खा के, अब पेट को गिअर चेंज करना पड़ेगा तुरंत, तो इसमें हो जाएगी समस्या । तो इसलिए कॉपफी,चाय के बाद ठंडी आइसक्रीम कभीभी ना
खाये । और ठंडी आइसक्रीम के बाद कभीभी चाय,कॉपफी ना पीये । गरम भोजन के साथ कभीभी ठंडी आइसक्रीम, बरपफ आदी ना खायें ।
प्रश्न » दूध् को बागवट जी ने बोला है की शाम को ही पीना है । अब इनका प्रश्न
है की सुबह हम चाय,कॉपफी
पीते है उसमे दूध् होताही है । तो क्या करे ?
उत्तर » बागवटजी के किसी भी शब्दकोष में चाय भी नहीं है, कॉपफी भी नहीं है क्योंकि बागवट जी तो 3500 साल पहले हुए लेकिन ये चाय,कॉपफी तो 250-300 साल पुरानी हैं
। तो चाय,कॉपफी के बारे
में उनका शास्त्रा मौन है । ऐसा कोई भी सूत्रा नहीं है जिसमे चाय,कॉपफी का जिक्र आता हैं । हाँ ! काढ़े
का जिक्र उन्होंने किया है । वो ये कहते है की, जो काढ़ा आपके वात,
पित्त, कपफ
को कम करें ऐसा कोई भी काढ़ा दूध् के साथ मिलाकर सुबह पीया जा सकता है । कोई भी
काढ़ा ! जैसे आप आज काढ़ा पीने जा रहें है, वो अर्जुन की छाल का काढ़ा हैं, अर्जुन की छाल का काढ़ा आप जानते हैं ? वात को सबसे तेजी से कम करनेवाला हैं । शरीर की जो अॅसिडीटी होती हैं, या रक्त की अॅसिडीटी ही है जो हार्ट
अॅटॅक लाती हैं । तो रक्त की अॅसिडीटी कम करने की ताकदअगर किसी चीज में हैं, बागवटजी ने बताई है तो वो अर्जुन की
छाल हैं । आज आप काढ़ा पीयेंगे अर्जुन की छाल का । और सौभाग्य या दुर्भाग्य से ये
समय है दिसंबर-जनवरी और नवम्बर ये वात का ही समय हैं । शरीर में वायु का प्रकोप
ठण्ड के दिनों में ज्यादा होता हैं । उस समय अगर आप अर्जुन के छाल का काढ़ा दूध्
में बनाकर पीयें तो आपके लिए औषध्ी हैं । जी ? गरम-गरम ! क्योंकि वो औषध्ी हैं । भोजन नहीं है । भोजन और औषध्ी में
अंतर बताया हैं । भोजन वो है जो आप नियमित रूप से आपके पेट की आवश्यकता के अनुसार
खायें, और सालोंसाल
खाते जाएँ । औषध्ी वो है जो थोड़े समय के लिएऋ तात्कालिक प्रभाव के लिए आप पीयें ।
तो ये काढ़ा औषध्ी हैं । सुबह के ये नवम्बर, दिसंबर, जनवरी
ये वात के महीने माने जाते हैं । पिफर गर्मीयों के, पित्त के महीने आ जाते हैं । पिफर बारीश और उसके आगे थोड़े कपफ के
महीने आ जाते हैं । तो ये वात-पित्त-कपफ के महीने भी होते हैं । तो इस महीनों के
हिसाब से सुबह अध् पी सकते हैं वात को दूर करनेवाली औषध्ीयों को दूध् में मिलाकर, और काढ़ा गरम है हैं, ठंडा काढ़ा वैसे हे नहीं, बनता भी नहीं । तो आप सुबह दूध् पीना
ही चाहते हैं तो काढ़े के रूप में पीजिये । तो आप अर्जुन के छाल की पावडर डाल के
काढ़ा बनाकर पी सकते हैं तो भविष्य में दो पफायदे होंगे । आप हार्ट-अटैक Úी हो जायेंगे पूरी गारंटी के साथ..
भविश्य के लिए और अब तक आपने जो कचरा खाया हैं, उसके बाहर निकलने की गारंटी । क्योंकि ये अर्जुन के छाल का पाउडर है, जो रक्त को सबसे ज्यादा शुदध् करता हैं, और कचरा सबसे ज्यादा रक्त में ही जमा
होता हैं, जिसको
कोलेस्ट्रोल कहते है ना ? वो
कचरा ही हैं । तो अबतक आप के रक्त में जो कोलेस्टेरॉल हैं, इसको निकालना है बाहर तो अर्जुन की छाल
इसमें सबसे ज्यादा उपयोगी हैं और सौभाग्य की बात हैं 20 रुपये किलो मिलती हैंऋ 150 रुपये किलो चाय मिलती हैं, 1400 रुपये किलो
कॉपफी मिलती हैं और 20
रुपये किलो अर्जुन की छाल मिलती हैं, तो कुछ तो होशियार बनियें, कुछ तो मारवाड़ी बनियें, कुछ तो रक्त में लाइए मारवाड़ का राजस्थान का, गुजरात का । तो 20 रुपये किलो अर्जुन की छाल का काढ़ा
नियमित रूप से आप पीजिये । मई आपको विनम्रतापूर्वक ये बात कह रहाँ हूँ की आब सब
आपके घर में , 3
महीने रोज सवेरे अर्जुन की छाल का पावडर दूध् में डालकर काढ़ा बनाकर पीते रहियें ।
क्वांटिटी कितनी रहनी चाहिए ? एक
गिलास दूध्, तो
आध चम्मच अर्जुन की छाल का पाउडर ! और इसमें अगर गुड मिलायेंगे तो बहुत अच्छा ।
गूळ नहीं मेले तो गुड जैसी एक चीज आती हैं, काकवी, वो
तरल , लिक्विड पफॉर्म
का गुड होता हैं, तो
या तो काकवी या पिफर गुड.. नहीं मिले तो खांड । और कुछ भी नहीं मिले तो गुरहा..
शक्कर नहीं । बागवटजी कहते हैं क्योंकि उनके समय नहीं थी । चीनी बनाना 200 साल पहले शुरू हुआ हैं ।
प्रश्न » उत्तर » जी
मिश्री ? मिश्री मिठाइयों
में सबसे उच्च स्थान पर हैं, गुड
से भी उच्च हैं मिश्री, तो
मिश्री मिले शुदध् तो वो डालियें आप आपके काढ़े में, अंत में कुछ नहीं मिला तो बूरहा डालिए और वो भी जो राजस्थान में बनता
हैं यहाँ का नहीं, चीनी
को पीसते हैं तो बूरहा, वो
चीनी ही है, बूरहा
नहीं । सुनत है तो बहुत अच्छा हैं । अर्जुन की छाल और सुनत मिलाकर इस्तेमाल करें, तो सर्वोत्तम वातनाशक काढ़ा होता है ।
ये घुटनों का दर्द, कंबर
का दर्द, डायबिटीस ये सब
वात के रोग है ।
प्रश्न » कहा जाता है की, डाल
और दहीं साथ में नहीं लेना चाहिए । दोपहर को भोजन के समय दाल खायेंगे और उसके बाद
छाज पीयेंगे तो क्या वो सही रहेगा ?
उत्तर » द्विदल आप समझते हैं,
द्विदल के साथ दही का निषेध् हैं, बागवटजी ने भी कहा हैं, महावीर स्वामी ने भी कहा हैं, गौतम रुषी, सबने
कहा है, द्विदल के साथ
दही का निषेध् है । अब इनका प्रश्न हैं, हमने तो दाल-चावल खाया । चावल तो ठीक हैं, लेकिन दाल तो द्विदल ही हैं । तो
द्विदल के साथ दही कैसा ? तो
उसके लिए बागवटजी कहते हैं की, कभीभी
द्विदल के साथ दही खायें, तो
अच्छा है ना खायेंऋ लेकिन खा रहें है तो दो बातों का ध्यान रखिये की दही की तासीर
बदले और उसकी तासीर को बदलकर दाल की जैसी तासीर हो, वैसी तासीर करें । माने दही का प्रोटीन कंटेंट बढायें, तो इसके लिए बहुत सरल उपाय हैं आपके
रसोई में । रसोई में तीन चीजे ऐसी हैं जो दही के तासीर को तुरंत बदलती है, एक तो है जीरा, दूसरा हैं सैंध्व या काला नमक, ये जो आयोडीन नमक आ रहा है उसकी बात
में नहीं कर रहा हूँ, सैंध्व
या काला नमक । तीसरी है अजवाइन,
तो मेरा ऐसा निवेदन हैं आपसे की, अगर आप टाक पी रहे हैं दाल-चावल के साथ, तो अजवाइन, जीरे का बघार ले-लें, और थोडा सैंध्व नमक डाल ले पिफर पी ताक
याने मठ्ठा पी लें, अद्रक
? अद्रक की जगह
सुंठ, दही में कही भी
अद्रक उपयोगी नहीं होता, सुंठ
उपयोगी होता हैं । अद्रक और सुंठ में थोडा अंतर हैं, सुंठ अद्रक से ही आता हैं, लेकिन सुंठ का गुण अद्रक से ज्यादा हैं ।
प्रश्न » उत्तर »
वैसे Úूट खा सकते हैं सुबह । माने नाश्ता ही Úूट का करें, ज्यूस भी पीना हैं तो Úूट का पीयें । तो सुबह का समय Úूट के लिए सबसे अच्छा है लेकिन बाकी
समय में भी आप Úूट
कभीभी खा सकते हैं, जो
प्रकृती के द्वारा पकाया गया, माने
कैल्शियम कार्बाईट मिला के नहीं पकाया हुआ ।
प्रश्न » ठंडा छाज बच्चों को दे सकते हैं क्या ?
उत्तर » बिल्कुल ! बच्चों को भी दे सकते हैं । तीन महीने के बच्चे को अजवाइन
डाली हुई छाज दियी जा सकती हैं ।
प्रश्न » सनबर्न ?
उत्तर » सनबर्न के लिए लार बिल्कुल अच्छी है । देखिये आप में से जो भी कोई
माताएं-बहने हो जिनको आँखों के नीचे काले-काले सर्कल की समस्या हो, तो सवेरे उठाते ही उसपार लार से मालिश
करते रहो आपके सारे डार्क-सर्कल बिल्कुल चले जायेंगे । पफेयर अँड लवली से ज्यादा
प्रभावी हैं ।
प्रश्न » गर्मी के मौसम में हम राजस्थान में ठंडी-ठंडी से मटकी लाकर ठंडा पानी
पीते हैं, तो
इतना ठंडा पानी हम पीये या नहीं ?
उत्तर » जो मिट्टी के घड़े का पानी हैं, वो रूम तापमान से थोडा ही कम हैं, जैसे रूम टेम्परेचर 25
डिग्री होगा, तो
मिट्टी के घड़े का पानी 23
डिग्री तक होगा, तो
ज्यादा ठंडा नहीं है, ये
जो Úिज का पानी हैं, ये 3-4 डिग्री होगा, ये बहुत ठंडा हैं ।
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