मै आपसे तीन
दिनांे से जो बात कर रहँा हूँ उसी बात को थोडा आगे बढाता हूँ और आज की बात मै आपके
लिए बहूत महत्वकी मानता हूँ अब तक मैंने आपसे अटांग व्हदयाम केजीन सुमोपर चर्चा की
हैं हम लोग हर एक विषय में आप जानते हैं एक थिअरी होती हैे और एक प्रॅक्टीअल होता
है अब आप समझीये अब तक और थोडीसी और बात करूॅंगा थिअरी की जो बची हुयी हैं फिर
उसके बाद आज मैं प्रॅक्टीकल बातें करूॅंगा अगर मैं और एक भाषा में बात करू तो आप
मेसे कोई लोग अगर वकालत वकील के पेशे मे हो तो आप जानते है की, कोई फेसला सुनाता
है तो उसका कोई को ऑपरेटिव्ह पार्ट होतो है फॅक्शनल ऑपरेटिव्ह पार्ट वो शुरू हो गा
आजसे। तो अबतक मैंने आपसे सूत्रा रूप में कुछ बाते आपके साथ विज्ञान के साथ जोडकर
रखने की कोशीश की आज कुछ ऐसी बाते, जो दैनिक जीवन में आप प्रयोग करें । इन सूत्रों के आधरपर
आगे भी बहुत कुछ है जो बागवटजी ने कहा है । साध्वीजी उपस्थित है उनको जानकारी के
लिए एक छोटीसी बात, जो आपके लिए शायद पुरानी लगेगी, शायद उनके लिए नयी होगी, उनके व्याख्यानो
में ये बाते सैकडों लोगो से कह सकती है इसलिए मे पश्चात हूँ । साध्वीजी हम यहँा पर
बात कर रहे है 3500 हजार सात पहले भारत में एक महान व्यक्ती हुए
उनका नाम था बागवट )षी उनकी लिखी हुई दो शास्त्राीय पुस्तकों पर हम चर्चा कर रहे
है । एक उनकी पुस्तक है अष्टांगसंग्रहम । ये दोनो पुस्तकों मे महर्षी बागवटने 7000 सूत्रा लिखे है
संस्कृत मे लिखे है । ये सूत्रा हमारे दैनिक जीवन से जुडे हुए है हमारे जीवन में
हमे स्वस्थ रहना है, । निरोगी रहना है तो स्वस्थ और निरोगी रहने के लिए क्या
क्या करना चाहिए ये सूत्रा बागवटजीने लिखे है बागवटजी महर्षी चरक के शिष्य थे ।
चरक )षी का नाम हम सब जानते है और चरक )षी के बेहतरीन शिष्यों मे बागवटजी की गिनती
होती है, सबसे इंटेलिजंट
माने जाते है । चरक )ये जितना शोध्कार्य किया बागवटजीने उससे भी ज्यादा काम किया, 135 वर्ष उनकी आयु
सही 135 वर्ष मे लगभग आप
समझ लीजिए 18 वर्ष छोडकर ,18 वर्ष तक वो ये कहते है की, मै प्राथमिक अध्यक्ष कर रहा था तो 18 वर्ष छोडकर बाकी
साल उन्होने गहन अध्ययन मे लगाइ्र और उन्हांेने कोई एक सूत्रा लिखा तो उसपर कम से
कम 50 तो उन्होने
ऑब्झवेशन्स किए । आज का जो विज्ञान है जिसे हम आध्ुनिक विज्ञान कहते है वो
ऑब्झवेशन निरीक्षण परीक्षण तो अगर उन्होने कोई सूत्रा बताया तो उसका कम से कम 50 परीक्षण किये ।
अलग अलग परिस्थिती और अलग अलग लोंगोपर किया और उन्होने जब देखा की परिणाम वही है
तब उन्हांेने सूत्रा लिखा । अब हम कल्पना करे 7000 सूत्रा लिखे और एक एक सूत्रा पर 50-50 परीक्षण
उन्होंने किये है तो पूरी जिंदगी उनकी इसी मे निकल गई । महर्षी बागवट
बालब्रम्हचारी ये, अंतिम समय तक वे ब्रम्हचारी रहे, गृहस्थाश्रम उन्होने नहीं लिया लेकिन वो मानते
थे की गृहस्थाश्रम बहुत महत्व का है । तो ऐसे महर्षी बागवट के सूत्रो के पिछले 6 सालांे से मे
पढता रहा और भारत की जो परिस्थिती है उसमे ये बहुत अनुकुल है, । हमारे भारत की
परिस्थिती कुछ ऐसी है 12 करोड लोग इस देश मे रहते है उनके से 78-80 प्रतिेशत लोग
बीमार है, सरकार कहती है 30 करोड लोग स्वस्थ
है । बाकी अलग अलग बीमारीया है, वात पित्त कफ की बीमारीया है और इन बीमारीयो को इलाज करने
वाले 23 लाख रजिस्टर्ड
डॉक्टर है, । सरकार कहती है की उन्हांेने अ नं रजिस्टर्ड
डॉक्टरर्स है, 25 लाख के आसपास । तो कूल मिलाकर हम 50 लाख डॉक्टरर्स मान ले रजिस्टर्ड अनरजिस्टर्ड
मान ले तो मरीजो की संख्या 70 से 80 करोड है । एक
डॉक्टर एक दिन मे अच्छे काम करे तो 30 ज्यादा मरीज देख नहीं पाता तो मैने एक दिन
हिसाब लगाया वो भी 75 से 80 करोड है तो बागवटजी एक सूत्रा लिखकर चले गए वो सूत्रा
लिखकर चले गए वो सूत्रा है की हर व्यक्ती अपनी चिकित्सा स्वयं कर सकता है । और इस
बात को उन्होंने कहा की 85 प्रतिशत चिकित्सा बहुत आसान है जो कोई भी व्यक्ती स्वयं कर
सकता है । 15 प्रतिशत चिकित्सा थोडी कठीण है जिसमें आप को विशेषत की जरूरत पडती है । तो
मैने सोचा की, क्यू न ये जो 85 प्रतिशत चिकित्सा आसान है तो मैने सोचा की,क्यू न थे जो 85 प्रतिशत
चिकित्सा आसान है वो लोगो तक पहुँचायी जाए इस दृष्टी से ये व्याख्यान शृंखला आयोजित
की है । यहाँपर श्रीमती प्रभादेवी जयप्रकाश जीके, नाम से चलनेवाला एक ट्रस्ट है उसके मुख्य
व्यक्ती मेरे साथ है श्री. शोभाकांतजी दास और उनके पुत्रा प्रदीप भाई उनके सहयोगी
निरंजनभाई और मेघाजी इन सब ने मिलके आयोजन किया और मेरे जीवन का ये पहला व्याख्यान
है जो मै इस विषयपर दे रहाँ हॅंू । इसके पहले इस विषय पर मैने कभी बात ही नही की
थी क्यांेकी अभीतक मैं अध्ययनही करता रहाँ और ये बात करने का ऐसा हो गया की एक दिन
में शोभाकांतजी के घर खाना खा रहा था प्रदीपभाई के साथ बात हो गई थी की, क्यो न इस विषय
पर बात किया जाए..... । तो ऐसेही ये तय हो गया अनायास, । लेकिन मुझे लगा की शायद ये सार्थक हुआ । कई
लोगो ने मुझे कहा खासकर बाबूजी माने शोभाकांतजीने मुझे कहा की तुम पुराने भाषण
देना बंद कर दो वो तो पेप्सी, कोकाकोला वाले और विदेशी स्वदेशीवाले ये ही कहो शायद यही सब
लोग कहते है । सबका मत बना तो शायद इस विषय मे और आगे रिसर्च करके बात करता रहूँगा
। तो अब तक हमने 3 दिन की व्याख्यान माला पूरी की है वे आज चौथा दिन शुरू हो रहा है तो कल तक के
जितने सूत्रा थे वो एक बार में दोहरा दूँ
ताकि आपको याद हो जाएँ । कल का सबसे महत्व का सूत्रा मैने बोला या की, आप खाना खाने के
बाद पानी ना पीये, पानी हमेशा डेढ घंटे के बाद पीये कारण उसका मैने बहुत
विस्तार से बतादि या था । दूसरा सूत्रा था कल का की पानी हमेशा घूटँ घूटँ भर के
पीयेे एक एक सीप लेकर पानी पीये जैसे आप
गरम दूध् पीते है । और उसका कारण भी मैने आपको समझाया था । तीसरा सूत्रा है आप जब
भी पानी पीये तो कभीभी ठंडा पानी ना पीये । हमेशा गुनगुना पानी पीये जैसे जैन
दर्शन मे इसे पक्के पानी की बात कहा जाता है । वो बिल्कुल वैज्ञानिक है, बागवटजी उसका
समर्थन करते है । हमेशा गुनगुना पानी की कोशिश करे आप में से कई लोगों मे सवाल
पूँछे थे की गर्मीयांे मे क्या गुनगुना पानी पीये ? बागवटजी की माने तो गर्मियो मे भी गुणगुणा पानी
पी सकते है लेकिन कोई बहुत तकलीक आए तो मिट्टी के बर्तन का पानी आप गर्मी के दिनो
मे 3-4 महिने पी सकते
है फिर चौथा सूत्रा ये था कल का सी पानी कभी पीये तो सवेरे उठतेेही जरूर, पीये, माने सुबह की
शुरूवात पानी से करे और उसमें मैने बताया था की, मुह का कुल्ला किये बीना रोज उठतेही आप को पानी
पीना है क्योकी रात को आप सोते है तो जो कुछ भी लार मुह पे बनी है ये बहुतही कीमती
है इसका औषध्ी गुण बहुत है और जैन दर्शन मे इसको अहिंसा के साथ जोडा है और वो मैने
करके भी देखा है की, सुबह की लार गलती से थी आपकी किसी भी चीटा चीटा चीटा था
मख्खी परथूक दो पुरंत मर जाएगी क्योंकी सार का औषध्ी ये गुण बहुत प्रबल होता है
सुबह सुबह । जैन दर्शन मे इसको अहिंसा से जोडी बागवटजी ने इसको शरीरस्वास्थ से इसे
जोडा । तो कल मैने ये चार सूत्रा आपको बताये थे बहुत फंक्शनल है ऑपरेटिव्ह है । इसके पहले पॉंच सूत्रा जो दो
दिनो पहले मैने बात की थी आनेवाले शायद एक दिन मै सब सूत्रों को फिरसे रिपीट कर
दूॅंगा ताकि आप भूल ना पाए आसानी से याद रखे ।
अभी में आगे बढाता हूॅं । बागवटजी
कहते है, ये बहुत गहरी बात
वो ये कहते है जब आप भोजन करे कभीभी तो भोजन का समय थोडा निश्चित करें । भोजन का
समय निश्चित करें । ऐसा नहीं की कभीभी कुछ भी खा लिया । हमारा ये जो शरीर है वो कभीभी कुछ खाने के लिए नही है । इस
शरीर मे जठर है, उससे अग्नी प्रदिप्त होती है । तो बागवटजी कहते है की,
जठर मे जब अग्नी सबसे
ज्यादा तीव्र हो उसी समय भोजन करे तो आपका खाया हुआ, एक एक अन्न का हिस्सा पचन मे जाएगा और रसमे
बदलेगा और इस रस में से मांस मज्जा रक्त मल मूत्रा मेद और आपकी अस्थियाँ इनका
विकास होगा । तो कभीभी कुछ भी ना खाये । ये पद्ध्ती भारत की नहीं है, ये युरोप की है ।
युरोप में डॉक्टर्स है वो हमेशा कहते रहते है की थोडा थोडा खाते रहो, कभीभी खाते रहो ।
हमारे यहाँ ये नहीं है, आपको दोनों का अंतर समझाना चाहता हूँ । बागवटजी कहते है की, खाना खाते का समय
निर्धरित करें । और समय निर्धरित होगा उससे जब आप के पेट में अग्नी की प्रबलता हो
। जठरग्नि की प्रबलता हो । बागवटजी ने इसपर बहुत रिसर्च किया और वो कहते है की, डेढ दी साल की
रिसर्च के बाद उन्हें पता चला की जठरग्नि कौनसे समय मे सबसे ज्यादा तीव्र होती है
। तो वो कहते की सूर्य का उदय जब होता है, तो सूर्य के उदय होने से लगभग ठाई घंटेतक
जठरग्नि सबसे ज्यादा तीव्र होती है । सूर्य का उदय होना आप चेन्नई के हिसाब से मान
लीजीये की 7 बजे से 9 बजे तक जठरग्नि सबसे ज्यादा तीव्र होगी । हो सकता है ये इसी सूत्रा अरूणाचल
प्रदेश में बात करूँ तो वो चार बजे से साडे छह का समय आ जाएगा । क्यांे कि अरूणाचल
प्रदेश में सूर्य 4 बजे निकल आता है । अगर सिक्कीम मे कहूँगा तो 15 मिनिट और पहले
होगा, यही बात अगर मे
गुजरात मे जाकर कहूँगा तो आपसे समय थोडा भिन्न हो जाएगा तो सूत्रा के साथ इसे
ध्यान मे रखे । सूर्य का उदय जैसे ही हुआ उसके अगले ढाई घंटे तक जठर अग्नी सबसे
ज्यादा तीव्र होती है । तो बागवटजी कहते है इस समय सबसे ज्यादा भोजन करंे ।
बागवटजी ने एक और रिसर्च किया था, जैसे शरीर के कुछ और अंग है जैसे हदय है, जठर,किडनी,लिव्हर है इनके
काम करने का अलग अलग समय है इसे 5ः30,इस समय तो सर्वोदय, से ढाई घंटे तक । फिर हदय हदय के काम करने को
समय है सबसे ज्यादा, ब्रम्हमुहुर्त से लेकर ढाई घंटे से पहले तो ब्रम्हमुहुर्त
आप समझते है,4ः00,4ः30, बजे तक हार्ट
सबसे ज्यादा सक्रीय होता है और सबसे ज्यादा हार्ट अॅटॅक उसी समय मे आते है । किसी
भी डॉक्टर से पूछ लीजीए, क्यांेकी हदय सबसे ज्यादा उसी समय में तीव्र । सक्रीय होगा
तो हदय घात भी उसी समय होगा इसलिए 99» हार्ट अॅटॅक अर्ली मॉनिंग्ज मे ही होते है ।
इसलिए तरह हमारा लिव्हर किडनी है, एक सूची मैने बनाई है, बाहर पुस्तको मे है । संकेतरूप मे आप से कहता
हूँ की शरीर के अंग का काम करने का समय है, प्रकृतीने उसे तय किया है । तो आप का जठर अग्नी
सुबह 7 से 9.30 बजे तक सबसे
ज्यादा तीव्र होता है तो उसी समय भरपेट खाना खाईए । ठीक है । फिर आप कहेगे दोपहर
को भूख लगी है तो थोडा और खा लीजीए । लेकीन बागवटजी कहते है की सुबह का खाना सबसे
ज्यादा । अगर आज की भाषा में अगर मे कहूँ तो आपका नाष्टा भरपेट करे । और अगर आप दोपहर का भोजन आप कर रहे
है तो बागवटजी कहते है की, वो थोडा कम करिए नाश्ते से थोडा 1/3 कम कर दीजीए और रात का भोजन दोपहर के भोजन का 1/3 कर दीजीए । अब
सीध्े से आप को कहता हूँ । अगर आप सवेरे 6 रोटी खाते है तो दोपहर को 4 रोटी और शाम को 2 रोटी खाईए । अगर
आप को आलू का पराठा खाना है आपकी जीभ स्वाद के लिए मचल रही है तो बागवटजी कहते है
की सब कुछ सवेरे खाओ, जो आपको खानी है सवेरे खाओ, हालात की अगर आप जैन हो तो आलू और मूली का भी
निषिध्द है आपके लिए फिर अगर जो जैन नहीं है, उनके लिए ? आपको जो चीज सबसे ज्यादा पसंद है वो सुबह आओ ।
रसगुल्ला , खाडी जिलेबी, आपकेा पसंद है तो सुबह आओ । वो ये कहते हे की इसमें छोडने की जरूरत नहीं सुबह
पेट भरके खाओ तो पेट की संतुष्टी हुई , मन की भी संतुष्टी हो जाती है । और बागवटजी
कहते है की भोजन में पेट की संतुष्टी से ज्यादा मन की संतुष्टी महत्व की है। मन
हमारा जो है ना, वो खास तरह की वस्तुआंे से, हार्मोन्स , एंझाईम्स से संचालित है । मन को आज की भाषा में डॉक्टर लोग
गिनते है न, हालात की वो है नहीं लेकिन उन्हांेने जो कहा है
वो पिनियल गलॅंड हैं नं ,इसमे से बहुत सारा रस निकलता है । जिनको हम हार्मोन्स ,एंझाईम्स कह सकते
है ये संतुष्टी के लिए सबसे आवश्यक है , पिनियल ग्लॅंड तो भोजन आपको अगर तृप्त करता है
तो पिनियललॅंड आपकी सबसे ज्यादा सक्रीय है तो जो भी एंझाईम्स चाहीए शरीर को वो
नियमित रूप मंे समान अंतर से निकलते रहते है । और जो भोजन से तृप्ती नहीं है तो
गडबड होती है पिनियल ग्लॅंड मंे । और पिनियल ग्लॅंड की गडबड पूरे शरीर मे पसर जाती
है । और आपको तरह तरह के योगो का शिकार बनाती है । अगर आप तृप्त भोजन नहीं कर पा
रहे तो निश्चित 10-12 साल के बाद आपको मानसिक क्लेश होगा और रोग होंगे । मानसिक
रोग बहुत खराब है । आप सिझोफ्रनिया डिप्रेशन के शिकार हो सकते है आपको कई सारी
बीमारीया ,27 प्रकार की बीमारीया आ सकती है , । कभीभी भोजन करे तो, पेट भरेही ,मन भी तृप्त हो । ओर मन के भरने और पेट के
तृप्त होने का सबसे अच्छा समय सवेरे का है । अब मैने ये बागवटजी के सूत्रों को
चारो तरफ देखना शुुरू किया तो मुझे पता चला की चारो तरफ देखना शुुरू किया तो मुझे
पता चला की, मनुष्य को छोडकर जीव जगत का हर प्राणी इस सूत्रा का पालन कर रहा है । मनुष्य
अपने को होशियार समझता है । लेकिन मनुष्य से ज्यादा होशियारी जीव जगत के प्राणीयों
मंे है । आप चिडीया को देखो, कितने भी तरह की चिडीये, सबेरे सुरज निकलते ही उनका खाना शुुरू हो जाता
है , और भरपेट खाती है
। 6 बजे के आसपास
राजस्थान, गुजरात में जाओ
सब तरह की चिडीया अपने काम पर लग जाती है। खूब भरपेट खाती है और पेट भर गया तो चार
घंटे बाद ही पानी पीती है । गाय को देखिए सुबह उठतेही खाना शुुरू हो जाता है ।
भैंस, बकरी ,घोडा सब सुबह
उठतेही खाना खाना शुुरू करंेगे और पेट भरके खाएँगे । फिर दोपहर को आराम करेंगे तो
यह सारे जानवर ,जीवजंतू जो हमारी आँखो से दीखते है और नही भी दिखते ये सबका भोजन का समय सवेरे
का हैं । सूर्योदय के साथ ही थे सब भोजन करते है । इसलिए,
थे हमसे ज्यादा स्वस्थ
रहते है । मैने आपको कई बार कहा है आप उसपर हँस देते है किसी भी चिडीया को
डायबिटीस नही होता किसी भी बंदर को हार्ट अॅटॅक नहीं आता । बंदर तो आपके नजदीक
होता है नं में शरीररचना बस बंदर और आप में यही फरक है की बंदर को पूछ है आपको
नहीं है बाकी अब कुछ समान है । तो ये बंदर को कभी भी हार्ट अॅटॅक, डासबिटीस नहीं ।
मेरे एक बहुत अच्छे मित्रा है, डॉ. राजेंद्रनाथ शानवाग । वो रहते है कर्नाटक में उडूपी नाम
की जगह है वहाँपर रहते है । बहुत बडे ,प्रोफेसर है, मेडिकल कॉलेज में काम करते है । उन्होंने एक
बडा गहरा रिसर्च किया । तो उन्होने तरह तरह के व्हायरस और बॅक्टेरिया बंदर के शरीर
मे डालना शुरू किया, कभी इंजेक्शन के माध्यम से कभी किसी माध्यम से । वो कहते है, मैं 15 साल असफल रहाँ ।
बंदर को कुछ नहीं हो सकता । और मैने कहा की आप ये कैसे कह सकते है की, बंदर कुछ नहीं हो
सकता , उन्हांेने कहा की
मैने बहुत ही नहीं । तब उन्हांेने एक दिन रहस्य की बात बताई वो आपको भी ,बता देता हूँ ।
की बंदर का जो है नं, दुनिया में ,सबसे आदर्श है, और आपका कोई नापता है ना डॉक्टर तो वो बंदर से
ही कंम्पेअर करता है , वो कहता नहीं आपको ये अलग बात है । कारण उसका ये है की, उसे कोई बीमारी आ
ही नहीं सकती । ब्लड मे कॉलेस्टेरॉल बढता ही नहीं । ट्रायग्लेसाईड कभी बढती नहीं
डासबिटीस कभी हुई नहीं । शुगर कितनी भी बाहर से उसके शरीर मे डंट्रोडयूस करो, वो टिकती नहीं ।
तो वो प्रोफेसर साहब कहते है की, यार ये यही चक्कर है ,की बंदर सवेरे सवेरेही भरपेट खाता है । जो आदमी
नहीं खा पाता । तो वो प्रोफेसर रवींद्रनाथ शानवागने अपने कुछ मरींजों से कहा की
देखो भÕया , बंदर खाओ, सुबह सुबह भरपेट
खाओ ।तो उनके कई मरीज है वो मरीज उन्हे बताया की सुबह सुबह भरपेट खाना खाओ तो उनके
मरीज बताते है की, जबसे उन्हांेने सुबह भरपेट खाना शुुरू किया फिरती की, डासबिटीस
माने शुुगर कम हो गयी, किसी का
कॉलेस्टेरॉल कम हो गया, किसी के घटनों कादर्द कम हो गया कमर का दर्द कम हो गया जैसे
बनाना बंद हो गई पीठ मे जलन होना, बंद हो गयी नींद
अच्छी आने लगी ..... वगैरा ..वगैरा । सारे इंम्प्रूव्ह मेंअस् होते हैं और ये बात
बागवटजी 3500 साल पहले कहते ये की सुबह की खाना
सबसे अच्छा । माने जो मी स्वाद आपको पसंद लगता है वो सुुबह ही खाईए । तो सुबह के
खाने का समय तय करिये । तो समय मैने आपका बता दिया की, सुरज उगा तो ढाई घंटे तक । माने 9.30 बजे तक, ज्यादा से ज्यादा
10 बजे तक आपक भोजन
हो जाना चाहिए । और ये भोजन तभी होगा जब आप नाष्टा बंद करंेगे । ये नाष्टा
हिंदुस्थानी ची नहीं है । ये अंग्रेजो की है और आप जानते है ना हमे यहाँ क्या
चक्कर चल गया, नाष्टा थोडा कम, करेंगे ,लंच थोडा जादा करेंगे, डिनर से ज्यादा करंेगे । सर्वसत्यानाष । एकदम
उलटा बागवटजी कहेते है की, नाष्टा सबसे ज्यादा करांे लंच थोडा कम करो और डिनर सबसे कम
करो । हमारा बिलकूल उलटा चक्कर चल रहा है ये अग्रेज और अमेरिकीयो के लिए नाष्टा
सबसे कम होता है कारण पता है वो लोग नाष्टा हलका करे तो ही उनके लिए अच्छा है।
हमारे लिए नाष्टा ज्यादा ही करना बहूत अच्छा है । कारण उसका एकही है की अंग्रेजो
के देष में सूर्य जलदी नही निकलता साल में 8-8 महिने तक सूरज के दर्षन नहीं होते और ये
जठरग्नी है । नं ?
ये सूरज के साथ सीधी
संबंध्ति है जैसे जैसे सूर्य तीव्र होगा अग्नी तीव्र होगी । तो युरोप अमेरिका में
सूरज निकलता नहीं - 400से. तापमान होता है 8-8 महिने बर्फ पडता है तो सूरज तो जठरग्नी
तीव्र नहीं हो सकती तो वो
नाष्टा हेवियर नही कर सकते करेंगे
तो उनको तकफील हो जाएँगी । इसलिए मैंने सबसे पहले दिन का सूत्रा कहा था । आबो हवा
अपना पर्यावरण, अपना वातावरण तासीर इसको ध्यान में रखकरही चले तो आप के देश की जो तासीर हैं
वो यह है की, हर दिन सूरज निकलता है सूरज निश्चित रूप मे निकलता है अगले दिन भी निकलेगा ।
करोडो साल से निकल रहा है अगले करोंडे साल तक निकलेगा इसलिए ये भारत मैं ।म्अमतल
उवतदपदह पे हववक उवतदपदह अभी सुबह अच्छी
है युरोप वाले तरसते है गुड मॉर्निंग के लिए ; अच्छी सुबह होती नहीं वहॉं पर। इसलिए हर एक
आदमी दूसरे को विश करता है इसलिए वो गुड मॉर्निग वाले लोक है । हमारे यहॉं पर
।म्अमतल उवतदपदह पे हववक उवतदपदह तो हमे गुड मॉर्निगउ से निकलना है । नमस्ते में
नमस्कार मैं आईए ये गुड मॉर्निग आपके लिए काम की चील नहीं है । और ये गुड मॉर्निग आपके पेट के लिए अच्छी होगी, याने जितनी
जठरग्नी तीव्र होगी । उतना ही अच्छा भोजन करेंये । तो वो कहेंते है की, सुबह का खाना आप
भरपेट खाईए । माने नाष्टे को लंच में बदल
दिजीए । ठीक है ? फिर आप इसमें तुर्क - कुतुर्क मत करीए ,की हम को दुनिया दारी संभालनी है , किसलिए ,पेट के लिए हीं
ना? तो पेट को
दूरूस्त रखईये , तो मेरा कहना है की, पेट दुरूस्त रखा तो ही ये संभाला तोही दुनिया दारी संभलती
है और ये गया तो दुनिया दारी संभालकर करंेगे क्या? मान लीजिए, पर ठिक नहीं है , स्वास्थ ठिक नहीं है ,
आप ने दस करोंड कमालिया
क्या करेंगे, डॉक्टर को ही देगे ना ? तो डॉक्टर को देनेसे अच्छा किसी गोशाला वाले को दिजीए ;और पेट दुरूस्त
कर लिजिए । तो पेट आपका है तो दुनिया आपकी है । आप बाहर निकलिए घरके तो सुबह भोजन
कर के ही निकलिए । बारा दोपहर एक बजे में जठराग्नी की तीव्रता कम होना शुरू होता
है तो उस समय थोडा हलका खाए माने जितना सुबह खाना उससे कम खाए तो अच्छा है। ना खाए तो और भी अच्छा । खाली फल खायें , ज्यूस दही मठठा
पिये । शाम को फिर खाये । अब षाम का बागवटजी कहते है आपने एक चीज देखी है नं. 1 वो प्रकृती से
बहूत सीकने की जरूरत हैं । दीपक । भरा तेल का दिपक आप जलाना शुरू किजीए । तो पहिली
लव खूप तेजी से चलेगी और अंतिम लव भी तेजीसे चलेगी माने जब दीपक बूजनेवाला होगा, तो बुझनेसे पहले
तेजीसे जलेगा , यही पेट के लिए है । जठरग्नी सुबह सुबह बहूत तीव्र होगी और शमाको जब सूर्यास्त
होने जा रहा है, तभी तीव्र होगी, बहुत तीव्र होगी । वो कहते है , शामका खाना सूरज रहते रहते खालो; सूरज डूबा तो
अग्नी भी डूबी । तो वैसे जैन दर्शन में कहा है सभी भोजन निषेध् है बागवटजी भी यही
कहते है ,तरीका अलग है ,बस । आप अहिंसा
के लिए कहते है,वो स्वास्थ के लिए कहेते है । तो शाम का खाना सूरज डुबने की बाद दुनिया में ,कोई नहीं खाता ।
गाय ,भैंस को खिलाके
देखो नहीं खाएगी ,बकरी ,गधे को खिलाके
देखो, खाता नहीं । हा बिलकूल नहीं खाता । आप खाते है , तो आप अपने को
कंम्पेअर कर लीजीए किस के साथ है आप ? कोई
जानवर, जीवटाशी सूर्य डूबने के बाद खाती नही ंतो आप क्यू खा रहे है ? प्रकृती का नियम
बागवटजी कहते है की पालन करीए माना रात का खाना जल्दी कर दीजिए ।
सूरज डुबने के
पहले 5.30 बजे - 6 बजे खायिए । अब
कितना पहले ? बागवटजीने उसका कॅल्क्यूलेशन दिया है, 40 मिनिट पहले सूरज चेन्नई से शााम 7 बजे डूब रहा है
। तो 6.20 मिनट तक
हिंदूस्थान के किसी भी कोने में जाईए सूरज डूबने
तक 40 मिनिट तक निकलेगा । तो 40 मिनिट पहले शाम का खाना खा लिजीए और सुबह को सूरज निकलने
के ढाई घंटे तक कभीभी खा लीजीए । दोनो समय पेट भरके खा लिजिए । फिर कहेंगे जी रात
को क्या ? तो रात के लिए
बागवटजी कहेते है की, एक ही चीज हैं रात के लिए की आप कोई तरल पदार्थ ले सकते है
। जिसमे सबसे अच्छा उन्होंने दूध कहा हैं । साध्ू साध्वींजी तो वोही नही ले सकते
लेकिन आप गृहस्थी वाले लोक है तो आप इतनी छूट चाहे तो आप ले सकते है । बागवटजी
कहते है की, शाम को सूरज डूबने के बाद मैंने आपसे कल कहा था ‘हमारे पेट में जठर स्थान में कुछ हार्मोन्स और
रस या एंझाईम पैदा होते है जो दूध् को पचाते है’ । इसलिए वो कहते है सूर्य डूबने के बाद जो चीज
खाने लायक है वो दूध् है । तो रात को दूध् पी लीजीऐ । सुबह का खाना अगर आपने 9.30 बजे खाया तो 6.00 बजे खूब अच्छेसे
भूक लगेगी । फिर आप कहेंगे जी, हम तो दुकान पे वैठे है 6 बजे तो डब्बा मँगा लीजिए । दुकान में डिब्बा आ
सकता है । हाँ दुकान में आप बैठे है, 6 बजेे डब्बा आ सकता है और मैं आपको हाथ जोडकर
आपसे कह रहाँ हूँ की आप मेरे से अगर कोई डायबिटीक पेशंट है, कोई भी अस्थमा
पेशंट है, किसी को भी बात
का गंभीर रोग हैऋ आज से ये सूत्रा चालू कर दिजीए । तीन महिने बाद आप खुद मुझे फोन
करके कहंेगे की, राजीव भाई, पहले से बहुत अच्छा हूँऋ शुगर लेव्हल मेरा कम हो रहा है । अस्थमा कम हो रहा
है। ट्रायग्लिसराईड चेक करा लीजीए, और सूत्रा शुरू करे, तीन महीने बाद फिर चेक करा लीजीए, पहले से कम होगा, टस्क्स्.भी बहुत
तेजी से घटेगा ,भ्क्स् बढेगा । भ्क्स् बढना चाहिए, स्क्स्ए टस्क्स् कम होना ही चाहिए । तो ये
सूत्रा बागवटजी का जितना संभव हो आप ईमानदारी से पालन करिए वो आपको स्वस्थ रहने
में बहुत मदद करेगा । अब इसके आगे का एक सूत्रा । बागवटजी कहते है की, जब भी आप खाना
खाए । तो हर समय ये बात का ....याद रखंे की दो ऐसी विरूद्ध् वस्तुएँ एकसाथ ना खाये
जिनका गुण और स्वभाव एक दूसरे से विपरीत है । दो-विरूद्ध् वस्तुएँ एकसाथ ना खाये
ये है सीध सीध सूत्रा । अब आप कहेंगे, हमे पता नहीं विरूद्ध् वस्तुओं में क्या है ? मैं कुछ विरूद्ध्
वस्तुओं की सूची बता देता हूँ । डिटेल सूची तो बागवटजी ने बताई है, 103 वस्तुएँ है । जो
एक दूसरे के एकदम खिलाफ है, जैसे सबसे पहली वस्तू उन्होंने बोली है, प्याज और दूध् ये
साथ में खाया तो बीसीयों बीमारियाँ आनेही वाली है । सबसे ज्यादा बीमारीयाँ आएँगी
त्वचा की । आपको एक्सिमा सोरायसिस होगा, खाज-खुजली होगी अगर प्याज दूध् साथ में खा रहे
है तो । कभीभी ना खाये । वो कहते है की, कठहल, कठहल समझते है, जॅकफ्रूट, दूध् और जॅकफ्रूट एकसाथ न खाये । और दूध् और
ऐसा कोई भी फल साथ में ना खाये जो सिट्रीक अॅसिड प्रधन है । ‘सिट्रीक अॅसिड’ आप समझते हैं, संत्रा, मोसंबी, अंगूर, खट्टी चीज । एक
खट्टी चीज आपकी बनाई हुई है, एक खट्टी चीज भगवानने बनायी है, तो भगवानने बनाई हुई खट्टी चीजे दूध् के साथ
जानी दुश्मन है । बागवटजी ने बहुत साल रिसर्च करके बताया,
एक ही खट्टा फल है जो
दूध् के साथ खाये । और वो है आँवला, आँवला ही है खट्टा फल,
सिट्रीक अॅसिड
व्हिटॅमीन्स ही भरपूर मात्रा में है, कॅल्शिअम उसमें भरपूर है,यही एक फल है जो
दूध् के साथ ना खाये मीठा है, तभी खाये, आम और दूध् की दोस्ती बहुत जबरदस्त है, लेकिन खट्टे आम
की दूध् के साथ दोस्ती नहीं है । एकदम मीठा, पका हुआ आम उसी को दूध् के साथ खा सकते है । एक
और गिना है । कभीभी शहद और घी एकसाथ ना खाये । दुनिया का सबसे खराब जहर है यह शहद
और घी । इसी तरह से उडद की दाल और दही, गलती से भी साथ मंे ना खाये । उडद की दाल ।
वैसे तो कल मैने बोला था... व्दिदल । व्दिदल में सबसे खतरनाक है उडद की दाल । उडद
की दाल के बारे मैं जितनी भी रिसर्चेस भारत में हुई है वो ये कहती है की ये दालों
की राजा है इसलिए ये अकेला ही खाईए । इसके साथ दही नहीं खा सकते है । उडद की दाल
भरपूर खाले, मना नही है लेकिन अकेली खाये । बाकी जो दाले है, अरहेर दाल भी व्दिदल है, दही के साथ नी
खाये लेकिन कोई मजबूरी में खाये तो मैंने उपाय बताया था कि, दही गरम करके
खाये माने दही में बघार लगा के खाये ताकि तासीर गरम हो जाये उसकी या मठ्ठा गरम
करके पीये ताकि तासीर बदल जाए । लेकिन मेरी आपसे विनम्र विनंती है की, उडद की दाल के
साथ बिल्कुल ना दही, ना मठ्ठा खाएँ बघारा हुआ भी ना खाये, बागवटजी कहते है
की, चलेगा ही नहीं ।
मैने इसपर मेरे अपने शरीर एक एक्सपेरिमेंट मैने किया । मैने एक दिन कहाँ की चलो
खाकर देखते है, बागवटजीने कहाँ ना खाये, खा के देखते है क्या होता है शरीर को तो मैने खाने से पहले
मेरा ब्लडप्रेशर चेक किया, और उडद की दाल खाने की, बाद दही खाकर पिफट ब्लडप्रेशर चेक किया तो किया
तो मेरा ब्लडप्रेशर 22-25: बढा हुआ था । फिर मैने सोचना शुरू किया की, रोज रोज मे अगर
ये उडद की दाल, और दही खाने लगू तो 100ः 6-8 महीने में, हार्ट -अॅटॅक आही जाएगा । इसका मतलब बताओ, बहनो से हाथ
जोडकर विनंती है, दहीवडा । कभीभी नहीं क्योंकि दहीवडा में उडद की दाल का वडा अगर है तो दही
बिल्कुल नहीं । अगर आपको दहीवडा खाना ही । है तो मूँग की दाल का वडा है तो दही
बघारकर आप खा सकते है । उडद की दाल का वडा अगर, बनाया है तो दही के साय बिल्कुल ही नहीं, सीध्े चटणी के
साथ खा सकते है, दही के साथ नहीं । और शादी ब्याह है आप के घर में तो मेन्यू बनाते समय ध्यान
रखे की महमानों को उडद की दाल और दही ना परोसे, नही ंतो दोहरे पाप के भागीदार बनेंगे आप अपना
तो नाश करेंगे ही, आनेवालों का भी नाश करंेगे, और आपके ही देवता है उसको जहर ना खिलाएँ । तो
ऐसी एक सूची है मैंने तो आपको 4-5 चीजें बताई है, विस्तार से आप पुस्तक में देख सकते है, वो सूची यह कहती
है, वो सूची यह कहती
है, 103 वस्तुओं की ये
चीज इसके साथ, वो चीज उसके साथ ना खाये । तो बागवटजी कहते है, दो विरूद्ध् वस्तुएँ एकसाथ ना खाएँ और अगर अपने
ये सूत्रा धरण कर लिया तो आप विना किसी रोग के जीवन बिता सकते है । तो अभी तीसरे
सूत्रा पे चलता हूँ, आजके बागवटजी कहते है की, खाना आप जब भी खाएँ तो उसको जमीन पर बैठ कर ही
खाएँ, जमीन पर बैठ के, आयुर्वेद की भाषा
में, सुख आसन में खाना
खाएँ । क्यू खाएँ जी ? तो बागवटजी समझते है की, जब आप इस आसन में बैठते है तो आपके शरीर का जो
जठर है न, ये सबसे ज्यादा
तीव्र है, और इस आसन मे
इसकी तीव्रता हमेशा मंेन्टेन रहती है, आप अभी कुर्सी पर बैठे है तो इसमे तीव्रता घट
जाती है और खडे हो जाएतो बिल्कुल कम हो जाएँगी । कारण क्या हैं ? आप शरीर के बारे
में जानते है ना ? शरीर में कई चक्र है एक चक्र जो है ना ? ये जो पीछे, जहाँपर आपका हीप
जॉंईटस और आपका मणका होता है वो मिलता है तो पूर्ण चक्र है, ये प्रदीप्त होता
है तभी जब आप इस स्थिती में बैठे । वो गाय का दूध् जब निकालते है ना ? कैसे बैठते है ? बस उसी स्थिती
में खाना खा सकते हैं, उकडू ! लेकिन वो आपके लिए नही है, इसको जरा आप ध्यान से सुन लिजिए क्योंकि आगे
उन्हांेने एक वाक्य लिख दिया की जो लोग शरीर श्रम ज्यादा करते है, जैसे किसान, हमारे कारीगर
मजदूर उनके लिए उकडू बैठकर खाना खाना सबसे अच्छा । खाते भी है, माने वो सब चले
है बागवटजी के । और आप जो शरीर श्रम कम करते है, आपके लिए सुखासन में बैठकर खाना खाना अच्छा ।
अब आजसे एक ऑब्झर्वेशन कर लीजिए, जितने लोग इससे परेशान है की उनका पेट आगे निकलकर आये है वो
इस आसन मे बैठकर खाना खाना शुरू कर दे,वो तीन महिने बाद फिर देखें तो उनका पेट पहले
से कम ही होगा । और ये जो डायनिंग टेबल पर बैठकर खाना खायेंगे, पेट आगे निकलता
ही जायेगा क्योंकि कुर्सी आपके लिए बनी नहीं है, ये अंग्रेजो के लिए बनी है । अंग्रेजो के लिए
कुर्सी बनी है क्योंकि ठंड बहुत है ना? तो जॉईंटस कडक रहते है उनके सभी जॉईंटस कडक
होंगे, कठोरता आयेगी
आपके यहँा गर्मी बहुत है तो आपके जॉईंटस में फ्रलेक्सिीबिलीटी है, आप आसानी से जमीन
पर बैठ सकते है, कोई अंग्रेज नहीं बैठ सकता, अमेरिकी नहीं बैठ सकता, जैसे मैं बैठा हूँ । क्योंकि घूटने, हिप जॉईंटस कडक
है तो उन्होंने अपने तकलीफ को कम करने के लिए कुर्सी का आविष्कार किया । आध्े तो
बैठे, पूरे नहीं बैठ
सकते तो । वो आपके लिए नहीं है कुर्सी ये अंग्रेजो की देन है । मेरी आपसे विनंती
है की, डायनिंग टेबल पर
खाना ना खाये । तो आप कहेंगे जी ले लिया । तो बहुत साय कचरा भर के रखा है आपने घर
मंे, क्या करेंगे उसका
? हमको
हिंदुस्थानियांे को पिछले 60-70 सालों मे एक गजब बीमारी हुई है, दुनियाभर का कचरा घर मे लाकर रखना । हाँ ! ये
इतनी खराब बीमारी आई है हमको की बीना सोचे, समझें कचरा लाला के घर में रखना । रसोईघरांे
में जाता हूँ ना, तीन कपरांे के इतने डब्बे होते है, खासी है, फेकेंमे नहीं, सँभालकर रखेंगे, कब काम आएँगे, मालूम नहीं लेकिन वो मरतेही जाते है । रसोई मे
इतने डिब्बे डब्बियाँ है, काम के शायद उसमें आध्े भी नहीं है,
लेकिन रखा हुआ है, पता नहीं कचरे से
इतना मोह क्यों है? जो बाहर फेंकना चाहिए वो घर में सजा सजाकर रखा है । तो उसी
कचरे में मै सिलता हूँ, आपकी डायनिंग टेबल । अब आप हिसाब लगा लो जी ये आपने लाकर
रखी है डायनिंग टेबल मान लो ये 50 या 10 स्केवर फूट है, 50 स्केवर फूट की जगह आपने घर में घेरकर रखी है, क्या भाव है, जगह का मद्रासमें
? 3000 स्केवर फूट 50 और स्केवर फूट
आपने घेर के रखा है, जरा जोड लो नं 3000 का 50 में गुना करके और रोज का हिसाब निकाल लो । तो
एक तो जब खरीदा तब पैसा बरवाद कर दिया, अब इस जगह को घेर कर बरबाद कर दिया तो डायनिंग
टेबल घर से निकाल दे, नहीं निकाल सकते तो कोने में रख दे । अब आखरी बात । अब आप
कहंेगे की, राजीव भाई कुछ तो ऐसी बात करों, ये डायनिंग टेबल ले आए तो इसका कुछ तो उपयोग
करो, अगर आप सच में
ईमानदारी से डायनिंग टेबल पर बैठकर ही खाना खाना चाहते है तो कुर्सीपर ऐसे बैठ
जाएँ जैसे में बैठा हूँ । ;सुखासन मेंद्ध आल्टी पाल्टी मार के । लेकिन अच्छा नहीं है, लेकिन बीच का तो
रास्ता है । अब डायनिंग टेबल निकले घर से इसमे तो समय लगेगा क्योंकि मन से नही
निकलती, शरीर से निकलना
तो आसान होता है मन से नहीं निकलता पता नही कितने पैसे जाया करके हम ये लाये थे, अब ये निकाले
कैसे? और नहीं है
डायनिंग टेबल तो बहुत सुखी है, मत लाईए । मेरी तो विनंती है, मत लाईए । उसकी जगह कुछ लाना है तो छोटे छोटे
पटटे ले आईए जो आप खाने के समय ईसपर बैठकर खाएँ तो अच्छा । अब आगे का एक सूत्रा
बहुत अच्छा है । बागवटजी कहते है कि खाना अगर जब सुबह और दोपहर को खाये, वो सवेरे खाये
लेकिन अगर आप खा ही रहे है तो वो कहते है की तुरंत विश्रांती लें । खाते ही
विश्रांती ले, आराम करे काम कोई ना करंे । कब तक ? 20 मिनिट तक । 20 मिनिट तक विश्रांती लें । और उसको उन्हांेने
एक्सप्लेन किया है की वो विश्रांती जो होनी चाहिए वो आपके जो बाया हात है इसको
नीचे करके दाये हाथ को उपर करके वामकुक्षीं अवस्था में लेटे । अब वामकुक्षी को सरल भाषा में समझाता हूँ, भगवान विष्णू को
लेटे हुए देखा है, शेष नागपर ? बस उसी स्थिती मे लेटे वो वामकुक्षी की अवस्था हैं, खाना खाने के बाद
सुबह और दोपहर को हस अवस्था मे लेटे क्यांे ? आप जानते है
हमारे शरीर में, दो नाडीयाँ है, वैसेे तो तीन नाडी है, एक सूर्य नाडी, एक चंद्र नाडी, एक मध्य नाडी है । ये जो सूर्य नाडी है यही
भोजन को पचाने में मदत करती है सूर्य नाडी तभी चलती है जब चंद्र नाडी कम हो, भोजन पचाना है
सुबह दोपहर का तो सूर्य नाडी तीव्र होनी ही चाहिए । तो लेफट साईड में लेटो तो
सूर्य नाडी शुरू हो जाती है, वैसे तो आप अगर आप स्वस्थ है तो खाना खाते है आपकी सूर्य
नाडी शुरू होनी चाहिए नही हो रही तो लेफ्ट साईड में लेटते ही शुरू हो जाएगी । 20 मिनिट जरूर लेटे
फिर आप कहंेगे जी नींद आ गई तो बागवटजी कहते है की लेलो एक झपकी । वो ये कहते है, रोको मत इस नींद
को, जो सूत्रा
उन्होंने लिखा है की दोपहर भोजन के बाद अगर आलस है शरीर में तो वो कहते है विना
संकोच इस झपकी को ले लो । 20 मिनिट तक, ज्यादा से ज्यादा से ज्यादा 40 मिनिट तक लेना, इसके आगे नहीं । तो अगर आप भोजन के बाद
विश्रांती ले 20-40 मिनिट तो अगले आधे दिन काम करने को बहुत एनर्जी मिलेगी आप
चाहे तो आज ही कर लें । मैं इस सूत्रा को वैसे कल विस्तार से समझाने वाला हूँ ।
बागवटजी ने कहा है की शरीर का में 74 वेग होते है, उन्हें कभी भी रोके नहीं । उसमें से निद्रा है
। नींद जो है नं ? वो एक वेग है, तो वो ये कहते है की अगर दोपहर है तो ये
स्वाभाविक है । खाना खातेही जठरग्निी प्रदीप्त होगी । अग्नि प्रदिप्त होने के लिए
मैने आपको कल समझाया था की ब्लड की जरूरत पडेगी तो सारे शरीर का खून पेट में रहता
है, जब तक खाना पचता
है तो बाकी अंगो को खून की कमी पडेगी तो प्रेशर बढेगा । सारा खून एक जगह आएगा तो
दूसरे अंगो को तकलीफ आऐगी की नहीं ? तो ब्रेन को प्रेशर आ जाता है । तो ब्रेन
रिलॅक्स हो ना चाहता है इसलिए भोजन के बाद आपको सुस्ती आएगी ही । ये प्रकृती का
नियम है तो आप ले लेना इस नींद को । छोडते क्यो है ? बहुत किमती है, लोगो को मिलती नहीं गोलियाँ खाते हैं फिर भी
नहीं आती । करोडों रूपये लेने वालों को मैंने देखा है, नींद आती ही नहीं । आपको आ रही है तो आप बहुत
सुखी है । तो आप दोपहर की झपकी लेले । मैं आपको एक छोटीसी जानकारी बताउँ की
बागवटजी के एक सूत्रा पर युरोप और अमेरिका में बहुत रिसर्च हो रही है आज कल !
ऑस्टेलिया, ब्राझील और मेक्सिकों मे कई कंपनीयाँ ऐसी है जिन्होंने लंच के बाद ब्रेक देता
शुरू कर दिया है अपने कर्मचारीयांे को । और तीनों देश की सरकारे 2008 में कानून बनाने
जा रही है की हर एक कर्मचारी को लंच के बाद झपकी लेने के लिए ब्रेक देना कंपलसरी
है तो सभी कंपनियो को ऑर्डर आया की ऑफिस का डिझाईन इस तरह का हो की कोई भी
कर्मचारी जहाँ बैठकर काम कर रहा है वहाँ झपकी भी लेसके जीवन कंपनियों मे ये
सिलसिला चल रहा उनके मैने ईमेल से कॉन्टॅक्ट किया की भैÕया ये तुमको कहाँ से याद आ गया, ये तो बागवटजी 3,500 साल पहले से था
हमारे यहाँ अब पहुँचा है । हमको अब पता चला है, हमने अब इसपर रिसर्च शुरू किया है तो उन्होंने ये महसूस किया है की, जिन कर्मचारीयांे
को झपकी लेने की छूठ दे रहे है उनकी काम करने की ईफिशियन्सी 3 गुना बढ गई है ।
तो वो कह रहे है की पहले से ज्यादा काम कर रहे है, तनखा उतनीही है बस एक झपकी लेने की छूठ उनको
मिली काम बढ गया उनका । तो वो आप भी महसूस कर सकते है । और माताओं बहनांे को विशेष
विनंती है की आप का घर का काम भी कुछ कम नहीं है । किसी भी फॅक्टरी को चलाना आसान
है घर चलाना मुश्कील बात है । और घर में भी मुश्कील काम है, बच्चों को बडा
करना । मैं मानता हूँ दुनिया मे इससे बडा कोई काम नहीं । तो आपको काम घर में भी है
। आप ही भोजन के बाद एक झपकी लेने का नियम बना लो । सब काम छोडकर झपकी लेलो आप ।
क्योंकि मैं आपसे ये कह रहाँ हूँ की आपके शरीर के स्वस्थ रहने से ज्यादा बडा कोई
काम नहीं है, दुनिया में । जो आपका शरीर दुरूस्त रहेगा तो घर आगे भी ठीक से चलता रहेगा
इसलिए कोई संकोच, लिहाज, शरम नहीं । साँस की शरम नहीं ससूर की शरम नहीं, पती, बच्चों की शरम नहीं । आपने दोपहर का खाना खाया, झपकी लेही लो । 20 से 40 मिनिट तक ।
जिंदगी आपकी सुखी रहेगी । इसमें कोई शरम की बात नहीं है, ये शरम की जरूरत है, जैसे भूक लगती है तो हम खाना खाते है तो क्या
शरम करते है? वैसेही खाना खातेही ब्लड प्रेशर बढता है, ब्रेन को ज्यादा प्रेशर बरदास्त नहीं है तो
नीेंद लेना ही शरीर के लिए अच्छा है तो आज से ही आप ये कर लो । पुरूषों के लिए भी
मेरी विनंती है, आप कहेंगे जी, दुकान में ही कुछ बना लो आगे पीछे तोड ताडकर कुछ व्यवस्था
कर लो, कुछ खातेही पेर
सीध्े करने को कुछ तो हो जाए । आप कहेंगेजी युरोप के उन कंपनियों की लिस्ट दे देता
हूँ, जहाँपर ये नियम
बन चुका है । आपके बँक और बीमा वालों की वो लिस्ट दिखा, दो । तो ये देशों मे कानून बन सकता है तो
हिंदूस्थान में क्यों नहीं ? बागवट तो हिंदूस्थान के है । तो आपके बँक और बीमा कंपनियो
में भी कोशिश करो लेकिन आपको मालूम है ये बीपीओ सेक्टर है हमारे देश में यहाँपर
गुडगाँव में चालू हो गया । दोपहर में खाना खाने के बाद झपकी लेना देना शुरू कर
दिया , तो वहाँपर हो रहा
है, बीपीओ सेक्टर
आयटी सेक्टर में तो सब जगह हो जाएगा ध्ीरे ध्ीरे ये आ जाएँगा । अब मैं आपको एक
उल्टी बात कहता हूँ, गुजरात में जाता हूँ , मैं राजस्थान में जाता हूँ, जयपूर ,राजकोट जैसे शहर
में दोपहर को सारा बझार बंद रहता है । राजकोट में हजारो करोडो का बिझनेस होता है
दोपहर को कोई काम पे नहीं मिलेगा करोडपती से करोडपती । कहाँ है जी ? खाना खा के झपकी
ले रहे है , बहुत सुखी लोग है । काठियाँवाड में मैने देखा है, पोरबंदर क्या, जागगढ क्या, राजकोट क्या कथाम्रेली दोपहर को बाजार खेलेगा
ही नहीं । और मैने तो ऐसे ऐसे लोेंगो को देखा है की, ग्राहक आके खडा है , करोडो रूपये लेके । शेटजी कहेंगे , शाम के चार बजे
के बाद । अरे शेटजी मेरे पास बैग भरा है, रूपयांे का.. शाम को ले आना, मुझे अभी इतनी
फुरसत नहीं है मैं नींद ले रहा हूँ । बहुत सुखी लोग है, समय का सही सदुपयोग कर रहे है । अब कुछ लोग
गालियाँ देते है, क्या निकम्मे लोग है , दोपहर को सोते है, सोने ही चाहिए । पूना में आप चले जाईए, पेशवाई के जमाने
से पूना के लोग दोपहर खाने के बाद जरूर नींद लेते है , पेशवा ने इसके लिए बहुत प्रचार किया था । बागवट
के इस सूत्रा का तो पूना में भी है । जो पूराने शहर है ना हिंदुस्थान के ? हर जगह यह देखने
को मिलेगा, दोपहर के खाने के बाद सब झपकी लेंगे ही । तो कर्नाटक में भी है । तमिळनाडू का
मुझे मालूम नहीं । क्योकि ज्यादा में घूमा नहीं लेकिन आप ये ध्यान रखो कि, ये जो नियम आप
पालन करो तो ये प्रकृती के अनुकूल है , शरीर के अनुकूल है । अच्छा, अब इसका उल्टा
सूत्र है , आगे, वो ये कहते है की, दोपहर और सुबह के खाने के बाद आपने नींद ली है
तो शाम का भोजन किया तो 2 घंटे तक विश्रंाती नहीं लेना माने 6 बजे खाना खा
लिया तो 8 बजेही जाना सोने
के लिए । उसके पहले नहीं । 5 बजे खाया तो 7 बजे 2 घंटे तो विश्रांती लेना नहीं । क्यूकी ? सुबह सूर्य का
प्रकाश पवन का स्पर्श है, शाम को नहीं है । तो शरीर की बायोकेमिस्ट्री पूरी बदल जाती
है शाम को । सुबह कुछ तरह के हार्मोन्स है, शाम को कुछ दुसरे तरह के हार्मोन्स है शरीर मे
। तो शाम के लिए वो ऑब्झर्वेशन करके कहते है की, कभीभी खाने के बाद तुरंत सोए नहीं, अगर सोऐगें तो
सभी बीमारीयाँ आने की संभावना है । अब आगे एक तीसरा सूत्रा उन्हांेने लिखा है, दोंनो को शायद
मिलाया है वो कभीभी एक्स्ट्रीम पर नहीं गए । बीच मंे, मीडल मार्ग है बागवटजी का । वो ये कहते है सुबह और शाम को अगर आप ये
दोनो नियम पालने नहीं कर सकते किसी कारण से, करे तो बहूत अच्छा । नही कर पाते तो वो कहते है
की, 10 मिनिट के लिए
वज्रासन मंे जरूर बैठ जाये । सुबह ओर शाम को । वज्रासन आप सब समझते है, 10 मिनिट बैठ जाईए
खाना खाने के बाद सुबह भी और शाम को भी । और प्राणायम और योग मे महर्षी पतंजली ने
कहा है की, भोजन के बाद किया जाने वाला आसन है वो ये एकही है, बाकि कोई आसन आप नहीं कर सकते और महर्षी पतंजली
को जो बागवट के बाद के है । ये कहते है की, इस आसन में अगर कोई बैठता हूँ तो शरीर बिल्कूल
वज्र जैसाही होता है । वज्र आप समझते है एकदम कठोर, मजबूत । अब मैने हिंदूस्थान के कई लोगों को
देखा गांधीजी को तो मैंने ऑंखो से नही देखा, शोभाकांत जी मे देखा है । गांधीजी घंटो घंटो
वज्रासन मंे बैठते थे । और आप देखो एकदम पतला दुबला शरीर और अंग्रेजो की लाठी खाने
को हमेशा तैयार । गंाध्ीजी कोई आसन नहीं करते थे, कोई प्राणायाम नहीं करते थे, सुबह घूमने जरूर
जाते थे लेकिन हमेशा वजा्रसन में बैठते थे, और घंटो घंटो तीन तीन घंटोतक लोगो ने देखा है
उन्हे, बिना हिले डुले
वज्रासन में बैठकर चिठ्ठी लिख रहे है किताब पढ रहें है वगैरा वगैरा तो 10 मिनट मै न्युनतम
वजा्रसन ही करते रहिए, शरीर की बहुत सारी क्रियाएँ एकदम दुरफस्त रहती है ये तीन
सुत्रा हुए और एक चौथा सुत्रा बताता हुँ । हमारे
बागवट ट्टषी कहते है की आप जब खाना खा रहे है तो उस समय आपका चित्त और मन
दोनो षांत रहना चाहिए । मॉडर्न सायन्स में ना चित्त है, ना मन वो ब्रेन की बात करते है, माईंड की बात
करते है, माईड की अलग है, मन अलग है । ब्रेन अलग है, चित्त अलग है । तो चित्त और मन को षांत रखने का कथा उपाय है? तो षायद इसी के
लिए हमारे देष में ये है कि भजन करे, खाने के पहले या ईष्वर की प्राथना करे अगर
ईश्वर की प्रार्थना कर रहे है कोई सुत्रा बोल रहे है तो निष्चित रफप से आपके चित्त
और मन मे षांती आएगी । और एक सुत्रा बहुत महत्व का, वैसे तो में परसो कहनेवाला हूँ लेकिन वो आज कह
रहा हूँ क्यूंकि वो इससे जुडा हुआ है । बागवटजी एक जगह लिख रहे है, सूत्रा मे की जब
भी आप विश्रांती ले सुबह या शाम माने रात को सोये या दिन में सोये तो हमेशा दिशाओं
का ध्यान रख कर सोए । तो यहाँपर वास्तूशास्त्रा आ गया । वास्तू भी विज्ञान है, तो वो कहते है
इसका जरूर ध्यान रखे तो क्या ध्यान रखे ? तो वो कहते है हमेशा विश्रांती लेते समय सूर्य
की दिशा में रहे । सूर्य की दिशा माने पूर्व दिशा और पाव पश्चिम में रहे, और वो कहते है
अगर कोई मजबूरी आ जाये, आप पूर्व मे सिर नही कर सके तो दक्षिण में जरूर कर लें । तो
या तो ईस्ट और या साऊथ । जब भी आराम करे तो सिर हमेशा पूर्व में रहे, पॉंव हमेशा
पश्चिम में रहे । और कोई मजबूरी हो तो दक्षिण में सिर रखे,
उत्तर में पाव । आगे के
सूत्रा में बागवटजी कहते है की, उत्तर में सिर कभी भी ना करें । नॉर्थ उत्तर की दिशा मृत्यू
की दिशा है । सोने के लिए, उत्तर की दिशा दुसरे कई कामों में बहुत अच्छी है । पढना, लिखना अभ्यास
करना है, तो उत्तर में
मुहँ रखके करे लेकिन सोने के लिए उत्तर बिल्कूल निषिध्द है। अब बागवटजीने लिख दिया
मैने देखना शुरू किया, जब से मैने ये पढा तो में गाँवो में भी बहुत जाता हूँ, तो कई बार मैने
गाँव में ऐसी स्थिती देखी है, किसी की मृत्यू हुई तो मुझे अंतिम संस्कार में जाना पडा ।
तो मैं देखता हूँ की, पंडित जी खडे हो गए अंतिम संस्कार के सूत्रा बोलना, तो पहला ही
सूत्रा वो बोलते है, संस्कृत में हर, गाँव में पंडित जी मृत का सिर उत्तर मंे करो ।
और हमारे देश में आर्य समाज के एक संस्थापक रहे स्वामी दयानंद सरस्वती । उन्होंने
भारत में जो संस्कार होते है ना ? जन्म, गर्भाधान, मृत्यू भी एक संस्कार है ।
तो उन्होंने एक
पुस्तक लिखी है ‘संस्कारविध्ी’ । उसमे पहलाही सूत्रा है, मृत्यु के लिए, उसमे वो कह रहे है की सबसे पहले मृत का सिर
उत्तर में करो, उसके बाद विध्ी शुरू करो । अब ये तो हुआ बागवटजी का, दयानंदजी का, अब में इसमें विज्ञान जोड़ता हूँ, ये मेरा अपना
एक्सप्लेनेशन है । क्यूँ ? आज का हमारा दिमाग है न ये क्यूँ के बीना कुछ मानता नहीं ।
हाँ ! क्यूँ, क्यूँ ऐसा करे ? कारण उसका बिल्कुल सापफ है, आध्ुनिक विज्ञान ये कहता है की, आपका जो शरीर है
और आपकी जो पृथ्वी है, इन दोनों के बीच में कोई बल काम करता है, इसको हम कहते है
गुरुत्वाकर्षण बल, ग्रॅव्हिटेशनल पफोर्स, अब ये कैसे काम करता हैं ? पृथ्वी के बारे
में आप जानते है पृथ्वी का दक्षिण और पृथ्वी का उत्तर ये सबसे ज्यादा तीव्र है
गुरुत्वाकर्षण के लिए । पृथ्वी का उत्तर, पृथ्वी का दक्षिण एक चुंबक की तरह काम करता हैं
गुरुत्वाकर्षण के लिए, आपका जो शरीर है, ये आपका सिर शरीर का उत्तर हैं, और पाँव दक्षिण
है ! अब सिर का उत्तर और पृथ्वी का उत्तर, आप अगर पृथ्वी के दिशा में सिर करके सो गए, बागवटजी कहते है, नही सोयेऋ मान लो
अगर सो गए तो आपका सिर का उत्तर और पृथ्वी का उत्तर, उत्तर-उत्तर दोनों साथ में आये, तो पफोर्स ऑपफ
रिपल्शन काम करता है, विज्ञान ये कहता है, पफोर्स ऑपफ रिपल्शन माने प्रतिकर्षण बल काम
करेगा । तो आप ये समझो ये आपके सिर का उत्तर किया तो उध्र से एक प्रतिकर्षण बल
आपपर काम करेगा, तो ये प्रतिकर्षण, ध्क्का देनेवाला बल जब शरीर पे काम करेगा तो आपके शरीर में
संकुचन आएगा, कॉंट्रॅक्शन । और शरीर में अगर संकुचन आया, तो ब्लड प्रेशर पूरी तरह से कंट्रोल के बाहर
जाएगा, क्योंकि ब्लड को
भी प्रेशर आएगा, क्योंकि शरीर पर प्रेशर आया न, तो शरीर में खून भी है, खून पे भी प्रेशर आएगा और अगर खून को प्रेशर है
तो नींद आएगी ही नही, मन में हमेशा ध्डपड ध्डपड चलती रहेगी, हृदय की गति
हमेशा तीव्र रहेगी । तो उत्तर की दिशा पृथ्वी की है जो नॉर्थ पोल कहलाती है । अब
इसका उल्टा कर लो, आपका सिर दक्षिण में कर दो, ठीक है ? पृथ्वी के दक्षिण में आपका सिर कर दो, तो आपका सिर
नॉर्थ हुआ और पृथ्वी का दक्षिण साउथ हुआ तो ये दोनों एक दिशा में हैं, तो पफोर्स ऑपफ
अॅटॅªक्शन काम करेगा, एक बल आपको
खींचेगा, और आपके शरीर पे
खिंचाव पड़ेगा, मान लीजिये आप लेटे हैं और ये पृथ्वी का दक्षिण है, और इध्र आपका सिर है तो आपको खींचेगा कोई तो
शरीर आपका थोडासा बड़ा होगा, जैसे रबर खिंचती है न ? इलास्टिसिटी वैसेही शरीर में थोडासा बढ़ाव आएगा
। जैसे ही शरीर में थोडासा बढ़ाव आएगा तो बॉडी में रिलॅक्सेशन आएगा । आप अंगड़ाई
लेटे है न, शरीर को एकदम तान देते हैं पिफर, बहुत अच्छा लगता हैं । क्योंकि शरीर को तान, पिफर उसके बाद
शरीर में थोडा सैलाव आया, आप बहुत रिलैक्स पफील करेंगे । तो इसलिए बागवटजी ने कहा की
दक्षिण में सिर करेंगे तो पफोर्स ऑपफ अॅटॅªक्शन है,उत्तर में करेंगे तो पफोर्स ऑपफ रिपल्षन है ।
तो अगर शरीर में सैलाव है तो आप सुखी नींद लेंगे और अगर उसपे खिंचाव है तो नींद
नहीं है । इसलिए उन्होंने बेहतरीन विश्लेषण दिया, ये विश्लेषण में मानता हूँ की, जिंदगी के सारे
मानसिक रोगों को दूर करने का अकेला सूत्रा है । नींद अगर अच्छी ले रहे है आप, तो समझ लीजिये की
दुनिया में बहुत सारी चीजे शरीर के बाहर हैं । भोजन अच्छा है, नींद अच्छी है और
क्या चाहिए ? तो आप नींद अच्छी ले, ब्रेन हमेशा आपका पफोर्स ऑपफ अॅटॅªक्शन में रहे, इसके लिए दक्षिण में सिर करके सोना बहुत अच्छा
! और नहीं तो पूर्व में करना, अब पूर्व क्या हैं ? पूर्व के बारे में पृथ्वीपर सब रिसर्च करनेवाले
सब वैज्ञानिकोंका कहना है की, पूर्व न्यूट्रल है । न तो वहां पफोर्स पफोर्स ऑपफ अॅटॅªक्शन है नाही
वहाँ पफोर्स ऑपफ रिपल्शन है और अगर है भी तो दोनों एक दुसरे को बैलेंस करते है, इसलिए पूर्व में
सिर करके सोएंगे तो आप भी न्यूट्रल रहेंगे, तो आसानीसे अच्छी नींद आएगी । पश्चिम का आप
पूछेंगे जी, पश्चिम के लिए अभी रिसर्च
होना बाकी है । बागवटजी मौन है उसपर, कोई एक्सप्लेनेशन नही दिए है । और आज का सायंस
लगा हुआ है, कोई रिसर्च अगर आ गयी तो जरुर में आप तक पेश करूँगा । पश्चिम के बारे में, सोने के हिसाब से, वैसे तो बहुत
रिसर्चेस हो चुकी है पश्चिम पर, वास्तू वालोंने बहुत काम कर लिया है की, पश्चिम में क्या
होना चाहिए, लेकिन सोने के हिसाब से सोने के, स्लीप के हिसाब से जो सूत्रा पर में बात कर रहा
हूँ वो रिसर्चेस पश्चिम पर बहुत कम हुई है, पूर्व, दक्षिण पर बहुत हो चुकी है, उत्तर पर तो सबसे
ज्यादा हुई है । तो ये तीन दिशाओं को ध्यान रखना सोते समय,
पूर्व मंे सिर करके सोये
तो बहुत अच्छा नहीं तो दक्षिण मंे करे । उसके आगे का सूत्रा और भी मजेदार है ।
बहुत इंटरेस्टिंग है, बागवटजी कहते है की, किनको पूर्व में सिर करके सोना और किनको दक्षिण
में ? उन्होंने एक
कॅटेगरी बना दी । तो वो कहते है जो साध्ू, संन्यासी है, जो ब्रम्हचर्य का पालन कर रहे है, जो गृहस्थ जीवन
नहीं जी रहे है, जो दुनिया की मोहमाया से दूर है, इन सबको पूर्व मंे ही सिर करना, हमेशा । और जो
दुनिया चला रहे है, गृहस्थी, घर चला रहे है, परिवार चला रहे है, पत्नी बच्चो के साथ रह रहे है, उनको दक्षिण में
ही सिर करना, अब यहाँ बिल्कुल क्लिअर हो गया । अब कोई कन्फ्रयूजन नही रहना चाहिए, मन मंे । आप
जितने लोग है, सब अपना परिवार चलानेवाले, घर गृहस्थी दुनिया चलानेवाले लोग है, तो आप तो आजही
आपके बेड की पोझिशन बदलो, दक्षिण में सबसे बेड के सिर होने चाहिए । और मेरे जैसे लोग, जो शादी नहीं
करते, ब्रम्हचारी है
इनको पूर्व मंे ही सोना, साध्ू, साध्वीजी जिनको अपने जीवन में ब्रम्हचर्य का पालन करना है
वो पूर्व में ही सिर रखके सोईये । आज के लिए इतनेहीं सूत्रा । अब आप सवाल पूँछ
सकते है ।
प्र: साउथ
डायरेक्शन मंे कोर्स ऑफ अॅटॅक्शन रहता है, आपने कहा सिर के लिए, तो शरीर की खिचाई होती है तो क्या जीन बच्चांे
की हाईट कम हैं उनको कंपल्सरी हम साउथ में सिर रखके सुलाएँ ? उनकी हाईट बढे ?
उ: जरूर सुलाईए, जिन बच्चांे की
लंबाई आपको कम लग रही है, आप हमेशा उनका सिर दक्षिण में रखके सुलाईए, थोडे तीन चार साल
बाद आपको खुद महसूस हो जाएगा, लंबाई बढती हुई दिखाई देगी ।
प्र: राजीवभाई आपने कल बताया या कि, सुबह उठतेही पानी
पीना चाहिए, लेकिन जैन र्ध्म में बताया है कि, उठने के बाद कम से कम 48 मिनिट बाद पानी पीये ?
उ: हाँ ! वो बिल्कुल सही है । जैन धर्म में
सूर्योदय होने के 48 मिनिट बाद पानी पीने का नियम बिल्कुल सही है । वो नियम
क्या है वो समझने की बाद है । जो पानी है ना ? वो बहुत सारी जीवराशियांे का संग्रह है, अब ये थोडी
सूक्ष्म की बात है , मैं जाना नहीं चाहता था लेकिन सवाल पूँछ लिया इसलिए कह रहा
हूँ । पानी में लेंन्स लगा के देखे, करोडो करोडो सूक्ष्म जीव आपको दिखाई देंगे, इध्र-उध्र घूमते
भागते । अगर देख ले तो दिल ही नहीं करेगा, पानी पीने का । तो सुबह सुबह क्या होता है, आपका जो मुह होता
है, ये जो लार है ना मैने आपसे कहा था कि सुबह सबसे
ज्यादा तीव्र होती है, मेडिषनल प्रापॅर्टी ज्यादा होती है लार की । तो अगर आपने
उठतेही पानी पीया तो उसमें संभावना है की ज्यादा जीवराषी की हत्या होगी । इसलिए
जैन दर्शन ये कहता है की, अनावश्यक हिंसा से बचने के लिए जैन शास्त्रो ने, आचार्यो ने बताया
कि, 48 मिनिट के बाद
पीये, ये 48 मिनिट में क्या
हो जाता है ? इसकी क्षारियता कम हो जाती है, बहुत तेजी से कम होती है और इसकी अल्कॅलॉनिटी कम हो गई तो
जीवराषी के मरने की, संभावना भी उतनी कम हो जाएगी तो फालतू हिंसा से बचने के लिए
जैन दर्शन ने कहा की, नवकार्शी एक शब्द इस्तेमाल करते है ना ? हाँ तो ये इसके
साथ उन्हांेने जोडा । ये 48 मिनिट का कॅल्क्युलेशन बागवटजी का भी है । वो ये कहते है
की, सुबह उठते ही 48 मिनट तक आप अगर
इंतेजार करते है, तो मुहँ की लार जो है इसकी क्षारियता कम होना शुरू होती है, तो उठतेही अगर आप
जैन दर्शन पालन करते हो तो 48 मिनिट ध्यान में रखो और पालन नहीं करते हो तो 48 मिनिट ध्यान में
रखो और पालन नहीं कर रहे तो आपके लिए ष्षायद हिंसा - अहिंसा का महत्त्व नहीं है
लेकिन करे तो आपके लिए बहुत अच्छा है । तो आप कहंेगे जी 48 मिनिट तक क्या करें ?
बैठे रहे, तो भगवान का नाम
ले लो, आप ईश्वर का जाप
कर लो मंत्रा का जाप कर लो, कुछ कर लो फिर पानी पियो उसके बाद आपकी दिनचर्या शुरू करो ।
ये बीच का रास्ता मैने बताया।
प्र: आपने शहद और
घी को विरूद्ध् बताया है, तो जैसे बच्चे का जन्म होता है तो उसे शहद और घी चटाया जाता
है तो वो कैसे ?
उ: जी, ये जो संस्कार है
ना ? बच्चे को जन्म
लेते ही शहद और घी चटाने का , इस संस्कार करते समय लोग, कुछ चीजों का ध्यान ना रखे तो तकलीफ है
आयुर्वेद के हिसाब से अगर आप ध्यान नही रखते तो बहुत तकलीफ है । आयुर्वेद कहता है
की, ष्षहद और घी
बराबर मात्रा एकसाथ कभीभी लेंगे तो जहरही है लेकिन कुछ भारत में ऐसे समूह है जो अपने
बच्चांे को ये करते है, ष्षहद और घी चटाते है लेकिन सभी लोग भारत में ऐसा नहीं करते
है, बहुत सारे लोग
भारत में ऐसा नहीं करते है बहुत सारे लोग नहीं भी चटाते है लेकिन जो चटाते है उनको
मैने पूछाँ, तो वो मुझे एक इंटेलिजंट उत्तर देते है और वो बागवटजी का भी सही है, वो ये कहते है की, हमने शहद और घी
साथ मंे चटाया तब उसमें गाय का मूत्रा थोडा मिलाया था या गाय के गोबर का रस डाला
था । अब ये गाय के गोमूत्रा की जैसे ही बात आती है तो तुरंत मैरे ध्यान मे आया की, आपके पंचकाव्य, पंचामृत बनाते है
नं, तो उसमें षहद और
घी भी होता है लेकिन गोमूत्रा के साथ, या गोबर के रस के साथ । फिर हमने उसपर काम किया
की, ये गोमूत्रा अगर
मिला दिया षहद और घी में तो क्या इसकी विषकारकता कम हो गयीं? तो कल या परसांे
मे इसपर विस्तार से आनेवाला हूँ । तो अलग अलग परिस्थितीयांे मे लेकिन सामान्य
परिस्थितीयों में ये ठीक नहीं है ।
प््रा. राजीव जी, आयुवेदिक दवाओं
के साथ जो डॉक्टर की दवाएँ भी चल रही है तो उसको ले सकते है?
उ. बिल्कुल मत
लीजिए, दवा जो है ना, तो भरोसे से आप
आयुर्वेद की लीजिए , उससेही आपको बहुत बडे परिणाम मिल जाएँगे । अॅलोपॅथी की
दवाएँ साथ मे खायेंगे तो अच्छे परिणाम तो
नहीं लेकिन बुरे परिणाम जरूर आयेंगे ।
प्र. अर्जुन की
छाल का पावडर जो आप दूध् लेने को कह रहे है उसको पत्राी के जैसे जमने की शंका रहती
है ?
उ. अर्जुन की छाल
के वजन से पत्राी होने की संभावना ना के बराबर है । पत्राी होने की शंका एक ही चीज
में है की, अगर आप चूना खायेगे तो अर्जुन की छाल से आज तक मैने नहीं सुना की किसी को
पत्राी हुई । क्योंकी अर्जुन की छाल में जो कॅल्शिअम है वो बहुत ही कम है । और जो
है वो बहुत आसानी से ज्वलनशील है तो आसानी से डायजेस्ट होता है । पत्राी होने की
संभावना तभी है तो आसानी से डायजेस्ट होता है । पत्राी होने की संभावना तभी है जब
आप ज्यादा चुना खायें ।
प्र. काढा शाम को
पी सकते है ?
काढा शाम को चाहे
तो पी सकते है लेकिन सुबह पीयेंगे तो बहुत अच्छा । शाम को पीयंेगे नुकसान नही है
लेकिन फायदा बहुत कम मीलेगे । काढे का सबसे ज्यादा फायदा लेना है तो सुबह ही पीये
।
प्र. चाय पीने से
क्या नुकसान होता है ?
उ. देखिए, चाय जो आप बनाते
है उसमें चाय से ज्यादा नुकसानदायक चीनी है । ये जो शुगर है ना, चीनी इसका चाय के
साथ कोई मेल नहीं है । अगर आप चाय पी रहे है, वैसे तो मत पीये क्यांकि आपके तासीर के अनुकूल
नहीं है । चाय के जो केमिकल है ना? भारत के लिए उपयोगी नहीं है । युरोप और अमेरिका के लिए बहुत
अच्छा है । गरम देशों मे चाय, कॉफी ठीक नही है ।
फिर भी अगर आप पी
रहें है, आप मानते है खराब
है लेकिन आदत है तो में एक तरीका बता देता हूँ । वो तरीका ये है की चीनी की जगह
गुड का चाय पीजिये । क्यांे पीये ? वो समझ लीजीए, गुड जो है ना, क्षारीय है। और चीनी आम्लीय है । चीनी जब
डिसइंटिग्रेड होती है तो अंतिम परिणाम जो है वो एक अॅसिड के रूप में ही है । और
गुड जब डिसइंटिग्रेट होता है । तो उसको अंतिम परिणाम क्षारीय है । पेट में वैसेही
आम्ल ज्यादा है और सुबह पेट में ज्यादा आम्ल होता है और उस समय अगर चीनी मिलाई हुई
चाय पीयेंगे तो ये अॅसिडीटी बढाएगी आपकी । तो बेहतर है आप चाय पीये तो गुडवाली
पीये । अब गुडवाली चाय जब पीये तो दूध नहीं डाल सकते, क्योंकि दूध फट जायेगा गुड में । क्योंकि दूध्
और गुड की दोस्ती नही है । तो फिर बीना
दूध् की चाय पीये । तो आप काली चाय पीये । गुड डाल के पीये । और मेरी छोटीसी बात
अगर मान ले, की काली चाय अगर गुड डालकर आप पी रहे है तो थोडासा नींबू का रस डालेंगे तो
न्यूट्रलाईज होगी ये । नींबू का रस अॅसिडीक है, गुड का रस क्षारीय है । तो गुड मिलायी हुई चाय
को अगर न्यूट्रल करना है तो थोडा नींबू डालकर नींबू की चाय पीये । ठीक है ? लेकिन इसको पीने
से पहले पानी जरूर पीये । वो नियम ना भूले । गुड डाला चाय में तो क्षारपण आया तो
थोडा नींबू डालेगे तो न्यूट्रल हो जायेगा । वो आप पीये तो जीवनभर बिना किसी दुःख
और तकलीफ आप पी सकते है । और अगर आपको बन पाए तो हरे पत्ते की चाय पीये । ये जो
चाय आती है ना, बाजार में, टी स्पून ये आपके लिए अच्छी नहीं है । आपको हरे पत्तेवाली चाय मिल रही है तो
कम से कम इतना जरूर फायदा है की वो अॅटी ऑक्सिडंटल प्रॉपर्टी वाली है क्यांकि हरे
पत्तों को सीध्े निकालकर, सुखाकर आप बना रहे है । तो वो इससे बेहतर है जो चूरेवाली
चाय आप पी रहे है । थोडी बेहतर है ।
प्र. कई देशो में
हमने देखा है की भोजन लेते समय वज्रासन में बैठकर भोजन लेते है ? तो ?
उ. ईस्टर्न
कंट्रीज में करते है । इंडोनेशिया में जाए तो वहाँ भी करते है । वज्रासन में बैठकर
वो लोग भोजन कर सकते है । आपके लिए इतना अनुकूल नही है क्योंकि आपको भोजन के बाद
वज्रासन करना अनुकूल है, भोजन करते समय सुखासन था, उकडू बैठकर खाये रोटी अनुकूल है । अब ये क्यांे
अनुकूल है, रूक जाईए परसों में एक्सलेन करनेही वाला हूँ ।
प्र. और यहाँ
मैंने ये भी नोटीस किया है की, भोजन लेने के बाद यहा के लोग शहद लेते है क्यांकि वो
डायजेशन में हेल्प करता है ।
उ. लीजिए, ना मैने मना नहीं
किया । लेकिन जैन दर्शन का पालन अगर आप कर रहे है तो मत लीजिए । नही पालन कर रहे
तो शहद लेने को स्वतंत्रा है । पानी कितना लेना चाहिए ये सबके लिए अलग अलग है। एक
सूत्रा बता देता हूँ । हर व्यक्ती को कितना पानी पीना चाहिए । आप अपना वजन करिए
वजन । अगर 60 किलो वजन है तो 10 से भाग दीजिए इसमें तो 6 आएगा और दो घटा दीजीए । तो आप 24 घंटे में 4 लीटर पानी पी
सकते है । किसी का वजन 40 किलो है, तो 10 से भाग दीजीए तो 4 आयेगा, 2 घटा दिजीए, 2 लीटर पानी पूरे दिन में पी सकते है । जितना
वजन 10 का भाग और दो
घटाना ।
nice post...
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