Tuesday, August 27, 2013

स्वदेशी चिकित्सा (राजीव दीक्षित) भाग 2


There  are some spelling mistakes in this article which will be corrected later

कल मैंने आपसे ज्यो बाते कहीं थी, उनमे से बहुत सारी बाते आपको याद होगी, शायद आपने लिखी भी होंगी । मुझे कल एक जानकारी दी बाबूजीने, वो जानकारी आप सब तक पहुंचे, तो उन्होंने जानकारी दी की, एक बार वो ज्टै ग्रुप है न ज्टै, जो यहाँ का, चेन्नई का सबसे बड़ा ग्रुप है और शायद भारत के सबसे बड़े ग्रुप में उनकी गिनती है । उनके घर में भोजन करने गए थेऋ ये बात आपके  ध्यान में इसलिए लाने की जरुरत है की, ज्टै ग्रुप जो हजारो करोड़ के एम्पायर का मालिक है उनके घर में मिटटी के  बर्तन इस्तेमाल हो सकते है, तो आपके घर में भी हो सकते है । माने हमको ये बहाना न मिले की मिलते नहीं है जी, समय बहुत लगता है जी, क्या उसको खटराहट करने का.. ये जो मन के अन्दर की हमारी रूकावटे है, ये कभी नहीं आये इस दृष्टी से सुधरण का महत्व है, ये उदाहारण में हिन्दुस्थान के ऐसे हजारो लोगों के बारे में बता सकता हूँ जिनको रोज आप अखबारों मे देखते है, न्यूजपेपर में देखते है, टी.व्ही. पर देखते है, ज्यादातर के घरों मे मिटटी के बर्तन रसोइघर मे इस्तेमाल होते है । आपको सुनकर हैरानी होगी । ध्ीरुभाई अंबानी के घर में रोटी हमेशा मिटटी के तवे पर बनती है । एक बार मुझे भी मौका मिला, उनकी र्ध्मपत्नी श्रीमती कोकिलाबेन से बात करने का । की आप ये मिटटी के तवे पर रोटी क्यूँ बनाती है ? ये तो पिछड़ेपन की निशानी है, ये ऐसा मैंने जान-बूझकर बोला । हम तो ऐसा मानते है की आप 18 वी शताब्दी में जा रहें है । मिटटी के बर्तन माने तवे की रोटी बना के, तो कोकिला बेनने कहाँ, जो जो कहे, मुझे उसकी पर्वा नहीं । मुझे ये रोटी पसंद है और हमारे घर के सब लोगों को पसंद है इसलिए हम सब मिटटी के बर्तन में ही रोटी बनाते है । पुरे गुजरात में आप जायेंगे, राजस्थान में आप जायेंगे, अभी भी एक-दो लाख नहीं, करोडो लोग हैं, जो मिटटी के तवे पे रोटी बना रहे हैं , खा रहें है । और में विनम्र रूप से ये आपसे कहना चाहता हूँ की, वो आपसे ज्यादा स्वस्थ है, और आपसे ज्यादा तंदुरुस्त है । अगर हमे अपना स्वस्थ्य और तंदुरुस्ती बना के रखनी है, बचा के रखनी है तो ये बाते आपको आपके जीवन में आचरण में उतारने की आवश्यकता है । और अगर ये बाते आपके आचरण में आती है, कितनी बड़ी चीज होती है इस देश में, की मान लो अगर हिन्दुस्थान में 112 करोड़ लोग है, 112 करोड़ लोगों मे 20 करोड़ परिवार है, 20 करोड़ परिवारों मे 200 करोड़ रसोईघर है, अगर 20 करोड़ घरों मे मिटटी का तवा आने लगे, 20 करोड़ तवा बनाने लगेगा और लाखो कुंभारोंको रोजगारी मिल जाएगी, जो बेरोजगार बैठे है जिनके पास काम नहीं । अगर मिटटी की हांडी से ये 20 करोड़ परिवारों मे दाल बनने लगेगी, चावल बनने लगेगा, तो करोडो कुंभारोंको हांडी बनाने का काम मिल जायेगा जो आज बेकार बैठे है । और हिन्दुस्थान में कुंभारोंकी संख्या लगभग उतनीही है, जितनी ब्राम्हणों की है । सरकार के आकडे हैं । 18 प्रतिशत कुंभार है और कई ऐसी जातियां है और 18 प्रतिशत ब्राम्हण है । तो इतनी बड़ी समाज को अगर हम रोजगार दे पाते है, तो बहुत बड़ी बात हैं इसलिए अर्थव्यवस्था को भी मदद होती है आपका स्वस्थ्य तो अच्छा रहताही है और मेरी मन की बात है वो में आपसे शेअर करना चाहता हूँ की मिटटी से आपका जुडाव रहता है । मिटटी से जुड़े रहना ये सबसे बड़ी बात मानी जाती है । हम पता नहीं कहाँ-कहाँ से चेन्नई में आये, कोई बिहार से आया, कोई राजस्थान से, कोई गुजरात से लेकिन अक्सर मन में आता है की अपनी मिटटी से जुड़े रहें । तो अपनी मिटटी से चेन्नई जैसे शहर में जुड़े रहने का एक ही रास्ता है की आप इन मिटटी के बनाये हुए बर्तनों का इस्तेमाल करे । तो स्वास्थ्य की दृष्टी से तो बहुत अच्छा है और अर्थव्यवस्था के भी बहुत अच्छा है । मैंने कल जो बातें कही थी उनको 1 मिनिट में पिफरसे रिपीट करता हूँ, कल मैंने एक ही सूत्रा आपके सामने विश्लेषण किया था बागवट ट्ठषी का लिखा हुआ की जिस भोजन को बनाते समय, पकाते समय पवन का स्पर्श और सूर्य का प्रकाश ना मिले वो भोजन को कभी नहीं करना । विश्लेषण में से शुरू हुआ की पवन का स्पर्श और सूर्य का प्रकाश कहाँ कहाँ नही मिलता, तो सबसे पहली चीज निकल के आई, प्रेशर कुकर ! प्रेशर कुकर का खाना ना खाए कल मैंने बहुत विस्तार से बता दिया, आज सिर्पफ दोहरा रहाँ हूँ याद रखने के लिए । उसके विकल्प के रूप मे मैंने आपसे कहाँ की मिटटी के बर्तनों मे खाना बनाये । मिटटी के बर्तन में खाना बनाने के पीछे जो बड़ा वैज्ञानिक कारण है, की ये जो मिटटी है, इसमें 18 तरह के  माइक्रोन्यूट्रीअन्ट्स है ये बात हमेशा आप याद रखिये । कॅल्शियम मिटटी में है, आयर्न मिटटी में है, कोल मिटटी में है, सल्पफर मिटटी में है, आपके शरीर को हर दिन, हर दिन 18 तरह के सूक्ष्म पोषक तत्वों की जरुरत होती है । 18 तरह के सूक्ष्म पोषक तत्वों की जरुरत होती है जिनको आप अलग-अलग भाषाओं मे बोल देते है की हमको प्रोटीन चाहिए, हमको व्हिटॅमीन चाहिये, हमको पफैट्स चाहिए ये डॉक्टर कहता है ना आज की भाषा में, की आपको प्रोटीन की कमी हो गयी है, आपको र्काबोहायड्रेट चाहिए, आपको पफैट्स ज्यादा चाहिए तो ये जो कुछ भी चाहिए इनको रसायनशास्त्रा की भाषा में मैंने आपको समझाया कल और आज कह रहाँ हूँ की ये 18 तरह के सूक्ष्म पोषक तत्व है जिनको मिल जाने से आपके भोजन को संपूर्णता मिलती है, माने भोजन र्पूण होता है । और संयोग से या प्रकृती के कुछ ऐसै नियम है की ये सारे सत्व तो मिटटी मे है, इसलिए मिटटी के बर्तनों का उपयोग आपके लिए बहुत ही अच्छा है । दूसरा मैने आपको कारण बताया था विज्ञान का, जिस वस्तू को खेत मे, कृषिभूमी मे, पकने मे जितना ज्यादा समय लगता है, रसोईघर मे भी उसे ज्यादा समय मे ही पकाना चाहिए, क्योंकि मैने आपसे कहाँ की खेत की मिटटी मे अरेहर की दाल खडी है, सात-आठ महिने मे तैयार होती है, सात-आँठ महिने मे उसमे ध्ीरे-ध्ीरे प्रोटीन लिया, प्रोटीन के रुप मे कुछ केमिकल्स लिए मिटटी से, ये सात-आँठ महिने तक लेते रहेऋ अरेहर की दाल के दाने, उसकी जडों की मदद से, तने की मदद से । अब वो जो दाल तैयार हो गयी है, उसको पकाने मे भी समय लगना चाहिए । जल्दी से आपने उसे पका दिया तो उसके अंदर जो प्रोटीन्स गये है, जो बहुत सारे तरह के मायक्रोेन्युन्युट्रिन्ट्स मिटटी से अंदर गये है इनको वापस आपके शरीर मे आने की संभावना नहीं है वो टूटेंगे, तो आपके लिए उतने उपयोगी नहीं है, मैने आपसे कहाँ की प्रेशर कुकर मे बाष्प का दबाव इतना ज्यादा होता है की, दाने टूटते है, पकते नहीं है । और टूटे हुए दाने गरम पानी के नीचे से, आपको ऐसा लगता है की वो पक गये है । वो पके नहीं है वास्तव में, वो सॉफ्रट हो गये है, मुलायम हो गये है । पकने से मतलब मैने आपको बताया था कि, उसके अंदर जो कुछ भी प्रकृति ने दी है पोषकता, वो आपको मिलने के स्थिति मे आ गयी है की नहीं, तब आप उसको कह सकते है की ये पक गया है । चाहे वो गेहूँ का दाना हो, या अरेहर का दाना हो या उअर का । तो ये बात आपके ध्यान में आती है की पकना मतलब क्या होता है, और उबलना मतलब क्या होता है । एक शब्द है उबलनाऋ उबलना होता है प्रेशर कुकर मे, पकना होता है मिटटी के हांडी मे । क्योंकि मिटटी के हांडी मे ध्ीरे-ध्ीरे पकती है हर चीज, कारण क्या है ? मिटटी जो है ना, उष्मा की कुचालक है । आप मे से जो विद्यार्थी है, वो जानते हैऋ बॅड कंडक्टर, उष्मा की कुचालक है । माने मिटटी को कोई चीज जल्दी उष्मा के रुप में मिलेगी नहीं, ध्ीरेही-ध्ीरे मिलेगी । तो ध्ीरेही ध्ीरे पिफर दाल पकेगी । और दाल पकेगी तो ध्ीरे-ध्ीरे उसके मायक्रोेन्युन्युट्रिन्ट्स दानों के साथ आऐंगे । पिफर वो आप खाऐंगे तो आपके शरीर को पूरी पोषकता मिलेगी । और भगवान ने जो चीजे बनाई है, प्रकृति ने जो चीजे बनाई है, उनकी पोषकता आपको मिले इसलिए बनाई है । ये जो दाल बनी है नं, आप अगर ध्यान से देखे तो दाल का उपर का हिस्सा है, जो आप खा रहे है, पफल के रुप मेंऋ बीच का हिस्सा जानवर खा रहें है । तो भगवान ने, प्रकृति ने ऐसी व्यवस्था की है कि, गेहूँ हैऋ गेहूँ के उपर का हिस्सा वो आप खा रहे है । बीच का जो बचा हुआ हिस्सा है, जिसको तना कहते है वो जानवर खा रहे है और अंत का बचा हुआ जो हिस्सा होता है, जिसको आप जड कहते है, वो ध्रती के लिए होता है, मिटटी के लिए होता है । प्रकृति ने बहुत सोच कर ये सब बनाया, भगवानने बहुत सोचकर बनाया । मनुष्य के लिए एक हिस्सा, उसमे से थोडा आप चाहे तो पक्षीयों को भी खिला सकते है, तो मनुष्य और पक्षियों के लिए एक हिस्सा, जानवरों के लिए दूसरा हिस्सा और प्रकृति को ध्रती या मिटटी के लिए तिसरा हिस्सा है । हरेक पफसल में यही देखेंगे आप तो जो आपके लिए बनाया है, भगवान ने वो बहुत सोच-समझकर बनाया है, जो जानवरों के लिए बनाया है वो भी बहुत सोच-समझकर है और मिटटी के लिए भी । तो उसका अगर जीवन मे पफायदा उठाएँ तो बहुत अच्छा होगा, और बागवट जी इसी के लिए शायद ये सूत्रा लिखकर गये । तो कल बहुत ज्यादा बात हुई, प्रेशर कुकर के बारे में । अब में थोडीसी बात करता हूँ, कल से जुडी हुई रेÚिजरेटर के बारे में । रेÚिजरेटर एक ऐसी वस्तू है, जिसमे रखी हुई कोई भी वस्तू को सूर्य का प्रकाश और पवन का स्पष नहीं मिलेगा । आप जानते हैऋ रेÚिजरेटर ये जो काम करता है, उसके कुछ बुनियादि सिध्दांत है । वो क्या सिध्दांत है ? आपके रुम का जो टेम्प्रेचर है, आपके कमरे का जो तापमान है, उससे नीचे का तापमान वह पैदा करेगा । अब ये प्रकृति के मदद से नहीं हो सकता क्योंकि प्रकृति की मदद से आपका जो रुम टेम्प्रेचर है, 30,35, या 22,25 डिग्री है, तो प्रकृति के विरुध्द जाकर उसको काम करना पडेगा । तो उसके लिए कुछ एक्स्ट्रा एपर्फोट्स लगेंगे, तो ऐसी गैस रसायनशास्त्रा मे जो तापमान को कम करने मे काम मे आती है, उन गैसों को इस्तेमाल रेÚिजरेटर करेगा । और एक-दो नहीं, ऐसी 12 गैसों का इस्तेमाल रेÚिजरेटर करता है, जिनको विज्ञान की भाषा मे सी.एपफ.सी. कहते है, जिसमे क्लोरिन भी है, पफलोरिन भी है और कार्बनडाय ऑक्साईड भी है । अगर आप रसायनशास्त्रा की  डिक्शनरी निकालके देखेंगे, आप मे से जिनहोंने पढा हैऋ केमिस्ट्री, उनके लिए तो आसान है, जिनहोंने नहीं पढा वो डिक्शनरी निकालके देखेऋ क्लोरिन ! क्लोरिन के सामने लिखा हुआ है, जहर ! सीध्े डिक्शनरी देखे, टेक्स्ट की बात नहीं कर रहाँ हूँ, एक डिक्शनरी खरीद ले, केमिस्ट्री की और क्लोरिन शब्द देखे तो सामनेही लिखा है, जहर ! और क्लोरिन देखे, तो लिखा हैऋ आत्यंतिक जहर ! कार्बनडाय ऑक्साईड तो जहर का बाप ! आप जानते है की शरीर की यह जो श्वासोच्छवास की क्रिया है, प्राणायम क्रिया जिसको आप कहते है, इसमे आप हमेशा कार्बनडाय ऑक्साईड छोडते है । ये क्यूँ छोडते है ? रखलिए अंदर अगर इससे इतनाही प्रेम है तो रेÚिजरेटर को लाकर आपने घर के सबसे अच्छे स्थानपर रखा है, जो हर समय कार्बनडाय ऑक्साईड के साथ खेल रहा है, तो आप अंदर की कार्बन अंदरही रख लिजिए, बाहर मत छोडिए बहुत प्रेम है आपको इससे... आप मर जाऐंगे । आप मर जाऐंगे, शाम नहीं लगेगी, रात नहीं लगेगी मिनिट मे मर जाऐंगे । इसलिए प्रकृतिने व्यवस्था ऐसी बनाई है की कार्बनडाय ऑक्साईड जो आपको मार डालेगी, उसे बाहर निकालते रहना है । अगर ये बाहर निकले तो आप स्वस्थ रहें ! कार्बनडाईऑक्साइड जैसी ही खराब गैसों में क्लोरिन और क्लोरिन की गिनती होती है । अब ये तीनो कार्बन से मिला हुआ, क्लोरिन से मिला हुआ, फ्रलोरिन से मिला हुआ, 12 गैस, एकसाथ रेÚिजरेटर छोड़ता है । सी.एपफ.सी 1, सी.एपफ.सी.2 ऐसे सी.एपफ.सी. 12 तक बारह गैसे एक साथ छोड़ता है । 24 घंटे छोड़ता है, क्योंकि वो चालू हैं आपके घर में । अब इसमें आप ने जो कुछ भी रखा है वो सब इन गैसों के प्रभाव में आटा है, आप बोलेंगे जी, हमने तो भोजन को ढँककर रखा है, कितना भी ढँककर रखिये क्योंकि गैसों का असर इतना तीव्र है की स्टील को तोड़कर निकल जानेवाली गैसे हे ये । स्टील के मोठे पते को भी रखे तो भी उससे निकलके जानेवाली गैसे है । हाई प्रेश्शर ! तो अगर आप इतने सारे जहारिलियुतफ गैसों में 2,3,5 घंटे रखकर पिफर खा रहे है, तो मापफ कीजिये आप भोजन नहीं जहर खा रहे है । बस जहर में अंतर इतना है की एक जहर तात्कालिक है और दूसरा है दीर्घकालिक । दीर्घकालिक जहर थोडा थोडा खाए तो 5-7 साल में पता चला देगा, तात्कालिक खाए तो एक मिनिट में आपको पता चल जाएगा । इसलिए मेरी आपसे विनंती है, घर में अगर रेÚिजरेटर लिया है इसका इस्तेमाल कम करिए, सबसे अच्छा है बंद करिए । और मेरी बात माने तो बेच दीजिये । कोई भी सेकण्ड हैण्ड खरीद लेगा । और नहीं बिकता तो लोहे के भाव में बेच दीजिये, तो भी आप पफायदे के सौदे में रहेंगे क्योंकि इसके रखे रहने से, जो मन का लालच है, लालच पता है क्या ? अगर ये है तो कुछ करो इसका.. तो कुछ करो इसका.. तो कुछ तो करोके इस चक्कर में हम जबरदस्ती ज्यादा-ज्यादा खाना बनाते है, आयर इसमें रखके जाते है । सबेरे का शाम को, शाम का अगले सवेरे, दिन का शाम को ये चक्कर चलता रहता है । और ये चक्कर में खाने की पोषकता का नाश होता रहता है । और में आपको विनम्रतार्पूवक दूसरी जानकारी देना चाहता हूँ की, रेÚिजरेटर का आविष्कार हुआ था तो उसके पीछे कारन क्या था ? हर वास्तु के आविष्कार के पीछे कारण होता है । तो इसका कारण था, ठन्डे देशों की, ध्ंदे देश है अमेरिका,कनाडा, जर्मनी, Úांस, स्वित्झरलैंड, डेनमार्क, र्नोवे इन देशों की आबोहवा । आप जानते है की ये ठन्डे देश है । -40 सेल्शियस सेल्शियस तापमान होता है और ज्यादा से ज्यादा प्लस में जाए तो 15 से 20 सेल्शिअस होता है । 15-20 से -40 सेल्शिअस टेम्प्रेचर का जो व्हॅरिएशन है, वो बहुत तकलीपफ देनेवाला व्हॅरिएशन है । आप कभी अनुमान करने के लिए एक प्रयोग करे, मैंने किया था, मैंने प्रयोग किया था की, एक बार मैंने बरपफ का तिल्ली चारो तरपफ से लगाकर उसके बीच में लेट गया । तो 15 मिनिट बाद मेरा शारीर अकाद गया । 15 ही मिनिट में, जब की मैंने खूब प्राणायाम और ये सब किया, 15 मिनिट में शरीर अकड गया । और उस दिन मैंने मेरे बायोकेमिस्ट्री को ऑर्ब्जव किया, तो में बहुत परेशां हो गया । पिफर मैंने सोचना शुरू किया की, उन लोगों का क्या-क्या होता होगा,जो इसी बरपफ के तापमान में 6-6 महीने सोते है, रहते है, लेटते है, उनका क्या होता होगा ? 8-8 महीने ध्ुप नहीं निकलती, टेम्प्रेचर नहीं होता और यही परिस्थिति में, उनको सोना पड़ता है, तो कितनी तकलीपफे होती होगी उनके शरीर को, और शरीर के साथ उनके भोजन को, क्योंकि शरीर भोजन से ही है । तो भोजन से ये सारी तकलीपफे थोड़ी कम हो सके उसके लिए वहां के वैज्ञानिकोने रात-दिन मेहनात करके ये मशीन बनाई । और उन्होंने कहाँ की, जो टेम्प्रेचर वो प्रकृति के रेग्युलेशन में है, हम उसे कण्ट्रोल नहीं कर सकते, कुछ एरिया ऐसा बनाये जिसे हम कण्ट्रोल कर सके । हम जब चाहे तब टेम्प्रेचर को बड़ा सके, घटा सके, इसके लिए रेÚिजरेटर बना । तो ये उनकी मजबूरी से निकली हुई मशीन है, कोई उन्होंने बहुत प्रोग्रेस करके ये मशीन बनाया ऐसा नहीं हैऋ उनकी मजबूरी है और उससे ये निकला । उनकी सबसे बड़ी मजबूरी ये है की अलोपथी में कई दवाएँ ऐसी है, जो ज्यादा तापमान में खतम हो जाती है और कम तापमान में भी । बहुत सारी दवाएँ अलोपथी में ऐसी है जो है टेम्प्रेचर पे खतम हो जाती है, माने उन दवओंका असर नही रहता । लो टेम्प्रेचर पे भी खत्म हो जाती है । तो उन दवाओंको रखने के लिए की टेम्प्रेचर हमारे कंट्रोल में रहे इसलिए Úिज बना । वो पानी रखने के लिए नहीं बना है, दाल रखने के लिए नहीं बना, सब्जी रखने के लिए नही बना, दवाएँ रखने की लिए बनाऋ और आपको एक जानकारी और दूँ की यूरोप में आविष्कार किया सबसे पहले तो मिलिटरी के लिए इसका उपयोग हुआ । और मिलिटरी के लिए ही ये बना क्योंर्कि आमी के जो सैनिक है वो चुस्त,दुरुस्त,तंदुरुस्त रहने चाहिए, जरुरत हो तो दवाएँ उस टेम्प्रेचर की मिलनी चाहिए इसके लिए Úिज आया, ये हमारे लिए नहीं बना । हिन्दुस्थान में इसकी कोई आवश्यकता नहीं और यूरोप में एक और दूसरी समस्या है, जहाँ 6-8 महीने बरपफ पड़ेगी वहाँपर हर चीज जरुरत की समय पर नहीं मिलेगी । मान लीजिये ये जो समय है न नवम्बर,दिसंबर,जनवरी,पफरवरी,मार्च ये सब वहां बरपफ का समय है । और इस बरपफ के समय पर वो चाहे की आलू चाहिए तो नहीं मिलेगा, टमाटर चाहिए तो नहीं मिलेगा, भिंडी चाहिए नहीं मिलेगी, गाजर चाहिए.. कुछ नही मिलेगा उनको, बरपफ मिलेगी ! खा-लो तो खा लो, नहीं तो उसको गरम करके पानी बना लो । और कुछ नहीं मिलेगा तो वो कुछ नहीं मिलेगा, उस समय कुछ चीजों को स्टोअर करके रखने के लिए रेÚिजरेटर है । जब मिल रहा है तो इसको इकठ्ठा कर लो और Úिज में स्टोअर करके रखो । अब गलती तो ये हो गयी हम लोगों से की हमने बिना सोचे-समझे उनकी नक्कल करके ये ले आया । और ऐसे लोगों के घर में भी ले आया जो केमिस्ट्री बहुत अच्छे से जानते है । जो क्लोरो-फ्रलोरो कार्बन को रोज पढ़ते, पढ़ाते है उनके ही घरों में Úिज ! मै कहता हूँ की प्रोपफेसर साहब, आप ये क्या गजहब कर रहें है, आप तो जानते है,  तो कहते है क्या करे, पत्नी नहीं मानती, बच्चे नहीं मानते । तो आपकी केमिस्ट्री आपने पत्नी को क्यूँ नहीं समझाई अभी तक । तो कहते है की समझती नहीं, तो मैंने कहाँ की आप प्रोपफेसर क्यूँ हो गए ? जो आप अपनी पत्नी को केमिस्ट्री नहीं समझा सके तो बच्चों को क्या समझाएँगे आप । अपने बच्चों को नहीं तो दूसरों के कैसे समझाएँगे ? तो मुश्किल ये है की हम विज्ञान पढ़ रहें है लेकिन, वैज्ञानिक नहीं हो रहें है । अपनी जिंदगी में नितांत विज्ञान के विरुध्द काम कर रहें है । प्रकृति और विज्ञान के विरुध्द अगर कोई सबसे खराब चीज अगर हमर घर में है तो प्रेशर कुकर के बाद यही है, रेÚिजरेटर ! तो मेरी विनंती है की, आप इसका रखा हुआ खाना मत खाइए क्यूँकी वो जहर हो जाता है । पिफर आप बोलेंगे की, क्या करे ? एक नियम बना लीजिये अपने जिंदगी में, जो हमारे दादा-दादी, नाना-नानी के समय का बनाया हुआ है और शायद बागवट ने भी ये नियम लिखा है बहुत रेखांकित करके ।  वो ये कहते हैऋ अब मै दुसरे नियम पर आ रहाँ हूँ, पहले नियम खतम हो गए हैं अब में दुसरे नियम पे आ रहाँ हूँ । बागवट जी ये कहते है की, कोई भी खाना जो बना, कोई भी खाना, दाल बनी, चावल बना, रोटी बनी, बनने के 48 मिनिट के अन्दर इसका उपभोग हो जाना चाहिए ये दूसरा नियम है । दूसरा सूत्रा हैऋ कोई भी खाना बना, बनने के 48 मिनिट के अन्दर उसका उपभोग माने कन्जम्पशन हो जाना चाहिए । रोटी बनी, बन गयी, अब 48 मिनिट के अन्दर खा लीजिये, चावल बन गया 48 मिनिट के अन्दर खा लीजिये, दाल बन गयी 48 मिनिट में खा लीजिये, खीर बन गयी 48 मिनिट में खा लीजियेऋ ये 48 मिनिट का चक्कर क्या हैं ? 48 मिनिट ! 40 मिनिट भी नहीं, 50 मिनिट भी नहींऋ 48 मिनिट ! तो, बागवट जी का जीवनी जब पढ़ा तो मुझे पता चला की, वो बहुत बड़े मॅथेमेटीशियन भी थे । आर्युवेद के चिकित्सक थे ही, मैथमेटीक्स के बड़े पंडित थे । उन्होंने जो कॅल्कुलेशन किये है वो इसी तरह के है, 42 मिनिट । अब ये मिनिट है वो मैंने जोड़ा है, बागवट जी ने लिखा है, 48 पल । हमारे यहाँ होता है न, पल होता है, क्षण होता है, प्रतिपल होता है । हमारे यहाँ जो समय की नापने की डिग्रियां हैं पल है, क्षण है, प्रतिपल है. वगैरा..वगैरा.. । ये मिनिट का जो चक्कर है, ये तो अमेरिका, यूरोप से आया है, ये मिनिट आपको समझता है, पल समझता नहीं इसलिए मैंने इसमें जोड़ दिया है । हालात की, एक मिनिट एक पल के इतना नहीं होता है, एक पल एक मिनिट से थोडा कम है । अगर बागवट जी के कॅल्कुलेशन में करू तो 1 मिनिट  का 53 व हिस्सा एक पल है, और बागवट जी कहते है की भोजन बनने के बाद 48 पल के अंदर इसे आप कन्जूम कर लीजिये, तो मिनिट मैंने केल्कुलेट किये तो वो 48 मिनिट के आसपास आता है । ये कॅल्कुलेशन है । तो जो बना हुआ भोजन है वो आप 48 मिनिट में कर लीजिये । वो आपके लिए सबसे ज्यादा पोषकता देने वाला है । जो, उसके बाद आप भोजन करे तो ध्ीरे-ध्ीरे उसकी पोषकता कम होती जाती है । अगर आपने 6 घंटे के बाद किया, तो पोषकता कम हो जाएगी, 10 घंटे के बाद और कम हो जाएगी, 12 घंटे के बाद तो बिल्कुल ना के बराबर हो जाएगी, और 24 घंटे के बाद तो खतम, बासी हो गया । बासी शब्द है न, ये बागवट जी का है । 3,500 साल पहले ये शब्द था, बासी हो गया जी । और वो कहते है की ये बासी भोजन ओ जानवरों को खिलाने लायक भी नहीं है, आप कैसे खा रहें है ? बागवट जी ने एक अच्छी मजे की बात लिखी है, उन्होंने कहाँ की, हमारे देश में 365 दिन का जो चक्र है, 1 र्वष का, इसमें एक ही दिन ही ऐसा है, जिस दिन आप ये खा सकते है, 364 दिन नहीं खा सकते । एक ही दिन खा सकते है, और वो एक दिन का उन्होंने बहुत पक्का कॅल्कुलेषन किया है की उस दिन शरीर के वात और पित,कपफ की अवस्था क्या होती है, उसके अनुसार बासी भोजन चलता है । तो मैंने जब ध्यान दिया, तो मुझे पता चला की, वो दिन हमारे देश में एक त्यौहार आता है, उसको मेरी माँ कहती है बासोड़ाऋ आप पता नहीं क्या कहते है । एक ही त्यौहार है अपने देश में, जिस दिन हम बासी खाना ही खाते है और ये जो त्यौहार है,  दिन पड़ता है वो र्कातिक, अग्ययन, पूस, माघ के हिसाब से उसका जो दिन पड़ता है, बागवट जी के हिसाब से वही दिन पड़ता है । तब मेरे समझ में आया की, इस देश के त्योहारों के पीछे वैज्ञानिकता है । त्यौहार ऐसे ही नहीं तय हो गए, इस दिन दिवाली होगी, इस दिन ये होआ, उस दिन वो होता होगा इसके पीछे कुछ कॅल्कुलेशन है, बागवट जी का कॅल्कुलेशन है की, शरीर के तीन दोष हाँ, आप सब जानते है वापफ,पित और कपफ इनपर आगे में विस्तार से बात करूँगा यहाँ पर बस रेपफरन्स की लिए कह रहाँ हूँ । तो ये दोष समान स्थिती में रहें तो हम निरोगी रह पाए, इनकी स्थिती उपर-निचे हो जाये पित बढ़ गया, वात और कपफ वो भी कम हो गया । इनकी स्थिती उपर-निचे हो जाये तो रोगी होते है आप । तो एक दिन ऐसा आता है 365 दिन में से एक दिन ऐसा आता है की, ये वात, पित, कपफ की स्थिती बिल्कुल ऐसी होती है, जो वीचित्रा लगती है । होनी नहीं चाहिए ऐसी स्थिती हो जाती है । तो बागवट जी कहते है की उस स्थिती को कंट्रोल में लाने के लिए बासी खाना ही चाहिए, जिसकी पोषकता पूरी चली गयी हो, क्योंकि एक दिन ऐसी स्थिति आती है उस दिन शरीर को प्रोटीन नहीं चाहिए, बिल्कुल नहीं चाहिए । प्रोटीन तब खतम होगा, जब खाना पुराना हो जाये, तब मेरे समझ में आया, कैसी वैज्ञानिकता है । तो आप साल में एक ही दिन बासी भोजन कर सकते है, अब आप देखिये की, एक दिन के लिए Úिज लगेगा, तो 364 दिन की बिजली क्यूँ र्खच करना ? और 364 दिन का इतना स्थान क्यूँ घेर के रखना जितना बहुत महँगा है स्थान, एक स्क्वेअर पफूट का क्या भाव है ? 3000! तो Úिज अगर रखा है मान लो 5-7 स्क्वेअर पफीट में तो 3000 का 5 गुना कर लो, 15,000 रोज का र्खच एक तो दे दिया Úिज खरीदने में और ये जिंदगीभर इतना स्थान घेरकर खड़ा है जो इस्तेमाल नहीं हो रहाँ है, तो कितना घाटे का सौदा है, तो इस घाटे के सौदे को अपने जिंदगी में मत लाइए ।  मेरी वीनंती है की जिनहोंने Úिज खरीदा नहीं है वो न खरीदे, जिनहोंने खरीद लिया है वो इसका उपयोग ध्ीरे-ध्ीरे कम करे ! रक दिन थोडा ऐसा आये उस दिन इसका उपयोग बंद हो जाये तो आपके जीवन के लिए बहुत अच्छा है और आज कल आप जानते है की र्पयावरण के प्रदुषण की चर्चा होती है, दुनियाभर के वैज्ञानिक परेशान है, की र्सदी कम हो रही है और र्गमी बढ़ रही है । र्सदी कम होने में और र्गमी बढ़ाने में, जिन गैसों का सबसे बड़ा योगदान है वो यहीं गैसे है, सी.एपफ.सी 1 से सी.एपफ.सी.12 तक । तो सारे दुनिया के देश परेशान है, क्या करे- क्या करे ? अभी इंडोनेशिया के बालिद्विप में सात दिन का सम्मलेन हुआ, अमेरिका, र्जमनी, भारत जैसे देशों के 156 राष्ट्रपति, प्रधनमंत्राी सात दिन झक मार रहे थे, ये बात के लिए की भाई, ये सी.एपफ.सी. का प्रोडक्शन कैसे कम किया जाये, तो इसमें भी आप थोडा सहकार कर दीजिये । ये प्रोउक्शन कम करने के लिए Úिज की जरुरत बंद करने की हैऋ तो ही प्रदुषण कम होगा । तो इसलिए, मैंने आपसे कल कहाँ था की Úिज का खाना भी आप न खाए, इसका ध्यान रखे, ये बात हमेशा याद रखिये की बना हुआ खाना 48 मिनिट के अन्दर खा लेना चाहिए । अब ये, 48 मिनिट का जो कॅल्कुलेशन है इस्पे मै कल आपसे ज्यादा विस्तार से बात करूँगा क्यूँकी ये सूत्रा कल आएगा और एक तीसरी बात मैंने जो आपसे शुरू कियी थी, मायक्रोेव्हेवओव्हन ! मायक्रोेव्हेव ओव्हन भी कुछ इसी तरह का किससा है, इसके भी अन्दर टेम्प्रेचर को आप कंटाªेल करते है और मायक्रोेव्हेवओव्हन में कोई भी चीज आप रखते है न, गरम करने के लिए, तो वो चीज का एक हिस्सा गरम होता है, पूरा नहीं होता । गरम होने के लिए हमारी जो कल्पना हैऋ चारो तरपफ से एक साथ, एक जैसा टेम्प्रेचर आ, वो पानी ही कर सकता है और कोई चीज नहीं है दुनिया में । पानी गरम करके उसमे कोई चीज डाले तो सही गरम होती है । मायक्रोेव्हेव ओव्हन में पानी का कोई काम नहीं । और ये मायक्रोेव्हेव ओवन भी यूरोप,अमेरिका के लिए है, क्यूँकी वहाँपर बहुत ठंडी है, आपके लिए नहीं है क्यूँकी यहाँ पर बहुत र्गमी है । तो हमारे घर में क्या हुआ है में आपसे वीनम्रतार्पूवक कहता हूँ की, कुछ चीजों को स्टेटस सिंबल बना के रखा है, वो बदल दीजिये । ये स्टेटस सिंबल नहीं है, ये मजबूरी की चीजे हैं । कहते है न की हमने मजबूरी में ये किया, वो किया । तो आप समझ लिया की मजबूरी में Úिज लाया, मजबूरी में मायक्रोेव्हेव ओव्हन लाया, मजबूरी में प्रेशर कुकर लाया, ये छाती ठोककर बताने की बात नहीं है की, मेरे घर में Úिज है । या मेरे घर में मायक्रोेव्हेव ओव्हन है । आप इसे शर्म से बताओ मेरी कुछ मजबूरी थी, उस दिन दिमाग कुछ पिफर गया था, मेरा वीवेकशून्य हो गया था, तो मैंने मेरे खून-पसीने की कमी बरबाद कर दी और ये ले आया । तो ये जब इस तरह से कहना जब शुरू करेंगे, तो थोड़े दिन में आप की भावना अपने आप बदल जाएगी, और ये चीजे बहार निकल जाएगी । ये जो 48 मिनिट का कॅल्कुलेशन है, ये जैन र्दशन में भी है । आप में से कोई भी जैन समाज के लोग होंगे तो मेरी बात उनको बहुत जल्दी समझ में आएगी । जैन साध्ू, संत है, उनके मुँह से आप यहीं सुनेंगे की 48 मिनिट के बाद पानी में जीवराशी पैदा होती है, और वो जीवराशी पिफर बढाती ही चली जाती है । तो वो अरबो में, अरबों से खरबों में चली जाती है । ऐसा पानी नहीं पिन चाहिए क्यूँकी जीव हत्या होती है और उसका पाप लगता है । तो जैन र्दशन में इसे अहिंसा के साथ जोड़ा है । और बागवट जी ने इसको स्वस्थ्य के साथ जोड़ा है । कुल बात एक ही है । शायद जैन र्दशन में इसे अहिंसा से इसलिए जोडा होगा की, र्ध्म से जाएगा जुडकर तो जल्दी समझ मे आएगा । बागवटजी ने इसे शरीरस्वास्थ्य ते साथ जोडा है तो थोडा देर मे समझ मे आता है, क्योंकि हमारा चित्त और मन र्ध्म के प्रती आर्कषित है क्योंकि हमारे डीएनए मे ऐसा है । भारत का जो डीएनए है, वो ऐसाही है, जो र्ध्म की बात करे तो तुरंत समझ मे आए, विज्ञान थोडा पीछेसे आता है । इसलिए इस देश में र्धमिक लोगों की पूजा होती है, वैज्ञाानिकों को कोई पूँछता नहीं है, वो ऐसेही बिचारे घूमते रहते है । कभी आप जैसे लोग उनको माला-वाला डाल दे तो ठीक होगा वरना इस देश के वैग्यानिक कहाँ मरते है, कहाँ खपते है, कौन जानता है, कौन पूँछता है । लेकिन साध्ू, संन्यासी, महात्मा इतने पूजे जाते है इस देश में, जिनके पीछे आप कुछ नहीं जानते उनका इतिहास, उनका भूगोल तो भी आप उनके चरणों मे लेटते रहते है, वो आपके डीएनए का दोष है, मेरे डीएनए का दोष है । क्योंकि डीएनए ऐसा है इस देश में, कभी मौका मिला तो बात करुँगा इसपर की गरम देशों का डीएनए और थंडे देशों का डीएनए बिल्कुल अलग होता है । ये जो युरोप और अमेरिका देश है ना, इनका जो डीएनए है और हमारा जो हम भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश में रहते है इनका बिल्कुल डिÚंट है, जो दुनिया के गरम देश है, सारे र्ध्म यहीं से निकले । आपको मालूम है, ईसायत यहीं से निकली, इस्लाम यही से, र्पूव से ही निकला, हमारा हिन्दू र्ध्म जिसे सनातन मानते है, वो भी पूर्व से निकला । पश्चिम से आजतक कोई र्ध्म निकला ही नहीं । ईसायत निकलने का स्थान बेथ्थलम है न बेथ्थलम, इस्रायल वो पूर्व मैं है । ईसायत के बाद, इस्लाम के निकलने का स्थान वो भी वही हैं, बेथ्थलम में, वो एक ही स्थान के लिए मर रहे है की, ये मेरा की तेरा और लढाई सांठ साल से चल रहीं है । और वो 10 स्क्वे. पफीट की जगह है बस । हाँ ! 10 स्क्वे. पफीट की जगह पर 33 करोड़ मर गए है और छोड़ना नहीं चाहते की में ये लेलूँ, तू ये ले ले, ये पिफलिप्सिन का है की इस्रायल का । तो ये पिफलिप्सिन और इस्रायल यूरोप में नहीं है, एशिया मैं है, और एशिया दुनिया के र्पूव मैं है । तो सारे र्ध्म र्पूव से ही निकले है क्योंकि र्पूव का डीएनए कुछ इस तरह का है । पश्चिम से र्ध्म नहीं कोई क्यूंकि डीएनए दुसरे तरह का है । तो ये डीएनए का दोष है, हम र्ध्म को मानते है । इसलिये शायद जैन शास्त्रों मे, जैन आर्चायोने, जैन संतोने र्ध्म से इसे जोड़ दिया । तो ये र्ध्म से जुडी हुई विज्ञान की बात हैं । इसको विज्ञान से पहले र्ध्म में समझकर आप पालन करेंगे तो आपका विश्वास उसपर पक्का होता है । ये 48 मिनिटे, सब याद रखें, सब माताएँ, बहने याद रखे, भोजन पका तो 48 मिनिट में हो ही जाना, खा ही लेना । इसलिए शायद पुरानी परंपरा हमारे देश में हैं, गरम खाना खाओ, माने वो 48 मिनिट के पहले हो जाये । गरम-गरम रोटी बना के खिलाओ या गरम-गरम रोटी खाओ । आपको शायद मालूम नहीं है, आप में से जो यूरोप, अमेरिका ज्यादा घूमते हैं, वो इसका अंदाजा लगाएँगे की, गरम रोटी का महत्व क्या है ? क्योंकि यूरोप, अमेरिका में नहीं मिलती । दुनिया के 56 देशों मे गरम रोटी नहीं मिलती क्योंकि उसको बनाना नहीं जानता कोई । दुनिया की आबादी 600 करोड़ है । 600 करोड़ आबादी में 300 करोड़ महिलाएँ है और 300 करोड़ पुरुष अगर मान ले तो लगभग 300 करोड़ महिलाओं मे 250 करोड़ महिलाएँ नहीं जानती की गरम रोटी कैसे बनती है । उनके पास गेहूँ है, गेहूं का आटा भी है क्योंकि यूरोप के कई देशों मे गेहू है । अमेरिका में गेहू पैदा होता है, कनाडा में गेहू पैदा होता है । गेहूँ ठण्ड की पफसल हैं तो ये ठन्डे देशों मे होता है तो गेहूँ का आटा भी है । रोटी बनाना नहीं आता । क्यों ? क्यूंकि कोई यूनिर्वसिटी नहीं है वहाँपर सिखाए इसको, कोई कॉलेज नहीं है जो सिखाए इसको तो यूनिर्वसिटी,  कॉलेज नहीं है । और कोई माँ नहीं है जो अपने बेटी को सिखाएँ, क्योंकि माँ नहीं आता तो बेटी को क्या सिखाए ? और हजारो सालों से ये चक्कर चल रहाँ हैऋ रोटी बनाना नहीं आता । किसी यूरोप और अमेरिकन व्यतिफ के बारे में, एक किस्सा बताता हूँ । थोड़े दिन पहले हमारे यहाँ एक दम्पति आये इंग्लैंड से । पति और पत्नी दोनों आएँ, उन्होंने कहाँ की हमे भारत का गाँव देखना है, तो हमने एक गाँव में भेज दिया । संयोग से जिस दिन गाँव में गए, वहाँ शादी थी, तो हमने कहाँ की उसमे भी शामिल हो जाइये तो भारत क्या है, अच्छा समझ में आ जायेगा । तो वो शादी में जब शामिल हो गए तो कोई रोटीयां बना रहें थेऋ कोई पुड़ियाँ बना रहें थे । तो गाँव में आप जानते है की, नोकर नहीं बनाते, सब गाँव इकठ्ठा होकर बनता है । जिसके घर में शादी है उसके घर में दुसरे घर के लोग आ जाते है । दुसरे घर का चूल्हा बंद हो जाता है, सब एक ही घर में खाते है । सब महिलाएँ बना रहीं थी तो उस पिफनिश दम्पति ने पूछाँऋ ये सब कितना पैसा लेगी ? तो उनको कहाँ की ये पैसा-वैसा नहीं लेनेवालेऋ तो ये कैसे हो सकता है ? तो हमने कहाँ की ये है, क्योंकि भारत को-ऑपरेशन पे चलता है, कॉम्पीटीशन पे नहीं चलता  ये देश । हमारे समाज में को-ऑपरेशन है, कॉम्पीटीशन नहीं है । तो वो पिफनिश दम्पति में जो महिला थी वो पहले से इस बात से परेशान थी की, ये रोटी एकदम गोल बन रही हैऋ 100: गोल । उसकी जिंदगी में ये कल्पना नहीं है की, 100: गोल चीज कोई हाँथ से बन सकती है, वो कहती है की उसने सोचा था की भारत के बारे में मशीन से बनाते होंगे रोटी और ये हाँथ से बनाते है रोटी 100: गोल । तो उसके कैमेरे में जितनी रील थी वो उसने पूरी र्खच कर दी गोल रोटी बनके देखने में । माने, आपको ये उदाहरण इसलिए दिया की उनके लिए ये अजूबा है, उनको ये लगता है की कोई महिला ये कर पे । और उनको मैंने, वो जब जा रहे थे तब पूछा की उनको भारत में कौनसी चीज अच्छी लगी, उन्होंने कहाँ की ये गोल रोटी जो है, वो सबसे महत्वर्पूण वस्तू है जिसकी व्हल्यु हमारे लिए सबसे ज्यादा हैं, क्योंकि हम जानते नहीं की ये कैसे बनती है । आयर आपके घर में हर माँ-बहन इसको बना सकती है, 10-12 साल की बहन भी बना सकती है । इसका मतला है, रोटी ताजा और गरम ये भारत में ही संभव है । दुनिया के दुसरे देशों को नसीब नहीं है । तो आप समझ लीजिये की आपके पास कितनी वैल्यूएबल चीज हैं । गरम रोटी ! और उसको आप छोड़कर ठंडी करके खां रहें है, तो ये आपका दुर्भाग्य है, सौभाग्य नहीं । तो रोटी गरम-गरम ही खाएं, गरम-गरम ही खिलाएँ । यूरोप में कोई किसी को खिलाता नहीं क्योंकि कोई बनता नहीं और जानते भी नहींऋ वहाँ बिचारे तीन-तीन महीने पुरानी रोटी खाते है जिसे डबल-रोटी कहते है, पाँव-रोटी कहते है । मैंने एक सिंपल कॅल्कुलेशन किया था की पाँव रोटी बनाने के बाद खाने तक 90 दिन निकल जाते हैं, अमेरिका और यूरोप में । पता है क्या की, गेहूँ हर जगह होता नहींऋ कुछ जगह होता है । तो गेहूँ बड़े-बड़े ट्रक में भरके वहाँ तक जाता है जहाँ गेहूँ को पिसनेवाली चक्कियाँ लगीं है, फ्रलोअर-मिल, वहाँ आटा बनता है, पिफर वो ट्रक में भर के पिफर वहाँ जाता हैं जहाँ उससे डबल-रोटी बनती हैऋ पिफर वह बनकर कहीं और जाती है पिफर ऐसी चक्कर में नब्बे दिन निकल जाते है । हमारे आर्युवेद शास्त्रा में बागवटजी कहते है की, आटे को जितना ताजा इस्तेमाल किया, उतनाही बेहतरीन है । आटे के बारे में वो कहते है, जितना ताजा इस्तेमाल किया, उतनाही बेहतरीन हैऋ रोटी के बारे में कहते है 48 मिनिट के अन्दर खा लेना चाहिए और पिसा हुआ आटा, वो ये कहते है की, 15 दिन से पुराना कभीभी मत खाना । 15 दिन, मॅक्सिमम ! वो भी ये गेहूँ के लिएऋ ये चना, मक्की और ज्वारी इसके लिए तो सात ही दिन कहा है उन्होंने । सात दिन से पुराना नहीं खा सकते क्योंकि उसकी मायक्रोेन्यूट्रीअन्ट्स कॅपॅसिटी लगातार कम होती चली जाती है । तो, अब आप बोलेंगे जी, ताजा आटा कहाँ से लाये चक्की है, जिंदाबाद ! हिन्दुस्थान में हजारो लाखो वर्षों से आटा ताजा बना कर रोटी बनाने की परंपरा है की नही ? जो माताएँ यहाँ बुर्जुग यहाँ है, इन्होने अपना गाँव देखा होगा, अपने गाँव की, घर की, चक्की देखि होगी, ये चक्की पे मैंने थोडा रिर्सच किया की, ये क्या अद्भुत चीज बनाई है हमारे ट्टषी-मुनियोंनेऋ ये दुनिया की ऐसी अद्भूत मशीन है, जो ताजा आटा तो देती ही है आपके शरीरस्वास्थ्य के लिए और आप के अन्दर की मांस-पेशियों को हमेशा फ्रलेक्सिबल रखती है । और हमारे घरों में ये जो चक्की चलने का काम माताएँ करती रहीं है, मैंने इन माताओं पर एक छोटासा रिसर्च अभी पिछले साल पूरा किया । मेरे एक दोस्त हैं आर्युवेद के चिकित्सक है उनके साथ मिलकर । वो गाँव में रहते है तो, मैं उनसे कहाँ की आप गाँव के कुछ महिलाओं का अध्ययन करे की जो चक्की चलाती है, इनके बारे में जरा पता करिए और जो, चक्की नही चलाती पिसा हुआ आटा लाती है । तो जो चक्की चलानेवाली माताएँ है, वो नब्बे माताएँ हैऋ किसी को भी सिझेरियन डिलीवरी नहीं हुई है । चक्की चलानेवाली माताओं के पैरों में र्दद नहीं है । चक्की चलानेवाली मतओंको कभी कंध नहीं दुःख रहा, र्गदन नहीं दुःख रहीऋ नींद अच्छी आ रही है, डायबीटीस नहीं है, हायपरटेंशन नही है, ब्लडप्रेशर नही बढ़ा है, 48 से 50 बीमारियाँ नही है और जो माताएँ पिसा हुआ आटा ला रही है कैप्टेन कूक आय.टी.सी काऋ उनके घर में डायबिटीस भी है, अर्थ्रायटीस भी है, हायपरटेंशन भी है, ये भी हैऋ वो भी है । तो मैंने वै। जी से कहाँ की आप क्या मानते है की ये जो चक्की चलानेवाली माताएँ ये ऐसा क्या विशेष काम कर रहीं है । तो उन्होंने मुझे समझाया, वो मेरे समझ में आया और आपको भी समझ में आएगाऋ हम जब एक दिन चक्की चलाते है, चलाके देख लीजिये, तो आपको समझ में आएगा । सबसे ज्यादा दबाव पेट पे पड़ता है । हाँथ पे इतना नहीं है, पेट पे पड़ता है । और माँ के पेट में एक एक्स्ट्रा ऑर्गन है जो पिता के पेट में नहीं है जिसको गर्भाशय कहते है । ये गर्भाशय आपके पेट के बिकुल बीचोबीच हिस्से में है । चक्की चलाते समय सबसे ज्यादा जोर वहीं है । और गर्भाशय के बारे में आध्ुनिक विज्ञान के रिर्सच, आर्युवेद के रिसर्च ये कहते है की, गर्भाशय के आसपास के एरिया में जितना हलन-चलन हो, उतनी इसकी फ्रलेक्सिबिलिटी है, फ्रलेक्सिबिलिटी माने मुलायमि है । अंग्रेजी आप शायद समझ जायेंगे फ्रलेक्सिबिलिटी माने मुलायिमत । इलास्टिसिटी एक शब्द होता है अंग्रेजी में ! इलास्टिसिटी का मतलब, जब चीज की जरुरत पड़े तो ताण देना, जब जरुरत पड़े तो संकुचित कर देना, हमारे गर्भाशय का सबसे बड़ा गुण है । इसी गुण के कारण बच्चे का जन्म होता है, और ये गुण बनाये रखने में सबसे बड़ी भूमिका है हलन-चलन । वहां आस-पास मांसपेशियाँ हलन-चलन रहे तो ये हलन-चलन होता है अच्छे तरीके से, मैंने खुद चलके देखि है चक्की । ये सबसे ज्यादा पेट के हिस्से में ही होता है । तब मेरे समझ में आया की जो माताएँ नियमित रूप से चक्की चला रही है, उनको सिझेरियन डिलीवरी नही हो रहीं है, क्योंकि गर्भाशय की इलास्टिसिटी मेन्टेन है तो आसानी से बच्चा बाहर आ रहा है, बिना किसी ऑपरेशन के, तब मुझे ध्यान में आया की हमारी जो पुरानी माताएँ है, उनके 8-10 बच्चे होते थे, कभी सुना नहीं की सिझेरियन । वो दाई आती थी गाँव की जो डठठै नहीं है, डक् नहीं है,डै नहीं है वो बच्चे करा के चली जाती थी ऐसे ही जैसे कोई दाल पका के चला गया । या चावल पका के कोई चला गया । हाँ ! ऐसे होता है । तो हमने इस बात को जब ध्यान दिया, तो मेरे मन में आया की, और बड़ा रिसर्च करना चाहिए तो, मेरे एक मित्रा है चेन्नई में वो और उनकी पत्नी मिलकर 15-16 वर्षाेंसे इसी विषय पर काम कर रहें है की, बच्चे को बिना किसी ऑपरेशन से या सीझर के बाहर कैसे लाया जाए । तो उनके 15-16 साल का रिर्सच ये कहता है की, ये र्सिपफ चक्की की मदत से ही हो सकता है । और आर्युवेद तो यहाँ तक कहता है की, माँ का गर्भ 7 वे महीने तक चक्की चलने की अनुमति देता है । माँ को 7 वे महीने तक चक्की चलवाई जा सकती है । 8 वे महीने में नहीं । पिफर उसको बंद कर देना अच्छा है और उतनी 7 महीने की चक्की आप के लिए पर्याप्त है की बच्चा बिना सीझर के हो और जो बच्चे बिना सीझर के है उनके जीवन को आप देख लीजिये, और जो बच्चे सिझेरियन के है उनके जीवन को आप देख ले, जमीन-आसमान का अंतर है ! सीझर बच्चे ज्यादा बीमार है । समय-समय पर बीमारियाँ है । जो बिना सीझर है वो सब स्वस्थ है, तंदुरुस्त है । ब्रेन का डेवलपमेंट उनका अच्छा है, लोजिक को डेवलप करने की कपसिटी,  कल्पनाशीलता उनमे दुसरे बच्चों से ज्यादा है । तो बागवट जी का  सूत्रा है की खाना बनाये तो 48 मिनिटे के अन्दर खाए और खाना बनाने वाली जो वस्तुए हैं जिनमे सबसे महत्वर्पूण है आटा, गेहूं का आटा 15 दिन से ज्यादा पुराना न खाए, ज्वारी, बजरी और मक्की का आटा 7 दिन से ज्यादा पुराना न खाएऋ और वो ये कहते की रोज का हो तो सबसे अच्छा । सुबह बनाए और शाम को आटा इस्तेमाल करे तो वो सबसे अच्छा ! ज्यादा दिन पुराना ना हो तो अच्छा । तो अब इसको आप अपने जिंदगी में इस सूत्रा को कैसे उतारेंगे ? अगर, संभव हो तो एक चक्की लीजिये, संभव हो तो । इसके कई पफायदे हैं, इससे सबसे बड़ा पफायदा है की आप के घर में माँ है, बहन है उसको माँ बनाने के समय ये बहुत मदत करेगी, चक्की । दूसरा आपका वेट बहुत कम करने मदद करेगी चक्की । अगर आपको एक्स्ट्रा वेट है और आप उसको लूज करना चाहते है तो 15 मिनिट सुबह चक्की चलाया पर्याप्त है । 15 मिनिट सुबह आपने चक्की चलाया तीन महीने बाद आप देखना 12-15 किलो वजन कम होगा आपका, सिपर्फ 15 मिनिट की चक्की । रामदेव जी चक्की चलवाते है की नहीं ? आप चलते की नहीं ? लेकिन उसमे कुछ होता ही नहीं । ऐसे-ऐसे चलवाते है की नहीं.. तो असलियत में ही चला लो, कुछ तो आटा तो मिलेगा । कम-से-कम आटा तो निकलेगा, बाय प्रोडक्ट यहाँ तो कुछ निकल ही नहीं रहा, बस्स ऐसे,ऐसे चल रहा है । अब आप बोलेंगे जी, चक्की कहाँ मिलेगी ? चक्की अभीभी मिल रहीं है, यहीं चेन्नई में मिलेगी । पत्थर बंधने वाले बहुत लोग इस देश में है जो रोज ये काम कर रहे है लेकिन वो रो रहे है की राजीव भाई ये कोई खरीदता नहीं हम क्या करे ?   
हमारा सील-बटटा भी कोई खरीदता नही, चक्की भी नहीं. तो मैंने, संकल्प लिया है की, मै बिक्वाउंगा आपकी चक्की । । हाँ ! और मई उनका पफोकट का मार्केंटिंग मैनेजर हूँ । वो मुझे कुछ एक पैसा नहीं देते लेकिन लेकिन  मै उनके मार्केंटिंग के काम में लगा हूँ । ये मार्केट बनाने में बागवट जी की बड़ी मदद मिल रही है । चाहे तो एक चक्की ले लीजिये, बहुत महँगी नहीं आती, सस्ती है । 15 मिनीट मिनीट चलाइए, महिलाएँ भी चला सकती है, पुरुष भी चला सकते है । इसमें ऐसा कुछ भेदभाव नहीं है की पुरुष न चलाये, महिलाएँ ही चलाये.. महिलाएँ चलाये तो उनको थोडा एक्स्ट्रा गेन है है । एक्स्ट्रा गेन माने आपको जो एक्स्ट्रा ऑर्गन है बॉडी में युटेरस जो पुरुष में नहीं है, इसको मदद मिलेगी आपको फ्रलेक्सीबल बनाये रखने मेंऋ और में आपको एक बहुत गहरी बात कहने आया, वो माता, बहनोंसे उम्र के एक पड़ाव में जब आप 45 वर्ष के आसपास उम्र की हो जाएँगी तब आपके गर्भाशय के बहुत सारे कॉम्प्लीकेशन्स होंगे, थोडा कॉम्प्लीकेशन यहाँसे शुरू होगा की, आपका मेनोपॉज पीरियड शुरू होगा मेन्सेस साइकल्स आपकी बंद हो जाएगी इस पीरियड में और उस पीरियड में जितने कॉम्प्लीकेशन्स हो सकते है, वो बच्चे के जनम के समय पर भी नहीं होते है । और कोई कॉम्प्लीकेशन्स तो ऐसे होते है की, जिनको  जिन माँ समझ ही नहीं पाती की, ये क्या हो रहाँ है मेरे साथ । अचानक से पसीना आएगा, पूरा शरीर पसीने से भर जायेगा, पिफर थोड़ी देर बाद ठण्ड लगना शुरू हो जाएगी । थोड़ी देर में तमतमा जाएगा चेहराऋ एकदम गर्मी Úेश ! समझ में नहीं आता किसी माँ को, अभी थोड़ी देर पहले इतना पसीना था, अभी गर्मी आई, अभी ठंडी लगने लगी । इतने व्हॅरिएशन्स होते है, मिनीट-मिनीट में व्हॅरिएशन्स होते है । मन आपका इतना डिप्रेशन में चला जाएगा, अवसाद में चला जाएगा की दुनिया बिल्कुल बेकार है, ऐसा क्या करना जिंदा रह के । ये डिप्रेशन है । तणाव मन में होगा, अवसाद मन में होगा, और ऐसे-ऐसे कॉम्प्लीकेशन्स बनाते जाएँगे । कारन उसका एक ही है की, कुछ हार्मोन्स आपके शरीर में बनाना बंद हो जाएँगे, वो आपके लिए बहुत जरुरी है, हार्मोन्स बनेंगे ही नहीं तो ये सब मुश्किलें आती है । तो, भगवान् की व्यवस्था ऐसी है की 45-50 वर्ष की उम्र में हर माँ को दूसरा जन्म लेना पड़ता है ऐसा कहाँ जाता है । तो ये जो दुसरे जन्म की समस्याएँ है इनको जिंदगी में खतम तो किया किया नहीं जा सकता, लेकिन बागवट जी कहते है की, इनको कण्ट्रोल किया जा सकता है । अब में तीसरे सूत्रा पर आ रहाँ हु । तीसरा सूत्रा माताएँ, बहनों के लिए विशेष रूप से वे कह रहें है की, माताओ, बहनों की मासिक र्ध्म बंद होने के बाद की जो अवस्था है इनमे पर्मनंट कोई क्युअर नहीं है क्योंकि हार्मोन्स बनना बंद हो गए तो वो बंद हो गयेऋ उनको बाहर से भी नहीं डाला जा सकता, लेकिन बागवट जी ये कहते है की उसे कण्ट्रोल करके रखा जा सकता है । तो वो कहते है की कण्ट्रोल करके रखने में, माँ के रसोईघर के जो उपकरण है, उपकरण, इंस्ट्रूमेंट्स इनकी आप मदद ले सकते है । तो रसोईघर का सबसे अच्छा उपकरण मैंने कहाँ की चक्की ! इसकी मदद आप ले सकते हैऋ और दूसरा एक उपकरण और है आपके रसोईघर में, सील-बटटा ! मसाला पीसनेवाला सील-बटटा है न ये दूसरा सबसे बड़ा उपकरण है । ये सील बटटा भी मैंने चला के देखा तो ये सील बटटा चलने में भी सबसे ज्यादा जोर पेट पर ही आता है, चक्की चलने में सबसे ज्यादा जोर पेट पर ही आता है । तो ये )षी-मुनियोंने ये चक्की आविष्कार जब किया होगा, सील-बटटा का आविष्कार जब किया होगा, तब किसी माँ को ध्यान में रखकर ही किया होगा । अब नियमित रूप से आप सील-बटटा चला रहे है और चक्की चला रहे है तो युटेरस के आसपास की जो मांसपेशियां है वो हमेशा नरम और मुलायम रहनेवाली है, तो आपके जिंदगी के कॉम्प्लीकेशन्स 45 साल के बाद कम रहने ही वाले है । हम उनको दावा खा-खा कर कम करे तो दवाओंके साइड इपफेक्ट्स है । ज्यादा दवाओंके साइड इपफेक्ट्स है की, मोटापा बढेगा । एक भ्त्ज् टेक्निक है, हार्मोन्स रिप्लेसमेंट थेरेपी ! अक्सर माताएँ उसमे जाती है 45-50 साल की उम्र में, हाँथ जोड़कर विनंती है की, कभी न जाये, और आप गए उसमे तो आपके वेट को दुनिया का कोई भी भगवान् बचा नहीं सकता बढ़ने से, बढेगाहीऋ क्योंकि हार्मोन्स रिप्लेसमेंट थेरेपी में जो मेडिसीन्स है वो, मेड बढ़ाने वाली है, मेड माने शरीर में एक्स्ट्रा वेट बढ़ाने वाली है । तो आप अगर भ्त्ज् से बचना चाहते है, और अगर दवा नहीं खाना चाहते,  तो 15 मिनीट ही चलाइये ना सवेरे-सवेरे चक्की । 15 मिनीट से ज्यादा जरुरी नहीं है । 15 मिनीट में जितना गेहूँ पीस गया, जितना चना, दाल पीस गया अच्छा है । पिफर आप बोलेंगे जी, हमारे यहाँ तो एक-एक घंटे चलाते थे । उस समय शायद लोगों का शरीर भी इतना मजबूत था, तंदुरुस्त था, तबियात अच्छी थी, घी-दूध् भी अच्छा खाने को मिलता था, तो 1-1, 2-2 घंटे चला सकते थे । आज के समय को ध्यान में रखते हुए 15 से 20 मिनीट भी आपने चलाया, या तो चक्की या तो  सील-बटटा, तो जिंदगी आपकी एकदम सुरक्षित और निरोगी रहनेवाली है । तो विज्ञान के साथ रसोई सबसे ज्यादा इस देश में जुड़ा हुआ है । तो, तीन सूत्रा अब तक मैंने बागवटजी के आप को बता दिए । ये तीन सूत्रों मे थोड़ीसी जानकारी और की आप पुरुष भी चाहे तो, जिनका पेट अगर बढ़ा है और आप चाहते है की ये कम हो तो आप भी 15 मिनीट चक्की चलाएँ, सुबह-सुबह ! आप भी चाहे तो सील-बबटटा पर चटनी बना सकते है । अगर आपने भी चक्की चलाई और सील-बटटा पर चटनी बनाई तो, आपकी चटनी तो बनेगी ही, आता तो पीसेगाही और आपका पेट है वो अन्दर चला जायेगा जो आपको किसी भी जिम्नेशियम की मदद से नहीं जायेगा । मै आपको इस बात की गारंटी देता हूँ, स्टॅम्प पेपर पर आप लिखवा लीजिये मुझसे, 1000 रुपये का हो या लाख रुपये का स्टॅम्प पेपर । दुनिया का हर एक डॉक्टर इस बात से सहमत है, वो बोलता नहीं ये बात अलग है की, जिम्नेशियम में जाकर कभीभी किसी का पेट अन्दर जाता नहीं और थोड़े दिन दिन के लए गया और आपने जाना बंद कर दिया तो ज्यादा बाहर आता है, क्योंकि जिम्नेशियम की जो एक्सर्साइजेस है और वहाँ जो एक्सरसाईजर रखा है मशीन, वो आपसे मेल नहीं खाती । अब पता हैं क्यूँ मेल नहीं खाती ? जिम्नेशियम की सभी मशीने ज्यादा स्पीड वाली है, और चक्की और सील-बटटा इनकी स्पीड कम है, ध्ीरे-ध्ीरे । हमारी जो तासीर है, वो कम स्पीड वाले उपकरणोंसे ज्यादा है क्योंकि हम गरम देश में रहते है । गरम देश में आप जानते है की स्वाभाविक रूप से वायु का प्रकोप ज्यादा होता है शरीर में । ये कल में आपसे विस्तार से इसपर बात करूँगा । वायु माने वात, पित्त और कपफ शरीर में है । गरम देश के लोगों मे वायु का प्रकोप स्वाभाविक रूप से ज्यादा होता है । वायु का प्रकोप ज्यादा है तो हर चीज ऐसी करनी चाहिए जो ध्ीमे हो । ज्यादा तेज करेंगे तो वायु और बढ़ेगी । इसलिए भारत में ये कहा जाता है की डान्स करना है तो ध्ीमे-ध्ीमे करो । इसलिए यहाँ के जो डान्स है ना उनके स्टेप्स, जैसे भरत नाटयम, जैसे कत्थक, कत्थकली, ओडिसी, कुचिपुड़ी ये सब डान्स की स्टेप्स आप देखो स्लो है, ‘स्लो। और यूरोप में बिल्कुल उल्टा ! ठण्ड देश है, ज्यादा ठन्डे देशों में क्या होगा की वायु बिल्कुल उलट स्थिती  में होगी, वायु कम होती है शरीर में और पित्त और कापफ बहुत बढे होते है । वायु बढ़नी है उनको, पित्त और कद को समान रखने के लिए । तो हर एक काम वो पफास्ट करेंगे, उनके डान्सेस बहुत पफास्ट होंगे, आप देखो रशियन बॅले होता है, क्या पफास्ट स्टेप्स वो करते है, क्योंकि वो उनके लिए आवश्यक है, नहीं करेंगे तो मर जाएँगे । तो उनका डान्स पफास्ट होगा हमारा स्लो होगा, उनकी हर चीज की स्पीड पफास्ट होगी हमारी स्लो होगी इसलिए हमने चक्की बनायीं, सील-बटटा बनाया, बैलगाड़ी बनायीं की हर चीज हमें स्लो चाहिए । वात हमारा बढे नहीं, स्पीड से हमारा वात बढ़ता है, ध्यान रखिए इस बात को । बैलगाड़ी क्या है ? पहिया ही तो है । मुख्य तो पहिया ही है न, पहिये का इन्वेंशन सबसे पहले भारत में ही हुआ, दुनिया में । लेकिन हमने वो बैलगाड़ी में लगाया, हवाई जहाज में नहीं लगाया । हम भी चाहते तो हवाई जहाज का पहिया बना सकते थे । जिसने  पहला पहिया बनाया दुनिया में वो हवाई जहाज का पहिया भी बना सकता था लेकिन जरुरत नहीं है अपनेको । अपने को जरुरत बैलगाड़ी की ही है । तो ये स्लो है, तो स्लो इसलिए की, बैल जो खींच रहाँ है, उसके शरीर को वायु का प्रकोप ना बढे । हमारे यहाँ मनुष्य के लिए जितना सोचा गया उतनाही बैल के लिए भी सोचा गया क्योंकि बैल और मनुष्य बराबर है हमारे यहाँ, अलग नहीं है, हिस्सा है हमारा, परिवार का हिस्सा है । तो बैल जब बैलगाड़ी को खींचे, अगर गाड़ी पफास्ट है, तो बैल को पफास्ट दौड़ना पड़ेगा तो बैल की वायु बढ़ेगी और वायु बढ़ने से मृत्यु जल्दी होती है । तो बैल ज्यादा दिन तक जीवित रहे, आपका काम करे इसलिए बैलगाड़ी में स्पीड स्लो रहे, स्पीड स्लो रहे इसलिए बड़ा पहिया बनाया । पहिया जितना बड़ा होगा स्पीड उतनी स्लो होगी, पहिया जितना स्लो होगा स्पीड उतनी ज्यादा होगी । नंबर ऑपफ रोटेशन्स होंगे ना पर मिनीट, जिसको आरपीएम;त्ण्च्ण्डण्द्धकहते है, जितने ज्यादा रोटेशन्स होंगे उतनी स्पीड ज्यादा होगी । तो रोटेशन्स ज्यादा करने के लिया छोटे पहिये ही चाहिए, इसलिए हवाई जहाज में छोटे पहिये है । हमको स्पीड ज्यादा करनीही नहीं है क्योंकि वात ज्यादा बढ़ाना नहीं है शरीर का इसलिए हमने बैलगाड़ी का बड़ा पहिया बनाया । अब हमने बैलगाड़ी बनायीं तो पीछड़े नहीं है और उन्होंने हवाई जहाज का पहिया बनाया तो अगड़े नहीं है । उन्होंने उनकी मजबूरी का समाधन करने के लिए बनाया, हमने हमारी मजबूरी का समाधन करने के लिए बनाया ।
वो जो कहते है न ? इन्वेंशन इस मदर ऑपफ नेसेसीटी ! हमारी जरुरत थी की वात कम रखे हम अपने शरीर में और जानवरों के शरीर में क्योंकि गरम देशों मे वात वैसेही बहुत बढ़ता है तो इसको कम रखने के लिए इसलिए सीलबटटा है, ध्ीरे-ध्ीरे चलता है और जो आपके घर में है मसाला पीसने वाली मशीन मिक्सी;मिक्सरद्ध, एकदम पफास्ट, ये यूरोप के लिए है । आपके लिए नहीं है । हमारा तो वो ध्ीरे-ध्ीरे वाला ही अच्छा हैं । चक्की ध्ीरे-ध्ीरे चलती है । यूरोप से आई हुई चक्की, बिजली की, एकदम पफास्ट चलती है । अब मै एक बात कहना चाहता हूँ, जो चार-पाँच साल से हम कर रहें है । हमारे केंद्र है, वहां हम चक्की चलाते है । उसका नाम है स्वानंद, हमारे सभी केंद्रों का नाम स्वानंद है, हमारा ब्रैंड नेम स्वानंद है । तो उस केंद्र में हम चक्की चलाते है । चक्की चलाकर आटा बनाते है, जवारी का आटा, बाजरी का आटा, सब तरह के आटे । और वो आटा 100-125 परिवार के लोग नियमित रूप से लेकर जाते है और खाते है । वो 100-125 परिवारों का सारा डेटाबेस हमने बनाया है । वो 100-125 परिवारों को चक्की का आटा खिला-खिला कर हम पूँछते रहते है की भाई क्या हो रहा है ? तो कहते है एसीडिटी खत्म हो गयी, और क्या हो रहा है ? तो कहते है जी, घुटने का दर्द कम हो रहा है, और क्या हो रहा है ? नींद अच्छी आ रही है, और क्या हो रहाँ है ? पित्त की बीमारियाँ कम हो गयी है, और क्या हो रहा है ?, वो कहते है जी, ब्लड प्रेशर भी कम हो रहाँ है । ऐसी 28-30 बिमारियों पर हमारी नजर है और 4-5 साल में वो कह रहे है हर बीमारी कम हो रही है, कम हो रही है । मैंने कहाँ कुछ बढ़ रहा है ? तो उन्होंने कहाँ आनंद बढ़ रहा है, सुख बढ़ रहाँ है, खुशी बढ़ रही है, वो कैसे?, बस वो चक्की का आटा खा रहें है और कुछ नहीं । मैंने कहाँ माताएँ जो आटा ले के जाती है, उनसे मैंने पूँछा की बताओ आपका ओब्झर्वेशन क्या है ? तो वो माताएँ कहती है की ये जो चक्की का आटा है उसकी रोटी इतनी नरम होती है, और वो जो बझार का आटा ले कर आतेही उसकी रोटी थोड़े ही देर में कड़क हो जाती है । और वो कहती है की, हमारे घर के लोग जबसे ये चक्की का आटा खाने लगे है, तो दो रोटी ज्यादा खाते है तो शिकायत भी नहीं करते और ये बझार के आटे की एक रोटी भी ज्यादा खाई तो पेट में गैस बनना शुरू हो जाती है । माताएं ये कहती है की, बच्चे भी ये रोटी पसंद से खाते है और घर के लोग बभी खाते है, और वे कहते है की जी एक केंद्र सी 2 केंद्र कर दो, क्योंकि एक केंद्र से पूर्ती नही हो पा रहीं । एक केंद्र सिपर्फ 100 घरों का आटा बना सकता है रोज क्योंकि 15-20 महिलाएँ वहां चक्की चलाती है । हम दूसरा बनाने की सोच रहें है, तीसरा बनाने की सोच रहें है । पिफर एक दिन सोचा की ये रास्ता तो गड़बड़ है । अगर ऐसे केंद्र हम बनाते जाये ओ ये रास्ता गड़बड़ हैऋ अच्छा ये होगा की हर घर में ही एक केंद्र हो जाए । इसमें अंत में हम कहाँ पफँस जाएँगे ? जगह-जगह पर केंद्र बनाकर तो हम पफँसने ही वाले है की हाँथ का आटा बना के दे दो, तो ये हम बिझनेस में नहीं जाना चाहते । हमारा उददेश ये है की, हर घर में आटा बनाने की चक्की आए । आप भी स्वस्थ रहेंगे, घर भी स्वस्थ रहेगा । तो मेरी आपसे विनंती है की, घर में चक्की वापस लाइए और सिल-बटटा भी वापस लाइए । मसाला पिसना है तो उसपर पीसीये । आपको चटनी बनानी है तो उसपर बनाइये, चटनी का स्वाद भी अच्छा होगा और उसके जो सूक्ष्मपोषक तत्व है वो भी अच्छे रहेंगेऋ और एक छोटीसी आखरी बात आज के लिए । आखरी बात ये है की, में आपसे विनम्रतापूर्वक कहने आया वो यह की, आपके रसोई में पीछले 20-25 वर्षों में जो बदलाव आया, रसोईघर मेंऋ 20-25 वर्षों में । हमारे बिमारियोंका सबसे बड़ा कारण वो बदलाव है । रसोई बिमारी का कारन नहीं है, रसोई तो बागवट जी कहते है की, दुनिया का सबसे पवित्रा स्थान है । सबसे पवित्रा स्थान ! लेकिन उसमे बदलाव आया, क्या आया ? पहले चक्की होती थी, सीलबटटा होता था अब, मिक्सी आ गयीऋ या तो हमने कोई मशीन ले ली और अब तो मशीने रोटी बनानेकी भी आ गयी, रोटी बनाने की भी मशीन हमने ले ली । तो रसोई में जितना हमने बदलाव लाया, जितनी टेक्नोलोजी आई, ये सब बदलाव ने हमें बीमार बना दिया, माताओंको तो ज्यादा बीमार बना दिया । मैंने पीछले 20 साल की जितनी रिसर्चेस है, इससे जुडी हुईऋ इन सब को ध्यान से देखा तो हमने विकास के नाम पर अपने ही घर को बीमार बनाने की क्रिया शुरू कर दी है, और रसोईघर में जितनी चीजे हैं उन्होंने महिलाओं का शरीरश्रम घटाया, जैसे वॉशिंग मशीन आ गयी, इसने आपका शरीर श्रम घटा दिया । बिजली की चक्की आ गयी उसने आप का शरीरश्रम घटा दिया, सीलबबटटा का आप का शरीरश्रम घटाया मिक्सी के आने से । हर जो चीज आई है, ओव्हन आया, मायक्रोेव्हेव ओव्हन आया, इसने आपका शरीरश्रम घटाया, और शरीरश्रम घटने के लिए नहीं है, बागवट जी कहते है की, शरीर श्रम घटने की एक ही उम्र है, 60 साल के बाद ! जब आप 60 साल के हो गए तब आप शरीरश्रम करते जाइये । 60 साल तक तो शरीरश्रम कम करने की जरुरत नहीं है । 18 से ले कर 60 साल तक शरीरश्रम चाहिए ही । शरीरश्रम चाहिए तो थोडा-थोडा श्रम आप करते रहें, तो हमने पोछ लगाने वाला मशीन भी ले आया, झाड़ू लगाने वाला भी मशीन ले आया, रोटी बनाने का भी मशीन आ गया, चटनी बनाने का मशीन भी आया, रोटी को रखने वाला भी मशीन आ गया । अब सब खुच मशीन आ गया तो आप भी मशीन हो जाएँगे । और आप ह गये है ! पता है, हम मशीन कैसे हो गये है ? जिंदगी का रस चला गया ।   आनंद चला गया । पहले घरों में काम करते समय, जो रस था, आनंद था वो सब चला गया, कैसे चला गया ? मेरे बचपान का मुझे याद है, माताएँ-बहने काम करते समय गीत गाती थी । अब वो, काम ही बंद हो गया तो गीत भी बंद हो गये, अब किसी भी माँ को पूँछो की 20 साल पहले, बच्चे के पैदा होने पर कौनसे गीत गाये जाते थे ? याद ही नहीं है ! तो अब क्या करते है ? जो सीनेमा के गीत है, उनका सी.दी. लगा के देते है घर में, बच्चा पैदा हुआ ! चोली के पीछे क्या है?... तू चीज बड़ी है मस्त.. ! आती क्या खंडाला.. तो जाती क्या खंडाला.. ये बजाये जा रहें है कब ? जब बच्चा पैदा हुआ, क्योंकि उनको बच्चा पैदा होने के समय के गीत ही याद नहीं हैऋ क्योंकि वो गीत गाने को समय मिलता था काम करते-करते वो समय चला गया तो गीत चले गये । शादी के समय क्या-क्या गीत गाये जाते थे.. याद नहीं है ! अब डीजे, बीजे लेके आते है पता नहीं उसको क्या कहते हैं, बड़ा साउंडबॉक्स लगा दिया और ऐसा शोर कान पफोड़नेवाला, जिसकी ना सूर, ना लय, ना ताल ! तो हमारे यहाँ काम में आनंद था । मै आपसे विनम्रतापूर्वक एक बात कह सकता हूँ की, भारत की कोई भी माँ, शरीरश्रम से थक सकती है, बोअर नहीं हो सकती । ये शब्द बोरियत, भारतीय शब्द नहीं है, ये अंग्रेजो का शब्द है, हिंदी में हमने वैसा का वैसा ले लिया । बोअर होना ! जी हम क्या कर रहें है ? बोअर हो रहे है । आज कल के बच्चों से में बहुत सुनता हूँ की, जी क्या कर रहे है ? बोअर हो रहे है । अब बोअर हो रहे है तो करे क्या ? तो ले देंगे, टिव्ही है तो चालू कर दिया, उसमे पोगो देखो, पोगो ! अब पोगो मै क्या है ? और ज्यादा बोअर हो जाओ । पिफर पोगो की जगह कोई दूसरा देखो, लोगो या तीसरा देखो । वो सब आपको बोरियत में ले जाएँगे क्योंकि इसमें इंटरेक्शन कुछ नहीं हैऋ सब कुछ वन-साइडेड है । और गीत गाने में इंटरएक्टीव है, ये वन-साइडेड नहीं है, मल्टी-साइडेड है । तो हमारी माताएँ गीत गाती थी । हर उस समय के लिए गीत बने हैंऋ पापड़ बना रहीं है, बड़ी बना रहीं है उस समय के गीत अलग है, मसाला पीस रहीं है उस समय के गीत अलग हैऋ शादी के लिए मसाला पीस रहा है, उस समय के गीत अलग है शादी के लिए पापड़ और बड़ी बन रहीं है उस समय के गीत अलग है । ये गीत इकठ्ठे आज-कल में कर रहाँ हूँ । हजारों की संख्या है इन गीतों की लेकिन इन गीतों को हम लिपिबध्द कर नहीं पाए, किताबे नहीं छपी इनकी, नोटबुक्स नहीं बनी ध्ीरे-ध्ीरे खतम हो रहे है या तिरोहित हो रहे है । इन गीतों में जो सूर है, जो लय है, जो ताल है वो हर माँ के लिए आसान है । हर माँ उस सूर, लय और ताल में गा सकती है । आवाज का पीच उपर-निचे हो सकता है लेकिन सूर और ताल उन सबका सूर मालूम है उत्तार से पश्चिम, पूरब से दक्षिण । धन के पौध्े लगा रहें है तो अलग गीत है, धन काट रहें है तो अलग गीत है, धन को घर ले जा रहें है तो अलग गीत है । हमारे यहाँ हर काम के लिए संगीत है क्योंकि बोरियत ना आये । और आज जो आध्ुनिकता से निकला है, मोड़र्निजम से निकला है इसने सब कुछ खतम हो गया तो बोरियतही आएगी । समय आपका लिया तो बोरियत आएगी । तो बागवटजी कहते है की, आपका जीवन, ये अब उनका पाँचवा सूत्रा है । आपका जीवन, जहाँ आप रहते है, माने आप मद्रास में रहते है तो यहाँ की जो आबोहवा है, यहाँ की जो तासीर है उसके हिसाब हिसा से चलना चाहिए । राजस्थान में रहते है तो वहाँ की आबोहवा, तासीर से चलना चाहिए । तो हर आबोहवा, तासीर में खास तरह के गीत, खास तरह का संगीत खास तरह का श्रम बना है, जो हजारो साल पहले बना है और विकसीत हुआ है, ये वापस आएगा, मुझे इसके बारे में थोड़ी शंका होती है, लेकिन हम प्रयास करेंगे तो जरुर वापस आ सकता है । बागवट जी के पाँच सूत्रा अब तक कहे है, अब तक इन पाँच सूत्रों पर कोई भी सवाल हो, तो आप पूँछ सकते है । मै आपको बागवट जी के 50 सूत्रा बताउंगा, अगले 28 तक, अब तक 5 बताये है    प्रश्न - आप महरबानी करके पाँचो सूर को क्रम से एक बार बताये ।
जी हाँ ! जिनके पास अगर कागज है, कॉपी है, डायरी है तो लिख लीजिये । और मैंने आपसे कल भी कहाँ था और आज पिफर कह रहन हु की नहीं लिख पाए तो चिंता मत करिए, ये सब सूत्रों की पुस्तक भरपूर मात्रा में आई है । एक भाई कौन लेके आये, उनका में ध्न्यवाद देना चाहता हूँ, ट्रांसपोर्ट में जा के । अंजनी कुमार जी है ? हाँ बहुत ध्न्यावाद आपका । ये पुस्तके भरपूर मात्रा में आई है, ये सब सूत्रा उसमे विस्तार से दिए है में तो शॉर्ट में कह रहाँ हूँऋ आप चाहे तो वो भी ले सकते है । हाँ ! पाँच सूत्रा पिफरसे बताता हूँ ! सबसे पहला सूत्रा जो मैंने कल कहाँ था, भोजन को बनाते और पकाते समय, सूर्य का प्रकाश और पवन का स्पर्श ना मिले तो वो भोजन नहीं करना । अब सूर्य के प्रकाश का और पवन के स्पर्श का लंबा विश्लेषण मैंने कल कर दिया थाऋ प्रेशर कुकर का खाना नहीं खाना, मायक्रोेव्हेव ओव्हन का खाना नहीं खाना, रेÚिजरेटर का खाना नहीं खाना, ये । दूसरा जो सूत्रा था बागवट जी का की, खाना पकने के 48 मिनीट के अन्दर खाना । खाना पकने के 48 मिनीट के अन्दर खा लेना चाहिए, ये दूसरा सूत्रा मैंने विस्तार से समझाया । तीसरा सूत्रा ये है की, खाना बनाने का जो सामन है, जैसे गेहूँ का आटा, चने का आटा, दाल का आटा या तो बजरी, मक्की वगैरा.. वगैरा.. तो गेहूँ 15 दिन क्या ? माने गेहूँ का आटा 15 दिन तक खा सकते है और ये जो मोटे अनाज कहे जा सकते है, ज्वारी है, बजरी है, मक्की है, ये सात दिन से ज्यादा पुराना ना हो इसका अर्थ ये है की घर में 15 दिन से पुराना आटा नहीं रखना सीध सा मतलब  है ! हर 15 दिन बाद नया आटा आना चाहिए । उतनाही आटा पीसवाइए ना जितना जरुरत है । आप चक्की लाते है तो आहूत अच्छा नही तो आप जो चक्की पे आटा पीसवाकर लाते है, वो 15 दिन से पुराना नाऋ ऐसा आप अपने घर में नियम बनाये, तो ये तीसरा सूत्रा है । चौथा सूत्रा है बागवट जी का जो मैंने आपको समझाया के आप अपने शरीरश्रम को 60 साल की उम्र तक कम मत करिए । मतलब ये है की उन्होंने एक उम्र बनायीं है, बच्चा जब पैदा हुआ और 18 साल की उम्र का हुआ ये एक कॅटेगरी है, 18 साल से ले कर 60 साल के उम्र की दूसरी केटेगरी है, और 60 साल के बाद 100-125 साल उनकी तीसरी केटेगरी है । तो बागवट जी का ये सूत्रा है की, 60 साल के आगेवाली जो केटेगरी है, 60 से 100-125 इनके जीवन का श्रम कम होते जाना चाहिए उम्र के हिसाब से । कम होते ही जाना चाहिए । ये ज्यादा श्रम ना करे तभी अच्छा है । इनको, आराम ही करना है । तो 60 साल के आगेवाले श्रम को कम करते जाए, उम्र की हिसाब से । 18- से-60 साल के बिच के जो लोग है, ये अपने श्रम को थोडा-थोडा बढ़ाये । 18 से 19 में थोडा ज्यादा, 19 से 20 में थोडा ज्यादा, 20 से थोडा 21 में ज्यादा, ये है । और एक साल के जो बच्चे है उनसे लेकर 18 साल के बच्चों के लिए उन्होंने कहाँ है, इनकी उम्र जो है, ज्यादा श्रम करने की वहाँ है जहाँ वो खेलने के रूप में है । आप माने की श्रम है, जैसे बच्चा खेल रहन है, ये उसका श्रम है । तो आप उनको ज्यादा खेलने दीजिये मतलब ये है की, 18 साल से कम उम्र के बच्चों को ज्यादा खेलकूद करने दीजिये, वो उनका श्रम है । 18 से 60 की उम्र में, ऐसा श्रम जिससे उत्पादन भी होता हो । चक्की चलाई तो आटा बन गया, सीलबटटा चलाया तो चटनी बन गयी, माने उत्पादन कुछ ना कुछ हो ! तो उत्पादक श्रम 18 से ले कर 60 साल के बिच में कम मत करिए । साथ साल के बाद उसको कम करते जाइये, और 1 साल से लेकर 18 साल के बच्चोंको उत्पादक श्रम मत कराइए, ये है । और आखरी सूत्रा माने, आज के हिसाब से की, आप अपने जीवन में तासीर का ध्यान रखिये, आबोहवा का ध्यान रखिये, वातावरण का ध्यान रखिये, जहाँ आप रह रहे है । माने भौगोलिक परिस्तिथी एक शब्द में अगर में कहूँ, जिओग्रापिफकल कंडीशन्स । तो आपकी जो आबोहवा है, इसका ध्यान रखिये । इसका ध्यान कैसे रखना ? मैंने आपसे उदाहरण के रूप में कहाँ था की भारत गरम देश है, और कनाडा ठंडा देश है । गरम देश के लोगों में वात की प्रबलता रहती है, शरीर का दोष है उसको क्या करे ? वात की प्रबलता रहेगीही, पित्त और कपफ आपका हमेशा कम रहेगा । ये भारतके लोगों को वात के रोग सबसे ज्यादा है । बागवट जी कहते है की, भारत के लोगों को लगभग 70 से 75 प्रतिशत रोग वात के है । 12 से 13 प्रतिशत रोग पित्त के है और 10 प्रतिशत कपफ के रोग है । कपफ के रोग हमारे यहाँ हमेशा कम है, पित्त के थोड़े ज्यादा, वात के सबसे ज्यादा क्योंकि हम गरम देश में रहते है । तो आप ध्यान रखिये की गरम जगह में ऐसे काम मत करिए, जिससे वात बढे । जैसे की में आपको उदाहण दँू, मापफ करियेगा ये उदाहण देते हुए । आप दौड़ लगाते है, रंनिंग ! इसमें वात सबसे ज्यादा पड़ता है । हमारे यहाँ आज कल एक पफैशन आया, मोर्निंग में दौड़ो ! दौड़ना नहीं है, चलना है । चलने और दौड़ने में आप अंतर समझते है । दौड़ाने से उर्जा बहुत खर्च होगी और गर्मी बहुत बढ़ेगी शरीर की और, वात को बढाएगी । वात बढेगा तो ये घुटनों बहुत जल्दी आपके थकेंगे ! आप देख लो, हिंदुस्थान के रन्नर है ना रन्नर ? 100 - 200 मीटर, 35 साल के बाद किसी के भी घुटने काम नहीं करते, सब बैठ गये । मिल्खा सिंग में मिला हूँ, वो कहते है यार उस समय में जो दौड़ गया ना, अब पता चल रहा है की, उसका क्या असर है । पर्मनंट डमेज हो गये है दोनों क्नी जॉइंट्स, तो ये भारत दौड़ने वालों का देश नहीं है । हमारी आबोहवा, तासीर को ध्यान में रखो । देखो, हमारी आबोहवा गरम है, गरम हवां में वात बढ़ता है ये याद रखो, तो वात बढे ऐसा कोई काम मत करो । हमको क्या मालूम की वहाँ क्या है ? और यूरोपवालों के यहाँ क्या है ?कपफ बहुत है यूरोप में, कपफ की तो ठन्डे लोग है, ठन्डे देश है, ठंडा आबोहवा है, तो कपफ बहुत बढेगा, तो वो उसका ध्यान रखे, जो कनाडा में रहते है, अमेरिका में रहते है ।  तो कपफ मत बढ़ने दे ! अब वात ना बढे हमारा, कपफ ना बढे यूरोप अमेरिका वालों को । तो सारी दुनिया निरोगी । पित्त जो है वो सम में वैसे ही रहता है । पित्त जो है, ज्यादातर सम में ही होता है । तो ये पांच सूत्रा है । तो ये पाँचो सूत्रा मैंने आपको पिफरसे बता दिए ।
प्रश्न: राजीव जी आपके प्रथम सूत्रा के अनुसार सोलर कुकर कितना कित उपयोगी है ?
उत्तर: हाँ ! बहूत अच्छा सवाल है, में इंतेझार कर रहा था कोई पूछे । देखिये मेरे प्रथम सूत्रा के अनुसार सोलर कुकर सबसे ज्यादा उपयोगी है, क्योंकि बागवट जी क्या कह रहे है की, सूर्य का प्रकाश और पवन का स्पर्श ! अब सोलर कुकर एक ऐसी अद्भूत चीज बनी है, या बने गई है जिसमे सूर्य का प्रकाश सबसे ज्यादा है । तो सोलर कुकर का खाना अच्छा ! लेकिन, कौनसा सोलर कुकर ? देखिये एक सोलर कुकर ऐसा आता है जिसमे डब्बे को बंद करके खाना बनाने के लिए रखते है न, वो अॅल्युमिनियम के डब्बे है, वो ध्यान रखिएगा, और कल में कह चूका हूँ की अॅल्युमिनियम दुनिया का सबसे खराब मेटल है, इसमें खाना नहीं रख सकते । तो सोलर कुकर ।े ं टेक्नोलॉजी अच्छी है लेकिन, व्हेसल्स चेंज करे तो ! अॅल्युमिनियम के व्हेसल्स जब तक है तब तक ये सोलर कुकर का खाना जहर है, एक सिध्दांत के हिसाब से सोलर कुकर भारत की सबसे अच्छी टेक्नोलोजी है । आप बोलेंगे की कोई व्हेस्सल्स बदल के रखे तो रखिये । पीतल के रखिये, कांसे के रखिये, तो वो ये कहते है सोलर कुकर बनाने वाले की, टाइम ज्यादा लगता है, मै उनसे कहता हूँ की, टाइम का बचाने का चक्कर छोड़ दीजिये, क्योंकि यहाँ टाइम बचाएँगे तो कही दूसरी और जाएगा । तो जैसे ही सोलर कुकर में व्हेस्सल्स आये, पीतल के कांसे के, आप उनका जरुर इस्तेमाल करिए, विज्ञान के हिसाब से, बागवट जी के हिसाब से सबसे उत्तम है । जब तक अॅल्युमिनियम है, तब तक मत करिए । मेरी आपसे विनंती है की, मुझे सर मत कहिये, भाई कहिये, राजीव भाई कहियेे, कुछ भी कहिये, सर मत कहिये । सारे इनोवेशन्स के बारे में आपने बोला तो आपने रेÚिजरेटर के बारे में बोला, मायक्रोेव्हेव ओव्हन के बारे में बोला पर आपने एयर-कंडिशनर के बारे में नहीं बोला, बिकोज, उसमे भी, वो भी सी.एपफ.सी. छोड़ता है, और परफ्रयूम भी । वो मेरा अभी पूरा नहीं है, बोलूँगा में कल बोलूँगा । कल, परसों 28 तक ये विषय आएगा, बागवट का सूत्रा आएगा उसके रेपफरन्स में बोलूँगा ।
प्रश्न: राजीव भाई आपके दुसरे सूत्रा के हिसाब से खाना 48 मिनीट के अन्दर खाना चाहिए, तो जो बच्चे सुबह स्कूल को जाते है और शाम को वापस घर लौटते है, उनका क्या ?

उत्तर: बहुत अच्छा ! इसके लिए में एक विकल्प बताता हूँ, जो बच्चे सुबह-सुबह स्कूल को जाते है उनके लिए ये सूत्रा कैसे अप्लाई होगा । मेरी विनंती है की, बच्चों को खाना खिला के स्कूल भेजिए । आप बोलेंगे जी, खाते नहीं है । मै आपको इसका तरीका बताता हूँ की कैसे खायेंगे वो खाना । हमारे शारीर की अपनी एक साइकल है । तो साइकल ये है की, कोई भी खाना खाए तो आँठ घंटे के बाद ही भूक लगेगी आपको । ये शरीर का अपना नियम है, तो बच्चों के लिए, पुरुषों के लिए, सबके लिए यही नियम है । तो की खाना खाने के आँठ घंटे बाद ही भूक लगेगी, तो रात का खाना उनको उस समय खिला दीजिये जो सुबह तक अंत घंटे पूरे हो जाए । माने, अगले दिन शाम को ही खाना खिला दीजिये । रात को मत खिलाइए । शाम को 6 बजे तक अगर आपने खाना खिला दिया तो 8-9 बजे तक सोने की उनको नींद आही जाएगी क्योंकि खाना खाने के डेढ़ घंटे बाद जैसे ही खाना पाच के रस में बदलता है, शरीर का ब्लड-प्रेशर अपने आप बढ़ाना शुरू कर देता है, और ब्लडप्रेशर बढे तो नींद आनी ही है, रुक नही पाएँगे आप । तो शाम का खाना 6 बजे खिला दीजिये, आँठ बजे उनको नींद आ जाएगी । 6 बजे से आँठ घंटा गिनेंगे तो सुबह चार-पाँच बजे तक वो पूरा हो जायेगा । चार-पाँच बजे के आस-पास जब वो सो कर उठेंगे तब इतनी तेज भूक लगी होगी की आप रोटी, दाल, चावल जो खिला दो वो खाके चले जाएँगे । आप को थोडा बदल ये करना है की, रात को हम 10 बजे बच्चों को खाना खिला रहे है, या 11 बजे खिला रहे है, उसके 2 घंटे बाद रस बन रहा है, तो 1 बज जायेगा, 3-4 बजे तक आध खाना पचा, आध नहीं पचा, तो उन्हें उठने पर भूक लगेगी कैसे ? तो आप शाम का खाना जल्दी खाने लगे, माने सब लोग जैनही हो जाइये, हाँ परोक्ष रूप से में ये कहता हूँ की, जैन ध्र्म आप पालन करे, महत्व का है, ध्रा करे वो उतना महत्व का नहीं है । आप आचार्य श्री को वंदन करे, बहुत अच्छा ! नहीं करे, तो शाम का खाना तो 6 बजे खा ले, तो आचार्य श्री को वंदन करने से भी बड़ा काम करेंगे । वो आचार्य श्री भी यहीं कहते है की, शाम का खाना जल्दी खाओ । तो आप थोड़े जैनही हो जाइये, आपका भी खाना...., नहीं है, बहुत अच्छा है लेकिन रात को खाना बंद कर दीजिये । बच्चों को रात का खाना बिलकुल बंद कर दीजिये, मै आपको विनम्रतापूर्वक कह रहाँ हूँऋ इसको मै कल या परसों इसका अर्थ समझाउंगा । पूँछ लिया आज आपने इसलिए कह रहाँ हूँ, रात का खाना बिलकुल बंद कर दीजिये क्योंकि, बागवट जी का ये पहला सूत्रा है, ये अभी मैंने आध ही बताया है, सूर्य का प्रकाश और पवन का स्पर्श.. हर समय वो कहते है, खाते समय, पीते समय, रहना ही चाहिए । 6 बजे के बाद तो सूर्य प्रकाश रह नहीं सकता, और आप जानते है, सूर्यप्रकाश का सबसे बड़ा परिणाम व्हिटॅमीन डीका निर्माण, सूर्य का प्रकाश इसलिए सूर्य का प्रकाश जब तक है तो खाना खाए तो व्हिटॅमीन डी । इसलिए बच्चों को तो रात का खाना बिलकुल बंद कर दीजिये । सुबह 7 बजे जब स्कूल जायेंगे, तो खुप भूक लगी होगी, उस समय, सांत बजे पराठा बना के खिलाइए, आलू का भी पराठा बना के खिलाइए गोभी का भी बना के खिलाइए तो भी कोई पफरक नहीं पड़ता । इसपर मै आगे बात करूँगा, सुबह का भोजन जितना हैवी हो, उतना अच्छा, जो-जो पक्वान खाए, सब सुबह दुपहर का खाना थोडा कम और शाम, रात का खाना बिल्कुल कम । तो बच्चों को भरपेट खाना खिला के स्कूल में भेजिए, लंच बॉक्स की जरुरत नही है, दोपहर को आते ही खाना खिलाइए और शाम को दूसरा भोजन, रात का भोजन बंद किया तो सुबह उठाते ही भूक लगती है उनको । तो मैंने कुछ बच्चों पर प्रयोग किया, रात का भोजन बंद कर दिया, ये तो प्रकृति का नियम है । सारे जानवर, सारे पक्षी उठाते ही खाना खाते है आप देखिये, चिड़िया है सुबह-सुबह खाना खाने लगेगी, गाय, बैल भैंस, क्योंकि वो शाम को सूर्य के बाद खाना नहीं खाते, गाय रात को खाना नहीं खाती, खिला के देखो ! जर्सी गाय को छोड़कर ! जर्सी भारत की नहीं है इसलिए उसको भारत का पता नहीं है, वो रात को 2 बजे भी खा लेगी । भारत की कोई भी गाय, भारत के नस्ल की गाय 6 बजे के बाद खाना नहीं खाएगी, तो भारत के तासीर को ध्यान में रखकर भोजन जल्दी करिए, सुबह भरपूर भूक लगेगी । और निवेदन इतनाही करता हूँ की, खाली पेट तो कभी बच्चों को कभी स्कूल मत भेजिए । आप ने कहाँ की, दूध् पीकर गया है, मतलब खाली पेट ही स्कूल गया है क्योंकि, सॉलिड भोजन नहीं है । ऐसा भोजन सुबह शरीर में जाना बहुत ही आवश्यक है, अगर भविष्य में आप उसको एसीडिटी, अल्सर, सेप्टिक अल्सर से बचाना चाहते है तो । हाँ जी ।
प्रश्न: हमारे चिंतको ने कहाँ है, हमारे बुजुर्गोने कहाँ है, इतिहासकारोने कहां है, परिवर्तन ही जीवन है, तो क्या सारे परिवर्तन बेमानी है ? अगर परिवर्तन बेमानी नहीं है तो ऐसे कौनसे परिवर्तन हम अपनाएँ, और ऐसे कौनसे परिवर्तन हम ठुकराएँ, राजीव भाई ?

उत्तर: बहुत अच्छा सवाल है । देखिये, दुनिया में, हर समय पर परिवर्तन होते है, ये प्रकृति का नियम है और यही जीवन है, ये बिल्कुल सही बात है लेकिन हमें ध्यान ये देना है की कौनसे परिवर्तन हमारे अनुकूल है और कौनसे परिवर्तन प्रतिकूल । बस इतना ध्यान देना है । अब इस बात को बागवट जी कहते है एक सूत्रा में, अब आपने पूँछ लिया तो वो सूत्रा भी बता देता हूँ । वो ये कहते है की, जिस आबोहवा और परिस्तिथी में आप रहते है, उसमे रहते हुए जो परिवर्तन होगा वो आपके अनुकूल है, और जो आबोहवा और परिस्तिथी में आप नही रहते है वहाँ जो परिवर्तन होगा वो परिवर्तन आप धरण करेंगे तो वो आपके लिए प्रतिकूल है । मई इसको और स्पष्ट करता हूँ । यूरोप और अमेरिका में पीछले 100 सालों मे जितनी रिसर्चेस हुई, वो उनके लिए बहुत अनुकूल है । उनके लिए ! रेÚिजरेटर यूरोपियन लोगों के लिए बहुत काम की चीज है । जब ये भाषण में जर्मनी में दँूगा तो उल्टा ही बताउंगा उन लोगों को, मई कहूँगा जरुर रेÚिजरेटर लाओ, मायक्रोेव्हेव ओव्हन भी रखो । उनके लिए बहुत अनुकूल है, उनकी कंडीशन में वो परिवर्तन हुआ है । हमारी कंडीशन में जो हम परिवर्तन करेंगे हमारे लिए अनुकूल होगा । अब जैसे आपको उदहारण दँू, चक्की है, तो चक्की में एक परिवर्तन आज हुआ है, वो पहले नहीं था, आज हुआ है ? हमने चक्की में बेअरिंग लगा दी । पहले चक्की में बिअरिंग नही होता था । खली वो एक डंडी होता था और उसके चारो तरपफ से बिच में लकड़ी में वो लगते थे, लकड़ी का हमने निकल के उसमे हमने बिअरिंग लगा दिया, ये परिवर्तन हुआ । ये हमारे अनुकूल बैठता है । क्योंकि बिअरिंग लगाने के बाद उसका जो Úिक्शन है, वो कम हुआऋ और Úिक्शन कम हुआ तो हम कम श्रम में ज्यादा उत्पादन ले सकते है । श्रम तो हो ही रहा है लेकिन जितने श्रम में पहले हम 1 किलो आटा लेते थे, उतने ही श्रम में अब 3 किलो आटा मिल रहाँ है । ये भी परिवर्तन है लेकिन, हमारे अनुकूल है । इसी तरह से एक उदाहरण और, हमारे कुछ कार्यकर्ता है पूना में, इन्होने बैलगाड़ी के पहिये में भी बिअरिंग लगा दिया । परिवर्तन यहाँ भी हुआ । नयी बैलगाड़ी बनी । वो बिअरिंग का पहिया है, अब उसका क्या हुआ की, बैल को खींचने में मदद हो गयी ।  पहले बैल 1 टन अनाज ले कर जाता था । अब बिअरिंग लगी हुई बैलगाड़ी में वही बैल 3 टन लेकर जाता है, बिना थके हुए, तो ये भी परिवर्तन है । तो परिवर्तन हमारे आबोहवा, आबोहवा माने पर्यावरण, और हमारे प्रति के लिए अनुकूल है तो हमारे लिए बहुत अच्छा है और दूसरों की आबोहवा और परिवर्तन के लिए जो अनुकूल है, तो आपको उतना अच्छा नहीं है, ये है कहने का मतलब ।
प्रश्न: इलेक्ट्रीक गैस को यूज करना के नहीं ?
उत्तर: ज्यादा अच्छा नहीं है । मजबूरी है तो ठीक है, अगर आपके पास उसका विकल्प नहीं है तो जरुर इस्तेमाल कर लीजिये, लेकिन अगर विकल्प है, भारत में है तो इसलिए ज्यादा अच्छा नहीं है ।
प्रश्न: आबोहवा से जुदा हुआ एक सवाल है, जैसे राजस्थान से गेहूं की बहुत आयत होती है और यहाँ चावल की बहुत आयात होती है । तो क्या ये सही होगा की हम खाने में चावल का ज्यादा इस्तेमाल करे ?
उत्तर: बिल्कुल सही होगा । आप इस समय चेन्नई में रहते है, तमिलनाडु और पूरा एरिया चावल के लिए मशहूर है चावल ही ज्यादा खाइए । अब इस बात को आगे गहराइसे  बताता हूँ की, यहाँ की जो मिटटी है तमिलनाडु की खेतों की और राजस्थान की जो मिटटी है उसमे जमीन-आसमान का अंतर है । यहाँ की आप मिटटी देखोगे तो वो ऐसी है जो पानी को ज्यादा देर तक पकड़ के रखेगीऋ और राजस्थान की मिटटी रेतीली है, जिसपर पानी टिकेगा नहीं । ये भगवान् ने अछेसे बनाया है । राजस्थान के लोग जहाँ रहते है, जिस ताप्माने में, आबोहवा में रहते है उनके शारीर में कुछ ज्यादा केमिकल्स चाहिए तो वो उस मिटटी में ही है, वो रेतीली है । आप यहाँ रहते है यहाँ की आबोहवा राजस्थान से भिन्न है, ह्यूमिडिटी जद है, तो आप वो केमिकल्स नहीं चाहिए तो भगवन ने ऐसी मिटटी बनायीं । तो ये मिटटी से जो चावल पैदा हो रहा है वो आप ज्यादा ही खाइए, गेहू राजस्थान से लाकर खाने की कोशीश मत करिए । माने आप अगर ये कोशीश करेंगे तो तकलीपफ आपको आनेवाली है । आबोहवा का ध्यान रखिये, चावल का प्रिपरेशन यहाँ ज्यादा है तो आप ज्यादा खाइए । अब समस्या आप के साथ ये है की, आप राजस्थान से आ तो गये, लेकिन राजस्थान छूटा नहीं आपसे, वो छुटता नहीं है, समस्या वहीँ है । हम बिहार से आ गये तो सिपर्फ स्थान परिवर्तन हुआ, लेकिन मन-परिवर्तन नहीं हुआ, मन अभी भी है राजस्थान में । माने में इसे ऐसे कहना चाहता हूँ की अगर अनुकूल परिस्तिथी हो गयी तो आप वापस राजस्थान चलेही जाएँगे, क्योंकि मन नहीं छूटा आपका, मन नहीं छूटता है इसलिए आपका स्वाद नहीं छूटा । ये सब मन का खेल है, मन से सारे स्वाद जुड़े हैं । मन नहीं छूटा तो पिफर आप गेहूं मंगवाते है और पिफर उसको रोटी बना कर खाते है, स्वाद के लिएऋ तो ठीक है, पौष्टिकता के हिसाब से आपके लिए चावल ज्यादा ठीक है । तो आपने शायद बॅलन्स बना लिया है की आप रोटी भी कहते है और चावल भी खाते है, यही है न ? तो इसी को चलने दीजिये । मई आपका मन छुड़ाना नहीं चाहता क्योंकि मई नहीं चाहता की आप पर्मनंट यहाँ रहे, एक दिन राजस्थान तमिलनाडु से अच्छा हो जाये तो आप चले जाइये  । तो मेरे लिए वो स्वदेशी के लिए अच्छा है । तो आप मन को और स्वस्थ्य को बॅलन्स कर लीजिये, बॅलन्स ये है की, 2-3 रोटी खा लीजिये और थोडा चावल खा लीजिये, ऐसा कर ले । थोडा इडली खा लीजिये, थोडा हलवा खा लीजिये । हलवा इडली के लिए जरुर खा लीजिये बॅलन्स के लिए । थोडा डोसा खा रहें है, तो थोडा बाजरी के रोटी का एखाद टुकड़ा, आध बाजरी के रोटी का । ये में बताउंगा किसके साथ क्या खाए और आपका बॅलन्स बना रहे  टिका रहे । ये आप ध्यान में रखिये स्वस्थ्य के लिए क्योंकि अगर स्वस्थ्य खराब हुआ तो मन भी आपका थोडा दुखी होगा ही । ये भी में बताउंगा, रोटी नहीं मिलेगी, मन खराब होगा तो उसका असर शरीर पे आएगा, मन और स्वस्थ्य को बॅलन्स कर लीजिये । जी, आखरी सवाल !
राजीव भैयया ये जो आपने बोल की अॅल्युमिनियम खाने के हिसाब से गंदी चीज है, जो भी खाना टायर हो रहा है वो अॅल्युमिनियम के अन्दर तो और जो पॅकिंग वगैरा हो रहा है उसमे अॅल्युमिनियम पे ज्यादा जोर देते है क्योंकि अॅल्युमिनियम है तो मेरा आपको एक ही विनंती है की, मैंने ये करके देख लिया है, अॅल्युमिनियम पफोईल में आप जो खाना पैक करते है, ले जाने के लिए रस्ते में, ये बहुत ही, खराब है, अच्छा नहीं है। तो आप बोलेंगे जी, किसमे पैक करे ? खाना, कपडे में पैक करना सबसे अच्छा है, कपडा । सूती कपडा होता है न ? पतला, एकदम पतला, उसमे जो, रोटी बाँध् के आप रखे, वो दुनिया का सबसे अच्छा पॅकिंग है, वो विज्ञान के हिसाब से बहुत अच्छा है ।

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