अमर शहीद राजीव भाई के व्याख्यान से .......
अभी हम जो शिक्षा लेते हैं वो मैंकाले की है. दुर्भाaसे मैकाले जो पाठ्यक्रम हम को देगया वो इतना घटिया और रद्दी है कि जिंदगी मैं कभी काम नहीं आता. हम पढ़ते हैं, रटते है और कक्षा में जाकर उल्टी कर आते हैं. 100 में से 96 और 98 नंबर लाकर हम क्या करें. ये शिक्षा कभी जिंदगी में काम नहीं आती. में अपना उदाहरण देता हूँ. सालों साल में पढ़ाई की अपनी जिंदगी बर्बाद की. में नहीं पढ़ता तो बहुत अच्छा होता. मैं ने जितने साल पढ़ाई की और जितना पैसा मेरे माँ बाप ने खर्च किया, जितना पैसा मेरे माँ बाप ने मेरे ट्यूशन पर मेरे खर्च किया. अगर में पढ़ने नहीं जाता तो वो पैसा वचता. मैं उससे कोई धंधा और व्यापार करता तो करोड़पति होता. क्या पढ़ाई हुई है मेरी. मैने बचपन में पढ़ा है (अ +ब)२ =अ 2+ब2+२अब (जे-य)2=अ 2+ब 2-२अब . अब मुझे ये समझ में नहीं आता की इस शिक्षा का मेरे जीवन में का उपयोग है. मेरे शिक्षक ने मुझे पढ़ाया घंटो-घंटो मैंने ने रट़ा और अभ्यास किया ना जाने कितने किलो कागज मेने बर्बाद किया फिर भी मुझे नहीं पता में उस ज्ञान से क्या करूँ. मेने अपने शिक्षक से पूछा आपने मुझे ये क्यों पढ़ाया मेरे जिंदगी में तो ये कामनहीं आया. तो मेरे गणित के अद्यापक द् ने जबाब दिया की काम तो मेरे भी नही आया, मुझे भी किसी ने पढ़या था मेने तुम्हें पढ़ा दिया. अब अगर इस ज्ञान का कोई उपयोग नहीं है तो फिर ये भेड चाल किसलिए है. जो काम नही आता है उसको पढ़ना ही क्यों. बचपन में मुझे पढ़ाया गया की अमरीका का पहला राष्ट्रपति कौन था. मुझे मालूम है की पहला राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन था पर मैं करूँ क्या . मैं सब्जी खरीदने बाजार जाता हूँ और बोलता हूँ की अमेरका का पहला राष्ट्रपति जाज वाशिंगटन था क्या वो मुझे सब्जी देगा? फालतू में रटा रटा कर मेरा दिमाग़ खराब कर दिया. मुझे नही मालूम की हमारे कुल का पहला इंसान कौन था लेकिन अमेरिका का पहला राष्ट्रपाति मालूम है. मुझे तो इतना दुख होता है कि उनका पहला ही नहीं 250 राष्ट्रपति भी मालूम हैं मुझे, और अपने कुल के ढाई आदमी के नाम नही मालूम मुझे. अपने दादा के पहले की पीढ़ी के नाम मुझे नहिएं मालूम क्या करना है ऐसी शिक्षा से. इसका उपयोग क्या है. बचपन में मैं मुझे पढ़ाया की कनाडा की जलवायु कैसी है. मुझे कभी कनाडा जान नहीं है और नही कभी कनाडा मेरे घर आएगा. तो फिर उसकी जलवायु पढ़कर मुझे क्या हासिल होगा. अगर में शिवपुरी में रहता हूँ और वहाँ की जावायु पढ़ूँ तो मुझे काम आएगी, कनाडा की जलवायु क्या काम आएगी. अगर में भविष्य में कभी कनाडा गया जिसकी की दूर दूर तक कोई संभावना नही है; तब उसका कुच्छ उपयोग हो सकता है. उसके लिए पढ़ और रट रट के दिमाग़ खराब करने की कोई ज़रूरत नहिएं है.
इतिहास की वात करे तो पढ़ते है; अकबर बड़ा महान था; तो मैं क्या करूँ ?मेरी जिंदगी में उससे मुझे क्या फायदा होगा.आप अपने बारे में ईमानदारी से सोचो आपने जो पढ़ा है उसमें से कितना आपके काम आया. शायद आप 100 का नंबर निकालेंगे तो 5 भी काम नहीं आया.जो काम नहीं आया फिर उसको पढ़ा क्यों. आप दूसरी तरीके से उल्टा सोचो , जितना पढ़ा है उसका कितना याद है. याद उतना ही रहता है जिसे दिमाग़ इस्तेमाल करता है; बाकी कचरे को दिमाग़ वैसे ही निकाल के फेंक देता है. जो याद ही ना रहे उसे पढ़ना और पढ़ना क्यों. इसलिए ये व्यवस्था बदलना बहुत ज़रूरी है. हमारे बच्चों के उपर इतना बोझा हो गया है की इसने बच्चो के जीवन को ख़तम सा कर दिया है. कभी कभी मुझे इतना अफ़सोस होता है सुनकर की 12 वी का परिणाम आया और उससे दुखी होकर जब बच्चे आत्म हत्या करलेते हैं; सिर्फ़ असफल होने से या कम अंक आने से। .
मैं तो मानता हूँ की बच्चे असफल नहीं होते परीक्षा के पद्यति असफल हुई है. बच्चों के बारे में सारी दुनिया कहती है की वो तो कच्ची मिट्टी के घड़े जैसे होते हैं जैसा चाहो ढाल सकते हो. हमारी बच्चे को अध्यापक और शिक्षा पद्यति कुछ नही दे सके तो इस में दोष किसका है. मुझे तो लगता ऐसे अध्यापकों को असफल होना चाहिए. क्या मज़ाक है इस पद्यति मैं 100 में से 90 नंबर , 95 नंबर लाओ तो आप बहुत होशियार हैं 30 , 35 नंबर लाने बाले को बिल्कुल बेकार समझा जाता है. न्यूटन को तो कभी तीस से ज़्यादा नंबर नहिएं मिले उसे तो स्कूल ने निकल दिया था बेकार मानकर। स्कूल से जाने के बाद उसका दिमाग़ खुल गया, उसने गिरते हुए सेब के फल को देखा और गुरुत्वा कर्षण का सिद्धांत दिया. जो आदमी स्कूल में फेल हो गया था आज बड़े बड़े विद्यार्थी उसके उपर शोध करते हैं. इसका सीधा सा मतलब है किसी के स्कूल में असफल या सफल होने से जीवन में सफलता और असफलता का कोई संबंध नहीं है. आप अगर आइंस्टाइन की कहानी पढ़ोगे तो आइंस्टाइन तो भी 9 कक्षा के आयेज पढ़ नहीं पाया कभी. स्कूल ने उसको निकल दिया. उसीआइंस्टाइन ने सारी दुनिया को उर्जा और द्रव्यमान के संबंध को स्थापित किया जिसे हम E=MC2 के समीकरण के रूप में जानते है. और दुनिया एक ऐसे आदमी को पूजती है जो 9 कक्षा के आगे नहीं पढ़ा.
में तो इसी देश की ऐसे बहुत सारी कहानिया जानता हूँ जो इस बात को बार बार प्रतिपादित करती हैं की स्कूली शिखा में 9, 10 या 16 पास करने से कुछ नहीं होता. धीरू भाई अंबानी जो 9 क्लास फैल था कभी पेट्रोल पंप पर नौकरी करता था 4.5 लाख करोड़ का रिलायंस का कारोबारी साम्राज्या खड़ा करे छोड़ गया. इसका अर्थ यही है ज्ञान और योग्यता का डिग्री से कोई संबंध नहीं है. घन श्याम दास बिरला सिर्फ़ कक्षा 4 पास, स्कूल और गाँव छोड़ कर निकल गये लोटा लेकर मुंबई पहुँच गये; और इतना बड़ा बिरला का कारोबारी साम्राज्य खड़ा कर दिया. जो आज लाखों करोड़ का है; कक्षा 4 पास आदमी ने क्या है. बिरला जी कहा करते थे की कक्षा पास करना कोई महत्व की बात नहीं है जीवन की तुलना में, हम जीवन को जीने वाली शिक्षा हम अपने विद्यार्थियों को दे. ऐसी शिक्षा व्यवस्था हम बनाएँ जिसमें उपाधि का महत्व ना हो ज्ञान का महत्व हो; परीक्षा का महत्व ना हो सीखने का महत्व हो; पढाने का महत्व न हो सिखाने का महत्व हो; अध्यापक भी सीखें और विद्यार्थी भी सीखें; दोनो सीखने की पक्रिया में आगे बढ़े.ऐसी शिक्षा व्यवस्था हम बनाना चाहते हैं. हमारी शिक्षा व्यवस्था मात्रा भाषा पर आधारित होगी अँग्रेज़ी पर नहीं . अंग्रेज आए थे तो अँग्रेज़ी आई थी, अंग्रेज गये थे तो अँग्रेज़ी भी चली जानी चाहिए थी. क्यों रख ली हमने? हम अपने बच्चों को अँग्रेज़ी में पढाते है और मार मार के पढाते है सिखाते है. भारत का बच्चा गंणित में पास हो जाता है,भौतिकी मैं पास हो जाते है,रसायन में पास हो जाते हैं लेकिन अँग्रेज़ी में फैल हो जाता है. होना ही चाहिए उनको फैल क्योंकि अँग्रेज़ी विदेशी भाषा है. आप मुझे एक अंग्रेज दिखाइए जो हिन्दी में पास हो जाय तो में अँग्रेज़ी मैं पास हो सकता हूँ. जब कोई अंग्रेज हिन्दी में पास नही हो सकता है तो हम भारतीय से अपेक्षा क्यों करते हैं की वो अँग्रेज़ी में पास हो जाएँ.
अँग्रेज़ी भाषा ही नहीं है पास होने लायक ये तो एक दम रद्दी है . इस भाषा का जब मैने इतिहास पढ़ा तो पता चला की पाँचवी शताब्दी में तो ये भाषा आई इसका मतलब है की मुश्किल से 1500 साल पुरानी है. हमारी भाषा तो करोड़ों वर्ष पुरानी है संस्कृत, हिन्दी, मराठी, कन्नड़,मलयालम. दुनिया की सबसे रद्दी भाषा है अँग्रेज़ी इसकी कोई अपनी व्याकरण नहीं है जो सूद्ढ़ हो और अपनी हो. आपको एक उदाहरण देता हूँ. अँग्रेज़ी में एक शब्द है "PUT" इस का उच्चारण होता है पुट दूसरा शब्द है "BUT" इसका उच्चारण है बट इसी तरह "CUT " को कट बोला जाता है जबकि तीनों शब्द एक समान हैं. इसकी बजह है भाषा के व्याकरण का ना होना. इसी तरह कभी "CH" का उच्चारण "का" होता है तो कभी "च" कोई नियम नहीं चलता है. इस भाषा के कितनी बड़ी कमज़ोरी है; अँग्रेज़ी में एक शब्द होता है "SUN" जिसका मतलब होता है सूरज. में सारे अँग्रेज़ों को चुनौती देता हूँ की सूरज का दूसरा शब्द अँग्रेज़ी में से ढूँढ कर दिखाए यानी की "SUN" का पर्यायवाची; पूरी अँग्रेज़ी में दूसरा शब्द नही है जो सूरज को बता सके. अब हम संस्कृत की बात करें "सूर्य" एक शब्द है इसके अलावा दिनकर , दिवाकर, भास्कर 84 शब्द हैं संकृत में. इसी तरह एक शब्द हैं "MOON" अँग्रेज़ी मैं इसके अलावा कोई शब्द नहीं है; संकृत में 56 शब्द है चाँद के लिये . इसी तरह पानी के लिए भी जहाँ अँग्रेज़ी में एक शब्द है पानी के लिए "WATER" चाहे वो नदी का हो नाले का या कुए का.संस्कृत में हर पानी के लिए अलग शब्द है, सागर के पानी से लेकर कीचड़ के पानी तक सभी के लिए अलग शब्द है. कितनी ग़रीब भाषा है शब्द ही नही है. चाचा भी "अंकल" मौसा भी "अंकल" फूफा भी "अंकल" और फूफा का फूफा भी "अंकल" और मौसा का मौसा भी "अंकल" कोई शब्द ही नहीँ है अंकल के अलावा. इसी तरह चाची,मामी,मौसी सभी के लए "आंटी" कोई शब्द ही नहीँ है इसके अलावा.
हम तो मूर्ख हैं जो इस अँग्रेज़ी के चक्कर में फस गये. असल में अकल उन्ही की मारी गयी है जो अँग्रेज़ी सीख गये हैं. जिन्होने नहीं सीखी वो ठीक है. पता हैं में कुछ लोगों के घरो में जाता हूँ. मेरा एक प्रण हैं की में होटल में रुकूंगा नहीं और घर में ही खाना खाऊंगा . इसलिए लोगों को मुझे किसी भी तरह घर में रुकाना पड़ता है और घर में ही खाना खिलाना पड़ता है. कभी-कभी में अँग्रेज़ी पड़े लिखे घरों में भी जाता हूँ. वे अँग्रेज़ी की बजह से मुझे कैसे मूर्ख दिखाई देते हैं उसका उदाहरण देता हूँ. वो ना तो अंग्रेज हैं और ना हिन्दुस्तानी वो खिचड़ी हैं.वो खिचड़ी कैसी हैं; किसी परिवार में गया, बाप का नाम रामदयाल माँ का नाम गायत्री देवी बेटे का नाम "टिनकू". रामदयाल और गायत्री देवी का येटिनकू कहा से आगया. जब में उन से पूछता हूँ की आपको टिनकू का मतलब पता है तो उनको नहीं पता होता है. ऐसे मूर्ख लोग है अर्थ मालूम नही नाम रख लिया टिनकू. फिर में उनको अँग्रेज़ी शब्द कोष दिखता हूँ, अँग्रेज़ी की सबसे पुराना शब्दकोष है वेबस्टेर; जिसमें टिनकू का अर्थ होता है "आवारा लड़का". जो लड़का माँ बाप की ना सुने वो टिंकू। और हम, पढ़े लिखे मूर्ख लोग क्या कर रहें है, अच्छे ख़ासे आज्ञाकारी पुत्र को दिन भर आवारा बुलाते रहते हैं इस अग्रेज़ी के चक्कर में. अंगेजी पढ़े लिखे घरों में डिंपल,बबली,डब्ली,पपपी, बबलू,डब्लू जैसे बेतुके और अर्थहीन नाम ही मिलते हैं. भारत में नामों की कमी होगई है क्या? कभी कभी में इससे भी बड़ी मूर्खताएँ में देखता हूँ . कभी किसी अधकचरे हिन्दुस्तानी के घर में जाऊं तो रोब झाड़ने के लिए अँग्रेज़ी बोलते हैं चाहे ग़लत ही क्यों ना बोले. बो चाहे तो हिन्दी में भी बोल सकता है लेकिन रोब झाड़ने के लिए अँग्रेज़ी मैं ही बोलेगा। वो वोलेगा "ओ राजीव दीक्षित जी she is my misses " तो मैं पूछता हूँ " really" ! she is your misses ?". क्यों की उसको "मिसेज़" का अर्थ नहीं मालूम। .
मिसस का अर्थ क्या है ?
किसी भी सभ्यता में जो शब्द निकलते उनका अपना सामाजिक इतिहास और अर्थ होता है. इंगलेंड की सभ्यता का सबसे ख़राब पहलू ये है जो आपको कभी पसंद नहिएं आएगा . की वन्हा एक पुरुष और एक स्त्री जीवन भर साथ कभी नहिएं रहते; बदलते रहते है कपड़ों की तरह. मेरे कई दोस्त हैं इंग्लेंड और यूरोप में है उनकी 40 -40 शादियाँ हो चुकी और और 41 वी करने के तैयारी है. एक पुरुष कई स्त्रियों से संबंध रखता है एक स्त्री कई पुरुषों से संबंध रखती है. तो पत्नी को छोड़ कर पुरुष जितनी स्त्रियों से संबंध रखता है वो सब "मिसेज़" कहलाती है. इसका मतलब हुआ कोई भी महिला जो पत्नी नहिएं है और जिसके साथ आप रात को सोएं . अब यहाँ धर्म पत्नी को मिसेज़ बनाने में लगे हैं; मूर्खों के मूर्ख. "मिस्टर" का मतला उल्टा, पति को छोड़ कर पुरुष जिसके साथ आप रात विताएँ। छोड़िए इन अँग्रेज़ी शब्दों को इनमें कोई दम नहिएं है. एक तो सबसे खराब अँग्रेज़ी शब्द है "मेडम" पता नहीं है लोग बोलते कैसे है. आप जानते है यूरोप में मेडम कौन होता है. ऐसी सभ्यता में जहाँ पर स्त्री गमन होगा वहां वेश्यावृति भी होगी. पर स्त्रीगमन पर पुरुषगमन चरम पर होगा . तो वैश्याएँ जो अपने कोठों को चल़ाती हैं अपनी वेश्यावृति के धंधे को चलाने के लिए. ऐसी वैश्या प्रमुख को वहां मैडम कहा जात है.हमारे यहाँ ऐसे मूर्ख लोग हैं जो अपनी बहिनों को मैडम कहते है, अपनी पत्नियों को मैडम कहते है. और पत्नियों को भी शर्म नहिएं आती मैडम कलवाने में वो भी कहती हैं मैडम कहो मुझको. पहले जान तो लो इसका मतलब फिर कहलबाओ. अपने भारत में कितने सुंदर सुंदर शब्द हैं जैसे "श्रीमती " श्री यानी की लक्ष्मी मति यानी बिद्धि जिसमें लक्ष्मी और सरस्वती एक साथ निवास करें वो श्रीमती उसको हमने मिसेज़ बना दिया. देश में मुर्ख अँग्रेज़ी पढ़े लिखे; इन्होने बड़ा बेड़ा गर्क किया इस देश में बड़ा सत्यानाश किया. पहले तो अँग्रेज़ी भाषा ने किया फिर इन्होने और ज़्यादा किया. मेरा आपसे हाथ जोड़ के निवेदन है इस अँग्रेज़ी भाषा के चक्कर में मत पड़िये कुछ रखा नहीं है इसमें।
कभी कभी तो मैं जब लोगों के घरों में जाता हूँ इतना गुस्सा आता है मुझे. इन अँग्रेज़ी पढ़े लोगों के यहाँ छोटे छोटे बच्चे होते है उनसे माता पिता कहते हैं "अंकल आए हैं अंकल को पोयम सुनाओ". मैं कहता हूँ भाई मैं अंकल नहीं हूँ. मुझे या तो मामा बना लो या चाचा बनो लो दोनो में ही आपका फ़ायदा है और मेरे भी फ़ायदा है. अंकल बनने में तो कुछ रखा नहीं है. फिर उनके माता पिता को कहता हूँ आप इनको पोयम क्यों सुंनबाते हो कविता सुनवाओ ना. तो उनको पोयम और कविता का अर्थ ही नहीं पता है. पोयम अलग है कविता अलग है. और वो बच्चे चालू हो जाते हैं टेप रिकारडर की तरह और पोयम सुनाते हैं मुझको। "रेन रेन गो अवे, कम एगेन अनोदर डे, लिटल बेबी वांट्स टू प्ले। " अब में बच्चे से पूछता हूँ तुम्हे मतलब मालूम है इसका. तो वो कहता है नहीं मालूम. तब में पूछता हूँ किसने सिखाया वो कहता है मम्मा ने. मम्मा को पूछो तो उसे भी अर्थ नहीं मालूम उसे टीचर ने बताया. टीचर को पूछो तो उनको भी अर्थ नहीं मालूम।। तो रटाया क्यों फिर बच्चों को? फिर बच्चों को में बताता हूँ इसका अर्थ ये है. "वारिश वारिश तुम चली जाओ मत आओ क्यों की मुझे खेलना है". प्रार्थना के रूप में ये कविता है; करोड़ों बच्चॉ ने अगर ये कविता गायी और ईश्वर ने सुन ली तो. वारिश को वापस बुला लिया तो क्या होने वाला है? वारिश नहीं होगी तो सूखा पड़ेगा. और सूखा पड़ेगा तो आप भी भूकों मरोगे , में भी मारूँगा और किसान भी मरेंगे. इतनी अकल नहीं है की "रेन रेन गो अवे" कितनी ख़तरनाक चीज़ है. हमारे भारत में 60 प्रतिशत खेती वारिश से होती है; केवल 40 प्रतिशत में ही खेती की व्यवस्था है. तो हमें तो वारिश ज़्यादा चाहिए. और ऐसी कविता देशी भाषा में ही हो सकती है अँग्रेज़ी में नहीं . मराठी भाषा के एक कविता है अर्थ इसका बहुत सीधा है. वो कविता है
आओ आओ पाऔशा;
टोला दे तो पैसा;
पैसा झाला खोता;
पाऔ साला मोटा.
( वारिश वारिश तुम जल्दी जल्दी आओ नहिएं आयोगे तो मैं पैसा देने को तैयार हूँ)
मात्रा भाषा की कविता बारिश को बुलाने वाली होती है और अँग्रेज़ी कविता वारिश को भगाने वाली होती है क्योंकि इंग्लेंड में मौसम खराब होता है, वारिश कभी भी हो जाती है. इस लिए वहाँ की कविता में वारिश से जाने की बात होती है.
अँग्रेज़ी में तीन "W" होते है जिनका क़ोई भरोसा नही है. पहला है "WEATHER" (मौसम) कोई भरोसा नहिएं है कब बरसेगा कब धूप होगी; दूसरा है "WIFE" (पत्नी) आज आपकी है कल छोड कर जा सकती है; तीसरा है WORK(काम) आप किसी के यहाँ वीस साल भी नौकरी करें कोई भरोसा नहीं कि कल भी आप को रखेगा जिस दिन चाहेगा आपको निकाल दे देगा. भारत में ये तीनों ही पक्के है. मौसम एक दम पक्का है कब जाड़ा होगा , कब वारिश होगी कब गर्मी होगी सब पक्का है. और पत्नी तो सबसे ज़्यादा पक्की है सात सात जानम तक साथ नहिएं छोड़ती इतनी पक्की वाईफ तो दुनिया में कहीं नहिएं है. और वर्क यानी काम भी बहुत पक्का है. फिर हमारी कविताएँ तो हमारे समाज , संस्कृति , देश और शभयता के हिसाब से होनी चाहिए. अँग्रेज़ों के कविताएँ हम क्यों सीखे? व्यक्तिगत बात चीत में तो अँग्रेज़ी बिल्कुल मत बोलिए. एक बात और अपने दिमाग़ से निकाल दीजिए की अँग्रेज़ी अंतरराष्ट्रिय भाषा है. अँग्रेज़ी 200 में से केवल 14 देशों में बोली जाती है. बाकी सब देशों की अपनी अलग अलग भाषाएँ है जैसी की फ्रांस, रूस, हलेंड, जर्मनी, चीन, जापान . अँग्रेज़ी केवल उन्ही देशों में है जो अँग्रेज़ों के गुलाम थे जैसे की न्यूजीलेंड , कनाडा, पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश, आस्ट्रेलया, अमेरिका. ये सब अँग्रेज़ों के गुलाम देश थे। इसलये अँग्रेज़ी यहाँ पर है. अँग्रेज़ी दुनिया के सबसे बेकार भाषा है, अँग्रेज़ी में शब्दों की संख्या सबसे कम और व्याकरण सबसे मूर्खता वाला है.
अभी हम जो शिक्षा लेते हैं वो मैंकाले की है. दुर्भाaसे मैकाले जो पाठ्यक्रम हम को देगया वो इतना घटिया और रद्दी है कि जिंदगी मैं कभी काम नहीं आता. हम पढ़ते हैं, रटते है और कक्षा में जाकर उल्टी कर आते हैं. 100 में से 96 और 98 नंबर लाकर हम क्या करें. ये शिक्षा कभी जिंदगी में काम नहीं आती. में अपना उदाहरण देता हूँ. सालों साल में पढ़ाई की अपनी जिंदगी बर्बाद की. में नहीं पढ़ता तो बहुत अच्छा होता. मैं ने जितने साल पढ़ाई की और जितना पैसा मेरे माँ बाप ने खर्च किया, जितना पैसा मेरे माँ बाप ने मेरे ट्यूशन पर मेरे खर्च किया. अगर में पढ़ने नहीं जाता तो वो पैसा वचता. मैं उससे कोई धंधा और व्यापार करता तो करोड़पति होता. क्या पढ़ाई हुई है मेरी. मैने बचपन में पढ़ा है (अ +ब)२ =अ 2+ब2+२अब (जे-य)2=अ 2+ब 2-२अब . अब मुझे ये समझ में नहीं आता की इस शिक्षा का मेरे जीवन में का उपयोग है. मेरे शिक्षक ने मुझे पढ़ाया घंटो-घंटो मैंने ने रट़ा और अभ्यास किया ना जाने कितने किलो कागज मेने बर्बाद किया फिर भी मुझे नहीं पता में उस ज्ञान से क्या करूँ. मेने अपने शिक्षक से पूछा आपने मुझे ये क्यों पढ़ाया मेरे जिंदगी में तो ये कामनहीं आया. तो मेरे गणित के अद्यापक द् ने जबाब दिया की काम तो मेरे भी नही आया, मुझे भी किसी ने पढ़या था मेने तुम्हें पढ़ा दिया. अब अगर इस ज्ञान का कोई उपयोग नहीं है तो फिर ये भेड चाल किसलिए है. जो काम नही आता है उसको पढ़ना ही क्यों. बचपन में मुझे पढ़ाया गया की अमरीका का पहला राष्ट्रपति कौन था. मुझे मालूम है की पहला राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन था पर मैं करूँ क्या . मैं सब्जी खरीदने बाजार जाता हूँ और बोलता हूँ की अमेरका का पहला राष्ट्रपति जाज वाशिंगटन था क्या वो मुझे सब्जी देगा? फालतू में रटा रटा कर मेरा दिमाग़ खराब कर दिया. मुझे नही मालूम की हमारे कुल का पहला इंसान कौन था लेकिन अमेरिका का पहला राष्ट्रपाति मालूम है. मुझे तो इतना दुख होता है कि उनका पहला ही नहीं 250 राष्ट्रपति भी मालूम हैं मुझे, और अपने कुल के ढाई आदमी के नाम नही मालूम मुझे. अपने दादा के पहले की पीढ़ी के नाम मुझे नहिएं मालूम क्या करना है ऐसी शिक्षा से. इसका उपयोग क्या है. बचपन में मैं मुझे पढ़ाया की कनाडा की जलवायु कैसी है. मुझे कभी कनाडा जान नहीं है और नही कभी कनाडा मेरे घर आएगा. तो फिर उसकी जलवायु पढ़कर मुझे क्या हासिल होगा. अगर में शिवपुरी में रहता हूँ और वहाँ की जावायु पढ़ूँ तो मुझे काम आएगी, कनाडा की जलवायु क्या काम आएगी. अगर में भविष्य में कभी कनाडा गया जिसकी की दूर दूर तक कोई संभावना नही है; तब उसका कुच्छ उपयोग हो सकता है. उसके लिए पढ़ और रट रट के दिमाग़ खराब करने की कोई ज़रूरत नहिएं है.
इतिहास की वात करे तो पढ़ते है; अकबर बड़ा महान था; तो मैं क्या करूँ ?मेरी जिंदगी में उससे मुझे क्या फायदा होगा.आप अपने बारे में ईमानदारी से सोचो आपने जो पढ़ा है उसमें से कितना आपके काम आया. शायद आप 100 का नंबर निकालेंगे तो 5 भी काम नहीं आया.जो काम नहीं आया फिर उसको पढ़ा क्यों. आप दूसरी तरीके से उल्टा सोचो , जितना पढ़ा है उसका कितना याद है. याद उतना ही रहता है जिसे दिमाग़ इस्तेमाल करता है; बाकी कचरे को दिमाग़ वैसे ही निकाल के फेंक देता है. जो याद ही ना रहे उसे पढ़ना और पढ़ना क्यों. इसलिए ये व्यवस्था बदलना बहुत ज़रूरी है. हमारे बच्चों के उपर इतना बोझा हो गया है की इसने बच्चो के जीवन को ख़तम सा कर दिया है. कभी कभी मुझे इतना अफ़सोस होता है सुनकर की 12 वी का परिणाम आया और उससे दुखी होकर जब बच्चे आत्म हत्या करलेते हैं; सिर्फ़ असफल होने से या कम अंक आने से। .
मैं तो मानता हूँ की बच्चे असफल नहीं होते परीक्षा के पद्यति असफल हुई है. बच्चों के बारे में सारी दुनिया कहती है की वो तो कच्ची मिट्टी के घड़े जैसे होते हैं जैसा चाहो ढाल सकते हो. हमारी बच्चे को अध्यापक और शिक्षा पद्यति कुछ नही दे सके तो इस में दोष किसका है. मुझे तो लगता ऐसे अध्यापकों को असफल होना चाहिए. क्या मज़ाक है इस पद्यति मैं 100 में से 90 नंबर , 95 नंबर लाओ तो आप बहुत होशियार हैं 30 , 35 नंबर लाने बाले को बिल्कुल बेकार समझा जाता है. न्यूटन को तो कभी तीस से ज़्यादा नंबर नहिएं मिले उसे तो स्कूल ने निकल दिया था बेकार मानकर। स्कूल से जाने के बाद उसका दिमाग़ खुल गया, उसने गिरते हुए सेब के फल को देखा और गुरुत्वा कर्षण का सिद्धांत दिया. जो आदमी स्कूल में फेल हो गया था आज बड़े बड़े विद्यार्थी उसके उपर शोध करते हैं. इसका सीधा सा मतलब है किसी के स्कूल में असफल या सफल होने से जीवन में सफलता और असफलता का कोई संबंध नहीं है. आप अगर आइंस्टाइन की कहानी पढ़ोगे तो आइंस्टाइन तो भी 9 कक्षा के आयेज पढ़ नहीं पाया कभी. स्कूल ने उसको निकल दिया. उसीआइंस्टाइन ने सारी दुनिया को उर्जा और द्रव्यमान के संबंध को स्थापित किया जिसे हम E=MC2 के समीकरण के रूप में जानते है. और दुनिया एक ऐसे आदमी को पूजती है जो 9 कक्षा के आगे नहीं पढ़ा.
में तो इसी देश की ऐसे बहुत सारी कहानिया जानता हूँ जो इस बात को बार बार प्रतिपादित करती हैं की स्कूली शिखा में 9, 10 या 16 पास करने से कुछ नहीं होता. धीरू भाई अंबानी जो 9 क्लास फैल था कभी पेट्रोल पंप पर नौकरी करता था 4.5 लाख करोड़ का रिलायंस का कारोबारी साम्राज्या खड़ा करे छोड़ गया. इसका अर्थ यही है ज्ञान और योग्यता का डिग्री से कोई संबंध नहीं है. घन श्याम दास बिरला सिर्फ़ कक्षा 4 पास, स्कूल और गाँव छोड़ कर निकल गये लोटा लेकर मुंबई पहुँच गये; और इतना बड़ा बिरला का कारोबारी साम्राज्य खड़ा कर दिया. जो आज लाखों करोड़ का है; कक्षा 4 पास आदमी ने क्या है. बिरला जी कहा करते थे की कक्षा पास करना कोई महत्व की बात नहीं है जीवन की तुलना में, हम जीवन को जीने वाली शिक्षा हम अपने विद्यार्थियों को दे. ऐसी शिक्षा व्यवस्था हम बनाएँ जिसमें उपाधि का महत्व ना हो ज्ञान का महत्व हो; परीक्षा का महत्व ना हो सीखने का महत्व हो; पढाने का महत्व न हो सिखाने का महत्व हो; अध्यापक भी सीखें और विद्यार्थी भी सीखें; दोनो सीखने की पक्रिया में आगे बढ़े.ऐसी शिक्षा व्यवस्था हम बनाना चाहते हैं. हमारी शिक्षा व्यवस्था मात्रा भाषा पर आधारित होगी अँग्रेज़ी पर नहीं . अंग्रेज आए थे तो अँग्रेज़ी आई थी, अंग्रेज गये थे तो अँग्रेज़ी भी चली जानी चाहिए थी. क्यों रख ली हमने? हम अपने बच्चों को अँग्रेज़ी में पढाते है और मार मार के पढाते है सिखाते है. भारत का बच्चा गंणित में पास हो जाता है,भौतिकी मैं पास हो जाते है,रसायन में पास हो जाते हैं लेकिन अँग्रेज़ी में फैल हो जाता है. होना ही चाहिए उनको फैल क्योंकि अँग्रेज़ी विदेशी भाषा है. आप मुझे एक अंग्रेज दिखाइए जो हिन्दी में पास हो जाय तो में अँग्रेज़ी मैं पास हो सकता हूँ. जब कोई अंग्रेज हिन्दी में पास नही हो सकता है तो हम भारतीय से अपेक्षा क्यों करते हैं की वो अँग्रेज़ी में पास हो जाएँ.
अँग्रेज़ी भाषा ही नहीं है पास होने लायक ये तो एक दम रद्दी है . इस भाषा का जब मैने इतिहास पढ़ा तो पता चला की पाँचवी शताब्दी में तो ये भाषा आई इसका मतलब है की मुश्किल से 1500 साल पुरानी है. हमारी भाषा तो करोड़ों वर्ष पुरानी है संस्कृत, हिन्दी, मराठी, कन्नड़,मलयालम. दुनिया की सबसे रद्दी भाषा है अँग्रेज़ी इसकी कोई अपनी व्याकरण नहीं है जो सूद्ढ़ हो और अपनी हो. आपको एक उदाहरण देता हूँ. अँग्रेज़ी में एक शब्द है "PUT" इस का उच्चारण होता है पुट दूसरा शब्द है "BUT" इसका उच्चारण है बट इसी तरह "CUT " को कट बोला जाता है जबकि तीनों शब्द एक समान हैं. इसकी बजह है भाषा के व्याकरण का ना होना. इसी तरह कभी "CH" का उच्चारण "का" होता है तो कभी "च" कोई नियम नहीं चलता है. इस भाषा के कितनी बड़ी कमज़ोरी है; अँग्रेज़ी में एक शब्द होता है "SUN" जिसका मतलब होता है सूरज. में सारे अँग्रेज़ों को चुनौती देता हूँ की सूरज का दूसरा शब्द अँग्रेज़ी में से ढूँढ कर दिखाए यानी की "SUN" का पर्यायवाची; पूरी अँग्रेज़ी में दूसरा शब्द नही है जो सूरज को बता सके. अब हम संस्कृत की बात करें "सूर्य" एक शब्द है इसके अलावा दिनकर , दिवाकर, भास्कर 84 शब्द हैं संकृत में. इसी तरह एक शब्द हैं "MOON" अँग्रेज़ी मैं इसके अलावा कोई शब्द नहीं है; संकृत में 56 शब्द है चाँद के लिये . इसी तरह पानी के लिए भी जहाँ अँग्रेज़ी में एक शब्द है पानी के लिए "WATER" चाहे वो नदी का हो नाले का या कुए का.संस्कृत में हर पानी के लिए अलग शब्द है, सागर के पानी से लेकर कीचड़ के पानी तक सभी के लिए अलग शब्द है. कितनी ग़रीब भाषा है शब्द ही नही है. चाचा भी "अंकल" मौसा भी "अंकल" फूफा भी "अंकल" और फूफा का फूफा भी "अंकल" और मौसा का मौसा भी "अंकल" कोई शब्द ही नहीँ है अंकल के अलावा. इसी तरह चाची,मामी,मौसी सभी के लए "आंटी" कोई शब्द ही नहीँ है इसके अलावा.
हम तो मूर्ख हैं जो इस अँग्रेज़ी के चक्कर में फस गये. असल में अकल उन्ही की मारी गयी है जो अँग्रेज़ी सीख गये हैं. जिन्होने नहीं सीखी वो ठीक है. पता हैं में कुछ लोगों के घरो में जाता हूँ. मेरा एक प्रण हैं की में होटल में रुकूंगा नहीं और घर में ही खाना खाऊंगा . इसलिए लोगों को मुझे किसी भी तरह घर में रुकाना पड़ता है और घर में ही खाना खिलाना पड़ता है. कभी-कभी में अँग्रेज़ी पड़े लिखे घरों में भी जाता हूँ. वे अँग्रेज़ी की बजह से मुझे कैसे मूर्ख दिखाई देते हैं उसका उदाहरण देता हूँ. वो ना तो अंग्रेज हैं और ना हिन्दुस्तानी वो खिचड़ी हैं.वो खिचड़ी कैसी हैं; किसी परिवार में गया, बाप का नाम रामदयाल माँ का नाम गायत्री देवी बेटे का नाम "टिनकू". रामदयाल और गायत्री देवी का येटिनकू कहा से आगया. जब में उन से पूछता हूँ की आपको टिनकू का मतलब पता है तो उनको नहीं पता होता है. ऐसे मूर्ख लोग है अर्थ मालूम नही नाम रख लिया टिनकू. फिर में उनको अँग्रेज़ी शब्द कोष दिखता हूँ, अँग्रेज़ी की सबसे पुराना शब्दकोष है वेबस्टेर; जिसमें टिनकू का अर्थ होता है "आवारा लड़का". जो लड़का माँ बाप की ना सुने वो टिंकू। और हम, पढ़े लिखे मूर्ख लोग क्या कर रहें है, अच्छे ख़ासे आज्ञाकारी पुत्र को दिन भर आवारा बुलाते रहते हैं इस अग्रेज़ी के चक्कर में. अंगेजी पढ़े लिखे घरों में डिंपल,बबली,डब्ली,पपपी, बबलू,डब्लू जैसे बेतुके और अर्थहीन नाम ही मिलते हैं. भारत में नामों की कमी होगई है क्या? कभी कभी में इससे भी बड़ी मूर्खताएँ में देखता हूँ . कभी किसी अधकचरे हिन्दुस्तानी के घर में जाऊं तो रोब झाड़ने के लिए अँग्रेज़ी बोलते हैं चाहे ग़लत ही क्यों ना बोले. बो चाहे तो हिन्दी में भी बोल सकता है लेकिन रोब झाड़ने के लिए अँग्रेज़ी मैं ही बोलेगा। वो वोलेगा "ओ राजीव दीक्षित जी she is my misses " तो मैं पूछता हूँ " really" ! she is your misses ?". क्यों की उसको "मिसेज़" का अर्थ नहीं मालूम। .
मिसस का अर्थ क्या है ?
किसी भी सभ्यता में जो शब्द निकलते उनका अपना सामाजिक इतिहास और अर्थ होता है. इंगलेंड की सभ्यता का सबसे ख़राब पहलू ये है जो आपको कभी पसंद नहिएं आएगा . की वन्हा एक पुरुष और एक स्त्री जीवन भर साथ कभी नहिएं रहते; बदलते रहते है कपड़ों की तरह. मेरे कई दोस्त हैं इंग्लेंड और यूरोप में है उनकी 40 -40 शादियाँ हो चुकी और और 41 वी करने के तैयारी है. एक पुरुष कई स्त्रियों से संबंध रखता है एक स्त्री कई पुरुषों से संबंध रखती है. तो पत्नी को छोड़ कर पुरुष जितनी स्त्रियों से संबंध रखता है वो सब "मिसेज़" कहलाती है. इसका मतलब हुआ कोई भी महिला जो पत्नी नहिएं है और जिसके साथ आप रात को सोएं . अब यहाँ धर्म पत्नी को मिसेज़ बनाने में लगे हैं; मूर्खों के मूर्ख. "मिस्टर" का मतला उल्टा, पति को छोड़ कर पुरुष जिसके साथ आप रात विताएँ। छोड़िए इन अँग्रेज़ी शब्दों को इनमें कोई दम नहिएं है. एक तो सबसे खराब अँग्रेज़ी शब्द है "मेडम" पता नहीं है लोग बोलते कैसे है. आप जानते है यूरोप में मेडम कौन होता है. ऐसी सभ्यता में जहाँ पर स्त्री गमन होगा वहां वेश्यावृति भी होगी. पर स्त्रीगमन पर पुरुषगमन चरम पर होगा . तो वैश्याएँ जो अपने कोठों को चल़ाती हैं अपनी वेश्यावृति के धंधे को चलाने के लिए. ऐसी वैश्या प्रमुख को वहां मैडम कहा जात है.हमारे यहाँ ऐसे मूर्ख लोग हैं जो अपनी बहिनों को मैडम कहते है, अपनी पत्नियों को मैडम कहते है. और पत्नियों को भी शर्म नहिएं आती मैडम कलवाने में वो भी कहती हैं मैडम कहो मुझको. पहले जान तो लो इसका मतलब फिर कहलबाओ. अपने भारत में कितने सुंदर सुंदर शब्द हैं जैसे "श्रीमती " श्री यानी की लक्ष्मी मति यानी बिद्धि जिसमें लक्ष्मी और सरस्वती एक साथ निवास करें वो श्रीमती उसको हमने मिसेज़ बना दिया. देश में मुर्ख अँग्रेज़ी पढ़े लिखे; इन्होने बड़ा बेड़ा गर्क किया इस देश में बड़ा सत्यानाश किया. पहले तो अँग्रेज़ी भाषा ने किया फिर इन्होने और ज़्यादा किया. मेरा आपसे हाथ जोड़ के निवेदन है इस अँग्रेज़ी भाषा के चक्कर में मत पड़िये कुछ रखा नहीं है इसमें।
कभी कभी तो मैं जब लोगों के घरों में जाता हूँ इतना गुस्सा आता है मुझे. इन अँग्रेज़ी पढ़े लोगों के यहाँ छोटे छोटे बच्चे होते है उनसे माता पिता कहते हैं "अंकल आए हैं अंकल को पोयम सुनाओ". मैं कहता हूँ भाई मैं अंकल नहीं हूँ. मुझे या तो मामा बना लो या चाचा बनो लो दोनो में ही आपका फ़ायदा है और मेरे भी फ़ायदा है. अंकल बनने में तो कुछ रखा नहीं है. फिर उनके माता पिता को कहता हूँ आप इनको पोयम क्यों सुंनबाते हो कविता सुनवाओ ना. तो उनको पोयम और कविता का अर्थ ही नहीं पता है. पोयम अलग है कविता अलग है. और वो बच्चे चालू हो जाते हैं टेप रिकारडर की तरह और पोयम सुनाते हैं मुझको। "रेन रेन गो अवे, कम एगेन अनोदर डे, लिटल बेबी वांट्स टू प्ले। " अब में बच्चे से पूछता हूँ तुम्हे मतलब मालूम है इसका. तो वो कहता है नहीं मालूम. तब में पूछता हूँ किसने सिखाया वो कहता है मम्मा ने. मम्मा को पूछो तो उसे भी अर्थ नहीं मालूम उसे टीचर ने बताया. टीचर को पूछो तो उनको भी अर्थ नहीं मालूम।। तो रटाया क्यों फिर बच्चों को? फिर बच्चों को में बताता हूँ इसका अर्थ ये है. "वारिश वारिश तुम चली जाओ मत आओ क्यों की मुझे खेलना है". प्रार्थना के रूप में ये कविता है; करोड़ों बच्चॉ ने अगर ये कविता गायी और ईश्वर ने सुन ली तो. वारिश को वापस बुला लिया तो क्या होने वाला है? वारिश नहीं होगी तो सूखा पड़ेगा. और सूखा पड़ेगा तो आप भी भूकों मरोगे , में भी मारूँगा और किसान भी मरेंगे. इतनी अकल नहीं है की "रेन रेन गो अवे" कितनी ख़तरनाक चीज़ है. हमारे भारत में 60 प्रतिशत खेती वारिश से होती है; केवल 40 प्रतिशत में ही खेती की व्यवस्था है. तो हमें तो वारिश ज़्यादा चाहिए. और ऐसी कविता देशी भाषा में ही हो सकती है अँग्रेज़ी में नहीं . मराठी भाषा के एक कविता है अर्थ इसका बहुत सीधा है. वो कविता है
आओ आओ पाऔशा;
टोला दे तो पैसा;
पैसा झाला खोता;
पाऔ साला मोटा.
( वारिश वारिश तुम जल्दी जल्दी आओ नहिएं आयोगे तो मैं पैसा देने को तैयार हूँ)
मात्रा भाषा की कविता बारिश को बुलाने वाली होती है और अँग्रेज़ी कविता वारिश को भगाने वाली होती है क्योंकि इंग्लेंड में मौसम खराब होता है, वारिश कभी भी हो जाती है. इस लिए वहाँ की कविता में वारिश से जाने की बात होती है.
अँग्रेज़ी में तीन "W" होते है जिनका क़ोई भरोसा नही है. पहला है "WEATHER" (मौसम) कोई भरोसा नहिएं है कब बरसेगा कब धूप होगी; दूसरा है "WIFE" (पत्नी) आज आपकी है कल छोड कर जा सकती है; तीसरा है WORK(काम) आप किसी के यहाँ वीस साल भी नौकरी करें कोई भरोसा नहीं कि कल भी आप को रखेगा जिस दिन चाहेगा आपको निकाल दे देगा. भारत में ये तीनों ही पक्के है. मौसम एक दम पक्का है कब जाड़ा होगा , कब वारिश होगी कब गर्मी होगी सब पक्का है. और पत्नी तो सबसे ज़्यादा पक्की है सात सात जानम तक साथ नहिएं छोड़ती इतनी पक्की वाईफ तो दुनिया में कहीं नहिएं है. और वर्क यानी काम भी बहुत पक्का है. फिर हमारी कविताएँ तो हमारे समाज , संस्कृति , देश और शभयता के हिसाब से होनी चाहिए. अँग्रेज़ों के कविताएँ हम क्यों सीखे? व्यक्तिगत बात चीत में तो अँग्रेज़ी बिल्कुल मत बोलिए. एक बात और अपने दिमाग़ से निकाल दीजिए की अँग्रेज़ी अंतरराष्ट्रिय भाषा है. अँग्रेज़ी 200 में से केवल 14 देशों में बोली जाती है. बाकी सब देशों की अपनी अलग अलग भाषाएँ है जैसी की फ्रांस, रूस, हलेंड, जर्मनी, चीन, जापान . अँग्रेज़ी केवल उन्ही देशों में है जो अँग्रेज़ों के गुलाम थे जैसे की न्यूजीलेंड , कनाडा, पाकिस्तान, भारत, बांग्लादेश, आस्ट्रेलया, अमेरिका. ये सब अँग्रेज़ों के गुलाम देश थे। इसलये अँग्रेज़ी यहाँ पर है. अँग्रेज़ी दुनिया के सबसे बेकार भाषा है, अँग्रेज़ी में शब्दों की संख्या सबसे कम और व्याकरण सबसे मूर्खता वाला है.
साभार अमर शहीद भाई राजीव दीक्षित
ये राजीव भाई के हिन्दी भाषा के ओजस्वी व्याख्यान है आप जरूर सुने और पाठक जी तक पहुचाये
http://98.130.113.92/Macaulay_
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